युवा कवयित्री। काव्य संग्रह- ‘बस कह देना कि आऊंगा’।
नदियों का अंतर्नाद
नदी!
उस गुमशुदा औरत की तरह हो गई है
जिसके होने के निशान तो मिलते हैं
पर वह नहीं मिलती
हमने उसे मृत घोषित कर दिया है
और अब शेष बचे
उसके अवशेषों को भरने की कर रहे हैं साजिश
हम आते हैं लंबी-लंबी गाड़ियों में बैठकर
उसकी खोई हुई जिंदगी का सबूत इकट्ठा करने
उसके वक्ष पर लिखे इतिहास को पढ़ने
उसके सूखे हुए जिस्म पर उगे नागफनी से जख्मी
उन फफोलों को नजरअंदाज करके
बजबजाते हुए गड्ढों में खड़े होकर
खिंचवाते हैं अपनी तस्वीरें
फिर अपनी कलम में भरकर स्याही
लिखते हैं लंबे-लंबे आलेख
उसकी बेआवाज चीखों पर
हमारे कान नहीं सुनना चाहते
बलात्कृत नदियों के अंतर्नाद को
हमारी आंखें नहीं देखतीं
उसके जिस्म से रिसते हुए मवाद को
हमें महसूस ही नहीं होता नदियों का दर्द
हां, यही सच है
कि नदियों की हत्या में शामिल हैं
हमारी अपनी कई पीढ़ियां..!
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