प्रशांत कुमार, मुंबई:‘वागर्थ’ के अप्रैल अंक में जितेंद्र कुमार सोनी की ‘किराए का मकान’ काफी सुंदर कहानी है। मुंबई जैसे शहर में पिछले १० सालों से मैं भी किराए के मकान में रहता हूँ, मेरा बेटा भी यहीं पैदा हुआ। जब घर बदला था तो बेटा कई दिन तक बार-बार यही कहता रहा कि पापा घर जाना है। किराए में रहने वाले लोग बखूबी इस कहानी का असली मर्म समझ सकते हैं।

मनीष झा:‘वागर्थ’ अप्रैल अंक में चाहत अन्वी की सभी कविताएं लाजवाब है, खासकर ‘डिलेवरी ब्वाय’ – इस कविता में ‘डिलेवरी ब्वाय’ के रूप में एक युवा के जीवन की जो तस्वीर चित्रित हुई है, काबिलेतारीफ है। उसकी मेहनत और संघर्ष को बयां करते हुए इस कविता में ग्लोबलाइजेशन के समान दुनिया में उसके जैसे कई अन्य लोगों की जिंदगी को आपने बखूबी दर्शाया है।

इस कविता में चाहत अन्वी ने व्यक्तिगत एवं सामाजिक स्तर पर ग्लोबलाइजेशन के असर को बताया है। जो लोग पैसे कमाने के लिए जीवन के अनुभवों की उपेक्षा करते हैं, उनके जीवन की कठिनाइयों को सामाजिक व्यवस्था के नए ढंग से बखूबी जोड़ा है। यह कविता उस दुर्दशा को दर्शाती है, जो उनके जीवन में होती है जब वे निरंतर दौड़ते हुए अपने काम को पूरा करने के लिए अपनी जान को भी खतरे में डालते हैं।

यह कविता समाज के वर्गवाद के विरोध को भी अच्छे तरीके से बताती है! बहुत बहुत शुभकामनाएं।

अनूप एन मिर्जा: अप्रैल अंक में अजय टोपवार की कविता में वह दर्द दिख रहा है जो आदिवासियों में है। आप अपनी ऐसी कृतियों के जरिए वेदना को प्रदर्शित करते रहें!

यजवीर सिंह:‘वागर्थ’ के अप्रैल अंक में शंभु शरण सत्यार्थी की लघुकथा ‘साइकिल’ के बारे में इतना ही कहना है कि गरीबी की हँसी के मायने चांदी की चम्मच लेकर पैदा होने वाले कहां से समझ पाएंगे? सुंदर।

प्रमोद कुमार सिंह, पटना:‘वागर्थ’ मार्च २३ में मनोरंजन व्यापारी की कहानी ‘जो मरने के लिए बचे थे’ बहुत मार्मिक और उच्चस्तरीय रचना है। यथार्थ का अद्भुत चित्रण। उन्हें साधुवाद और बधाई।

देवांशु पाल की कहानी ‘जिंदगी के सफर में’ बहुत अच्छी है। आज के कटु यथार्थ को दर्शाती हुई, समाज पर गहरी चोट और तीखा व्यंग्य करती हुई। विनोद शाही का लेख ‘अवतार की धारणा’ भी दिलचस्प है। ‘वागर्थ’ के इस उत्कृष्ट अंक के लिए धन्यवाद।

गौरे लाल दास, भागलपुर:‘वागर्थ’ पत्रिका पठनीयता के नित नवीन मानक का प्रतीक बन गई है। संपादकीय में विमर्श कभी-कभार विषयांतर होकर भटकाव का शिकार हो जाता है। ऐसा लेखक कौतूहल तो जगाता है, परंतु निष्कर्ष का भान नहीं हो पाता। इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि मौजूदा वक्त में इस पत्रिका ने साहित्य की जीवंतता को सुघड़ किया है। यह पाठकों को विचारमग्न बनाता है। संप्रेषण में सरलता व स्पष्टता का वरण करें, बाकी कलेवर से लेकर कविगण तक वरेण्य हैं, समादृत हैं। ‘नया ज्ञानोदय’, ‘कादंबिनी’ जैसी दीर्घजीवी पत्रिका के काल-कवलित होने की भरपाई मात्र ‘वागर्थ’ पत्रिका कर रही है। मार्च २०२३ के अंक में वरिष्ठ कवि प्रकाश मनु की रचनाएं संवेदनसिक्त हैं, जो भाषाई रूह में अनंतकाल तक मानस पटल पर छाई रहेंगी। सारी गजलें उम्दा हैं, इनमें भावों की सहजता कलात्मक ढंग से व्यंजित हैं। गजलगो में सृजन की शास्त्रीयता की समझ है। साहित्य की विभिन्न विधाओं का भी ध्यान रखें। लोक साहित्य, एकांकी, ललित निबंध, हाइकू, समस्या पूर्ति, रिपोर्ताज, ऐतिहासिक कथा, रोमान कथा इत्यादि को भी रचनाकारों से सीधे संपर्क कर प्रकाशित करवा सकते हैं।

कर्नाकट के महान संत कवि एवं दार्शनिक कनक दास का पद्य मनुष्यता के सगुंफन का सुंदर समन्वय है, भाषा चित्रमयी तथा आदर्श लोकोन्मुखी है।

राम निवास द्विवेदी:‘वागर्थ’ के अप्रैल अंक में इतना शक्तिशाली कवर चित्र, काल की दिशा एवं दशा का महाआलेख।