वरिष्ठ कवि। अवसर प्राप्त प्राध्यापक। हिंदी–बांग्ला दोनों में लेखन।
समर
रात के आगोश में
खुली हुई किताबों के पन्ने
रह-रह कर इशारा करते हैं
जीवन निस्तब्ध नहीं, वाग्मय है
रात-जगा कोई पंछी संदेश देता है
जीवन अनमोल है
दुष्टजन छल कर जाते
तरह-तरह के वादों से लुभाते
जनमानस को
मैंने अतीत को देखा है, परखा है
और फिर समझा है
भीख से नहीं मिटती भूख
रात की गोद में
खुली हुई किताबों के पन्ने
रह रह कर इशारा करते हैं
जीवन एक रणभूमि है।
बाधाएं
समय खो जाता है अतीत की गहराई में
अतीत क्या कोई समुंदर है?
कोई गोताखोर ढूंढ लाए उस समय को
जहां कैद है
मेरी तुम्हारी अंतिम मिलन की घड़ी!
तुम चले गए हजारों कोस दूर
फिर भी कैद हो तुम
एक सोने की डिबिया में
और उस डिबिया में एक भौंरा है
उस भौंरे में बसते हैं मेरे प्राण
लेकिन ये सब अर्थहीन है
न तुम उड़ सके न मैं चल सका
कोई गोताखोर ढूंढ लाए उस डिबिया को
मैं खोल दूंगा उसका मखमली ढक्कन
मुक्त कर दूंगा तुम्हें कैद से।
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