वरिष्ठ कवयित्री। बस कह देना कि आऊंगा’, ‘मनरंगना’ (काव्यसंग्रह)

शहर के बीच बहती वह नदी

शहर के बीचो-बीच बहती वह नदी!
जिसकी पथराई आंखों में आज भी
जिंदा थे बीते कल के सपने
वह नदी इन दिनों जाने कहां
गुम हो गई
ढूंढ़ रही हूँ गूगल पर शायद मिल जाए

पिछले जेठ की ही तो बात है
जब देखा था उसे
अपने ही जहरीले हो गए पानी पीते हुए

अंदेशा है कि
कहीं अपने ही पानी में
डूबकर मर तो नहीं गई नदी

शहर के श्रेष्ठजन
अपनी-अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने में भिड़े हैं
कुम्हार सूखी मिट्टी से
जद्दोजहद करता नजर आ रहा है
कौआ, तोता, मैना
शहर छोड़कर जाने की तैयारी में हैं

पानी पर लिखी कविताएं
एक-दूसरे का हाथ पकड़ कर
आत्महत्या करने की सोच रही हैं
बड़ी-बड़ी गोष्ठियों में कवि
जमीन रस से भींगी कविताओं को पढ़कर
वाहवाही लूट रहे हैं

चंद झूठे दिलासों के बीच खोदे जा रहे हैं
पृथ्वी की छाती में सुरंग
देखकर नदियों का दर्द
टूट रही है पहाड़ की चुप्पी

तो क्या नदी
अब सिर्फ किताबों के पन्नों पर दिखेगी
इतिहास को बांचती नदियों की मृत्यु का
दारुण संताप रह जाएगा किस्सों में
और नदियों पर लिखी कविताओं से
बुझाई जाएगी प्यास?

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