मीनाक्षी आहूजा ‘वागर्थ’ फरवरी अंक में कीर्ति शर्मा की प्रकाशित कहानी ‘उजाले की ओर’ एक खूबसूरत कहानी है।जीवन एक बार मिलता है और बुढ़ापे में जीवनसाथी का न होना सच में कष्टकारी है।औरत के जीवन में त्याग के साथ ऊर्जा भी प्रति क्षण क्षीण हो कर केवल एडजेस्टमेंट में खर्च हो जाती है।पहल करनी चाहिए समाज को भी इस निर्णय में साथ देने की।बधाई कीर्ति शर्मा जी।

शंभू शरण सत्यार्थी, औरंगाबाद (बिहार): ‘वागर्थ’ के फरवरी २०२३ अंक में ‘आखिरी पड़ाव के पहले’ शीर्षक से सुभाषचंद्र कुशवाहा की बेहतरीन कहानी पढ़कर कई मनोवैज्ञानिक पक्षों को समझने का मौका मिला।इस कहानी में पिता के संघर्ष, अपने बेटा-बेटियों, बड़े भाई के प्रति कर्तव्य को इस कहानी में बड़े ही बारीक ढंग से रखा गया है।अंतिम क्षण में अपने बेटियों को नहीं पढ़ाने का दुख पिता को सालता रहता है।कहानी पढ़कर एक बुजुर्ग पिता के अंतर्मन की स्थिति को समझने का अवसर मिला।

आज दलित साहित्य पहले की तरह हाशिये पर नहीं है।दलित आंदोलन की दिशाएं विषय पर विद्वतजनों के विचार पढ़ने योग्य हैं और सारगर्भित हैं।

दशरथ कुमार सोलंकी, जोधपुर-‘वागर्थ’ का फरवरी अंक।विमर्शों के अपने वितान हैं तो अपनी सीमाएं भी हैं।यह अंक सभी आयामों को स्पर्श, बल्कि गहरे आत्मसात करता है।ऐसे समय में जब साहित्य में विचार-संकुचन का दौर है, यह अंक हमारी साहित्यिक समझ को अवलंब देता है।

हबीब कैफी, जोधपुर-‘वागर्थ’ जनवरी २०२३ अंक देखा। ‘साहित्य उत्सव का नया दौर’ परिचर्चा अच्छी है।जयपुर लिट फेस्ट का अनुभव मुझे है।हिंदी सहित दीगर भारतीय भाषाओं के लिए यहां नाममात्र की जगह थी। ‘वागर्थ’ के इस अंक में नए-पुराने लोगों की कविताएं बहुत जानदार हैं, अनुवाद सहित।लेकिन गजलें… हिंदी में शायद ज्यादा ही छूट है! चयन के साथ ही प्रस्तुति काफी अच्छी है।

पुष्पांजलि दास-‘वागर्थ’ जनवरी २०२३ अंक।साहित्य की घटती लोकप्रियता और कम होता वैचारिक सौंदर्य निःसंदेह सोचनीय है।सस्ती लोकप्रियता के लिए बड़े मंच पर कविता पाठ महज फैशन बन गया है।इसका कोई असर नहीं होता।ऐसे दृश्य साहित्य को ढकने का प्रयास है।इससे साहित्य का मर्म सिकुड़ता जान पड़ रहा है।ऐसी घटनाओं ने साहित्य अध्येताओं को मायूसी के कगार पर ला खड़ा किया है।

उर्वर साहित्य मर्मज्ञों की बेहद दरकार है।आज और आने वाले समाज में।

रश्मि सी, एर्णाकुलम, केरल-‘वागर्थ’ के जनवरी २०२३ अंक में प्रकाशित एन आर सेतुलक्ष्मी द्वारा हिंदी में अनूदित उन्नी आर की कहानी ‘सोद्देश्य कथाभाग’ पढ़ी।यह जान कर अच्छा लगा कि केरल से हिंदी में लिखने वाले लेखक और अनुवादक हैं।

मैं ‘वागर्थ’ की नई पाठक हूँ।पिछले महीने मैंने गूगल पर हिंदी की साहित्यिक पत्रिकाओं की खोजबीन की थी। ‘हिमालयन रायटिंग रिट्रीट’ नामक साइट पर मुझे ‘वागर्थ’ का लिंक मिला।इस पत्रिका की ऑनलाइन प्रति पाकर बेहद खुशी हुई। ‘वागर्थ’ की ऑनलाइन प्रति प्रकाशित करने के लिए भारतीय भाषा परिषद को बहुत-बहुत धन्यवाद।काफी सालों बाद हिंदी की किसी साहित्यिक पत्रिका को देखने और पढ़ने का मौका मिला।

प्रमोद कुमार सिंह, पटना-‘वागर्थ’ के दिसंबर २०२२ अंक के लेखों में बहुत ही सूक्ष्म विवेचन और गहराई है।सबसे अच्छा लगा ‘नजीर अकबराबादी की हिंदी परंपरा’ लेख पढ़कर।एस के साबिरा को बहुत-बहुत बधाई।अकबरावादी के लेखन की छानबीन करके लिखा गया यह एक अत्यंत दिलचस्प लेख है।ऐसी विभूतियों को इतिहास के दबे पन्नों से प्रकाश में लाना और पाठकों से रूबरू कराना एक उपलब्धि है।

तमिल कहानी सरसुराम की ‘हाय तितली’ के अनुवादक अलमेलु कृष्णन को विशेष साधुवाद और धन्यवाद।

चित्रगुप्त, बहराइच-‘वागर्थ’ दिसंबर २०२२ अंक पढ़ा।समकालीन पत्रिकाओं में ‘वागर्थ’ पत्रिका ऐसी है जो संपादकीय से लेकर पाठक की टिप्पणियों तक पाठक को बांधे रखती है।प्रस्तुत अंक की सभी कहानियां बेहतरीन हैं, विशेषकर जयश्री रॉय की कहानी ‘मुझ जैसी कोई’ मन में उतर गई।रोशनी वर्मा और आशीष मोहन की कविताओं ने भी मन को छुआ।भारतीय बुद्धिजीवियों का संकट विषय पर प्रस्तुत किए गए लेख सोचने पर मजबूर करने वाले हैं।

बेहतरीन साज-सज्जा, रचना चयन और बुनावट के लिए पूरी संपादकीय टीम बधाई की पात्र है।

राजेंद्र पटोदिया-‘वागर्थ’ का जनवरी २०२३ अंक प्राप्त हुआ।हेरम्ब चतुर्वेदी ने गांधी पर अपने आलेख में बहुत अच्छी जानकारी दी है।गांधी पर कुछ और सामग्री देते तो अच्छा रहता।साहित्य उत्सव पर परिचर्चा बहुत सार्थक है।इसके सभी लेख, कविता, कहानियां, लघुकथा, साहित्य संवाद, समीक्षा संवाद तथा विश्वदृष्टि की कविताएं पठनीय एवं जानकारियों से युक्त हैं।यह साहित्यिक मूल्यों की एक पूर्ण पत्रिका है।

अजय प्रकाश, इलाहाबाद-‘वागर्थ’ का जनवरी २०२३ अंक।लिट फेस्ट को लेकर जो लिखा गया है, यह अपने आप में बेजोड़ है।ऐसा इसके पहले कहीं नहीं लिखा गया।जिस तरह आपने साहित्य और रचनाकार को लेकर गंभीर पड़ताल की है, उससे साहित्य को लेकर चिंता झलकती है।लिट फेस्ट को लेकर परिचर्चा अद्भुत है और साहित्य के सरोकारों से ओतप्रोत है।

अन्य पत्रिकाएं भी इसी तरह संवाद का सेतु बनें, क्योंकि साहित्य तो हाशिए पर आ गया है, इसका स्पेस कम हुआ है। ‘वागर्थ’ नए-पुराने सभी लेखक को मंच प्रदान करता है।इसके लिए आप सभी बधाई के पात्र हैं। ‘वागर्थ’ हिंदी की साहित्यिक पत्रिकाओं में अपनी अलग पहचान बना रहा है।

सुरेश सौरभ, लखीमपुर खीरी– अगर कोई मुझसे पूछे कि हिंदी की सर्वश्रेष्ठ पत्रिका कौन है तो निश्चित रूप से मेरी जुबान पर सिर्फ ‘वागर्थ’ का नाम आएगा।यह पत्रिका नहीं एक आंदोलन है, एक मिशन है, एक अमिट कालजयी विचारधारा का आगाज है।समय और संवेदनाओं से साक्षात्कार करती इस पत्रिका के संपादक, प्रकाशक एवं लेखकों को सादर प्रणाम।