निर्णायक मंडल द्वारा वृद्धाश्रमों के सर्वश्रेष्ठ संचालक के रूप में सम्मान हेतु गौतम के नाम की घोषणा होते ही वहां उपस्थित अन्य संचालक व्यथित हो खुसुर-फुसुर करने लगे।

एक ने कहा- ‘गौतम के नाम की घोषणा! यह कैसे संभव है, मेरा वृद्धाश्रम तो एकदम साफ सुथरा, सर्वसुविधा युक्त है। इतना ही नहीं, जबसे मैंने इस आश्रम का कार्यभार ग्रहण किया है इसकी व्यवस्था में निरंतर खूब सुधार हुआ। यही कारण है कि आज मेरी संस्था में बुजुर्गों की संख्या 10 से बढ़कर 50 हो गई है। इस गौतम को देख लो, इसके आश्रम की व्यवस्था कैसी है यह तो मुझे ज्ञात नहीं, क्योंकि मैं वहां कभी गया ही नहीं, किंतु आंकड़े बताते हैं कि जब से गौतम ने कार्यभार संभाला है, वहां पर बुजुर्गों की संख्या 50 से घटकर मात्र 20 ही रह गई है। कुछ तो परेशानी होगी, तभी तो बुजुर्गों की संख्या निरंतर कम हो रही है, निश्चित ही यह सम्मान चमचागिरी या  भ्रष्टाचार का फल है?’

तभी मिस्टर गौतम ट्रॉफी लेने मंच पर पहुंचे तो निर्णायक मंडल के अध्यक्ष ने गौतम की भूरी-भूरी प्रशंसा करते हुए कहा- ‘आप सभी की संस्थाओं का निरीक्षण किया। हर जगह व्यवस्था चाक-चौबंद थी, किंतु मिस्टर गौतम के नाम का सम्मान हेतु चयन इसलिए किया गया है, कि वर्तमान में उनकी संस्था में केवल नि:संतान बुजुर्ग ही निवास कर रहे हैं। शेष को उन्होंने अपने अथक प्रयासों से उन्हीं की संतानों के साथ निवास के लिए पुनः गृह वापसी करवाने में अभूतपूर्व सफलता अर्जित की है।’

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