सुपरिचित दलित लेखक। पहली दलित आत्मकथा अपनेअपने पिंजरेसे चर्चित। हाल में एक सौ दलित आत्मकथाएंपुस्तक प्रकाशित।  

 

बाइयां

मुंह अंधेरे आ जाती हैं
पानी भरने बाइयां
सीढ़ियों से चढ़ते हुए
कितने मंजिल पर हो फ्लैट
उनके पांवों को नहीं होता दर्द
न ही होती थकान उनके शरीर में
उफ तक वे नहीं करतीं
घड़ी भर सुस्ताने का
टाइम भी नहीं मिलता उन्हें
एक एक फ्लैट से लाती है पहले खाली घड़े
सीढ़ियां उतर कर नल के नीचे
लाइन में रखती है घड़े
नंबर आने पर
घड़ा उठा कर पेट के सहारे
हाथ से पकड़ कर पानी से भरा घड़ा
वे चढ़ती हैं सीढ़ियां बार-बार
जब तक चार-पांच घड़े पानी
नहीं हो जाता पूरा
पानी हो जाने पर
बताती हैं वे
मैम साब पानी हो गया पूरा
तब तक मैम साब सोई होती है
आवाज़ सुनकर जाग जाती है
और जागने पर कहती हैं
‘बाई चाय बना’
‘जी मैम साब’, कहते हुए
बाई रसोई में चली जाती है
गैस जलाती है पानी का बर्तन रखकर
प्याले और प्लेट उतारती है
पानी उबलने पर चाय की पत्ती डालती है
फिर दूध और चीनी
चाय तैयार होने पर
पहले मैम साब को देती है
फिर अपने लिए लेती है
पहली चाय वह यहीं पीती है
रसोई के बाहर एक कोने में खड़े होकर
साथ में बिस्किट का टुकड़ा
जो पहले से रखा होता है
उसके लिए, रसोई के दूसरे कोने में
चाय पीकर समय देखती है
दीवार घड़ी में
सुबह के 6 बजे हैं
धूप के कुछ टुकड़े
प्रवेश करते हैं रसोई में
किरणों के साथ आती हैं चिड़ियां
फुदकती हैं, गाती हैं
बाई बाजरा डालती है
बाजरा चुगते हुए वे खुश होती हैं
मचलती हैं
उनका मचलना और फुदकना देख
जैसे बाई पिघलती है
पिघलते हुए ही ढेर सारे बर्तन साफ़ करना है
अभी तीन जगह और जाना है
पल भर आईने के सामने खड़ी हो कर
अपने आप से कुछ कहती है
पसीना पौंछती है
आईने में अपने आप को देखती है
बिखरते देखती है बिखरे बाल
पानी ढोते हुए ब्लाउज का भीग जाना
कभी कभी हाथ से निचोड़ती है
पानी छलक जाता है बार-बार
सीढ़ियां चढ़ते हुए
बैलेंस रख नहीं पाती कभी
भूल जाती है कदमताल
ऊपर चढ़ना फिर उतरना हर बार
जितने घर उतनी ही बार
भीगना और सूखना
बाइयों की दिनचर्या में शामिल है
कभी आंसुओं से भीगना
कभी पानी से
फर्क क्या पड़ता है
आंखें भी सूख जाती हैं
कभी नदी भी बन जाती हैं बाइयां
जैसे आंसुओं से आंखों का
और पानी से ब्लाउज का
जैसे नदी का सूख जाना
और हार जाना फिर पानी से
पर बाइयों के भीतर
कहीं कुछ रिसता है
जैसे किसी पहाड़ी के नीचे पानी
उनके भीतर भी कुछ रिसता है
चाहे पानी हो या आंसू।

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