युवा कवि। प्रकाशित कृतियाँदो नवगीत संग्रह एक बूँद हमऔर धूूप भरकर मुट्ठियों में। संप्रतिसीगल लैब इंडिया प्रा. लि. में  मैनेजर।

एक मुट्ठी रेत

एक तू ही
भर नहीं
अनिकेत

मैं नदी थी
रह गई हूँ
एक मुठ्ठी रेत

गाल मेरे
चूमते थे
पाखियों के दल

मुग्ध होती थी
स्वयं की सुन
सजल कलकल

अब सिमट
कर रह गई हूँ
आह भर समवेत

पेंग भरते
घाट पर आ
शावकों के झुंड

अब नहीं हैं
पास में सूखे
हुए दो कुंड

कूदते हैं
वक्ष पर मेरे
धमाधम प्रेत

एक पन्ना अथ
रहा तो एक
इति इतिहास

मैं बुझाना
चाहती अब भी
सदी की प्यास

ईख तो मैं
हूँ नही!
ओ रे सचेतक
चेत!

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