अनुवाद, लेखन तथा संपादन का लंबा अनुभव। आकाशवाणी में निदेशक के पद पर।
अंग्रेजी की असम निवासी चर्चित कवि और कथाकार। काव्य संकलन- ‘ब्लू वेसेल’, ‘इनटू द माइग्रेंट सिटी’ – और ‘रेड रिवर’ और (संस्कारनामा)।
बंदूक़ की नोक पर चूम रहे हैं वे
जानते हैं कि चूमते हुए वे नहीं पकड़े जाएंगे
चूम रहे हैं वे
मानो चिनार ने कभी नहीं देखा खून का बहना
देखा है तो बस होंठों की लाली
आसिफा अब बड़ी हो चुकी है
चूम रही है वह अपने प्रेमी को
नाच रहे हैं उसके घोड़े
घास में फैल गई है ख़ुशी की उमंग
खूबसूरत घाटी चली जा रही है अपनी रौ में
क्योंकि वे चूम रहे हैं।
चूम रहे हैं वे
बाढ़ के पानी में निर्बाध बहते डोंगी के ऊपर
अपनी सितारों-भरी नजरों से देख रहे हैं वे
चार की बलुआही मिट्टी
कैसे बनती जा रही है खड़िया
नाच रहे हैं वे
गुनगुना रहे हैं वे अपना मियाँ गाना
बुला रहे हैं अपने भूत-प्रेतों और अगिनपाखी को
मछलियों की ख़ुशबू से कर रहे हैं
वे अपनी जीभ को तर
वे चूम रहे हैं।
चूम रहे हैं वे
क्योंकि नहीं बनना उन्हें जले हुए मांस का लोथड़ा
भीड़ के हाथों मारे गए इंसान की लाश
टूटे फूटे रात, क्षत विक्षत अंगों का ढेर
लेकिन वे एक हो जाना चाहते हैं
खून से लथपथ अपनी टोपी उल्टी पहनकर
जुनैद चूम रहा है अपनी प्रेमिका को
इशरत जहां बुलेट से छलनी
अपना कुर्ता खींच कर नीचे
इस परीकथा में
अपने प्यारे राजकुमार का
कर रही है चुंबन
होंठ बन गए हैं शहद
जीभ हो चुकी है गुलाब
चूम रहे हैं वे हर कहीं
हो भले ही सुदूर का माजिदभीठा
इंफाल, अनंतनाग, कंधमाल
या हो रेलवे प्लेटफ़ॉर्म, बस अड्डा, पार्क
चाय की दूकान
शहर की गली हो या
फिर क़रीने से कटा बगीचा
हो बड़े दरवाज़ों के भीतर सुरक्षित
नंगा आपका मुहल्ला
वे चूम रहे हैं
इसके पहले कि कोई पेलेटगन छीन ले
किसी बच्चे की आंख
या आंखों में सपने लिए वह चरवाहा
हो जाए भीड़ के ग़ुस्से का शिकार
बंद कर दें वे उसके दिल का धड़कना
लूट लें उसके आंसू
यही है उनका आक्रोश
साफ़ आसमान देखने का यही है उनका ख्वाब
हाथ बन जाए पेड़ों की टहनियाँ
शरीर बन जाए गरमियों में टिमटिमाते जुगनू
उनके मुंह हो जाएं आज़ाद कि ले सकें चुंबन
उनकी जीभ चख सके
अपने घर प्यार का गरम भात।
वे अभी, बिलकुल अभी चूम रहे हैं
उन्नाव में, खम्माम में, कुनान-पोशपोरा में
वे चूम रहे हैं
इस स़फे पर
अपने धुँधलाते शब्दों
और स्याही के धब्बों के बीच
वे चूम रहे हैं
क्योंकि यही है उनका विद्रोह
यही है उनका गांव-शहर-मोहल्ला-देश
उनका मानचित्र भी यही है और मज़हब भी
भगवान के लिए बंद कर लो अपनी ज़ुबान
वे तो बस चूम रहे हैं।
राजेश कुमार झा : ईमेल- kjrajesh@gmail.com
नबीना दास : ईमेल- nabinamail@yahoo.com
“क्योंकि नहीं बनना उन्हें जले हुए माँस का लोधरा”
“भीड़ के हाथों मारे गए इंसान की लाश”
रोम खड़े हो गए, पड़के!
क्या खूब लिखा है आपने!
❤