चर्चित कवि।दो काव्य संग्रह बीमार मानस का गेहऔर विभीषण का दुःख।प्रकाशन विभाग, बिहार विधान परिषद, पटना में कार्यरत।

खारिज़ करने के तर्क

मुझे उसे समंदर बनाए जाने पर
गहरा एतराज लगा
मैंने उसको सही औक़ात दिखाने के लिए
उसे रेगिस्तान कहना चाहा
याद आया रेगिस्तान में भी दुबई, कतर जैसी
समृद्ध शहराती दुनिया है
दुनिया को गतिमान रखने के तेल-खजाने हैं
मैंने उसे ताल तलैया की माफिक छोटा बताना चाहा
तब लगा कि नाहक ही
तालाबों की औकात बताने में लगा हूँ
कितने काम के होते हैं तालाब
नास्तिक, आस्तिक, जीव जंतु, चिड़ई-चुनमुन
रंग बदरंग सबके काम के होते हैं वे
नदी नाले आदि से भी उपमित कर उसे
उसकी सही जगह दिखाने की तरकीब पर
विचार किया
जाहिर है यह भी अनुचित लगा
नदी तो सभ्यताओं की जन्मदात्री ही है
और अंधमनुष्यों के आधुनिक असभ्य
अंधविश्वासी करतबों के सिंचन का जरिया भी
और, नाले चाहे ख़ुद गंधाएं
हम मनुष्यों की कई-कई दुर्गंधों को पाटने में
सहयोगी हैं
अंततः तय किया मैंने
बिना मुहावरों, कहावतों एवं दृष्टांतों के ही
उसे सीधे साफ ही क्यों न ख़ारिज किया जाए!

तेरे लिखे में आग लगे

तेरे लिखे में
अगर दुख है
दुख सबका है
तो तेरे लिखे में आग लगे

सबका दुख कोई ओढ़ नहीं सकता
ओढ़ना भी नहीं चाहिए

सब में से कुछ-कुछ
कुछ को तो ना-हक़
दुख देने वाला निकलेगा ही

किसी के ना-हक़ सुख में
साथ होना भी
जायज़ नहीं है बल्कि
सबका होना

सबके सुख दुख में शामिल होना
दरियादिल होना नहीं है
अवसरवाद में रमने का
दूसरा नाम है यह!

चुप्पी और गुस्से का वर्णभेद

चुप्पी सवर्ण है गुस्सा दलित!
चुप्पी का गुस्से के ऊपर
एक इतिहास है हमलावर होने का!

जीतती रही है सतत चुप्पी
चुप्पी जननी है जबकि गुस्से की!

जननी का जितना
और हारना संतान का
एक द्वंद्वात्मक संबंध सिरजता है
एक अचरज भरी पहेली है यह
कबीर की उलटबांसियों से भी
अधिक उलझनकारी
खुसरो की पहेलियों से भी
ज़्यादा अचरजकारी!

संपर्क : बसंती निवास, प्रेम भवन के पीछे, दुर्गा आश्रम गली, शेखपुरा, पो. वेटनरी कॉलेज, शेखपुरा, पटना-८०००१४ (बिहार) मो.७९०३३६००४७