युवा कवयित्री।कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की छात्रा।
मैंने लोगों को देखा है
मैंने लोगों को जीते देखा है
बच्चों की किलकारियों में
बारिश की पहली बूंद के गिरने में
फूलों की पंखुरियों को निहारने में
मैंने लोगों को जीते देखा है
देखा है लोगों को
घड़ी की सुई से परिचालित होते हुए
मोटरों के धुएँ में अपने को खोते हुए
भीड़ ट्राम में चुप्पी साधते हुए
मैंने लोगों को हँसते देखा है
औरों की बेईमानी पर
खुद की विवशताओं पर
हर जीत पर
और उससे भी अधिक हार पर
मैंने लोगों को डूबते देखा है
अपने आप में
तैरते देखा है
मित्रता की लहरों पर
लेकिन सबसे ज्यादा
मैंने लोगों को देखा है
हँसते, रोते, खोते
अपनी ही कहानियों में।
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