कवि और लेखक। तुम अब स्वप्न नहीं देखतीं’, ‘जिंदगी जब हिसाब मांगती है’ (कविता संग्रह)

किसी को रोटी खाते हुए देखना

किसी को रोटी खाते हुए देखता हूँ तो
मुस्कुराता हूँ
मेरे मुस्कुराने का कोई मूल्य नहीं
जरूरी है उसका पेट भरना
भर पेट खाने के बाद कहना हरि बोल
पूरी कायनात का सुख लेते हुए
उभरती है उसके चारों ओर चरम तृप्ति

आलू की रसदार सब्जी
पनियल दाल, सलाद अचार, पापड़ कुछ नहीं
एक मजदूर का खाना अलग होता है दस्तरखान से

वह मेहनत की खाता है, ईमानदारी की
दस्तखान पर बैठा आदमी अक्सर भूखा नहीं होता
इसलिए चरम तृप्ति भी नहीं होती
कल थोड़ा मसाला सही डालना
उठ जाता है यह कहता हुआ

दिहाड़ी चौक पर सुबह फिर नंबर लगाता है
वह प्राणी
दिहाड़ी लगी तो खाते हुए फिर गुनगुनाएगा
राम तेरी पूजा करे संसार
और नहीं लगी दिहाड़ी तो भी
प्याज हरी मिर्च के साथ खाते हुए रोटी
गुनगुनाएगा राम तेरी माया कहीं धूप कहीं छाया
शुकराना हमेशा
इसीलिए मुस्कुराता हूँ
जब-जब उसे रोटी खाते देखता हूँ।

द्वारा : 56, धीर पुर, निरंकारी कॉलोनी, अम्बेडकर चोपड़ के पास, दिल्ली-110009 मो.9350147760