वरिष्ठ कवि।अब तक कविताओं की ११ पुस्तकें प्रकाशित। ‘मरुधर के स्वर’ पत्रिका का संपादन।
बस इंतजार करता हूँ
बर्फ पिघलेगी तो
खूबसूरत नजारे दिखेंगे
हरियाली जन्मेगी
फूल खिलेंगे और पक्षी भी चहचहाएंगे
ऐसा ही तुम्हारे लिए भी सोचता हूँ
उसी का इंतजार करता हूँ
मेरी ऊष्मा कब प्रभावित करेगी
कब मेरी बात तुम तक पहुंचेगी
फिर कभी मुड़कर न देखने वाली
तुम्हारी प्यारी आंखें ठहर
मुझे देखेंगी
फिर सदा के लिए मेरी होंगी
मैं इंतजार करता हूँ
बरसों बरस हारता नहीं
तुम्हारी वृद्धावस्था से भी नहीं डरता
न ही अपनी
बस इंतजार करता हूँ
यह बर्फ जरूर पिघलेगी।
खिड़की
इस खिड़की ने कहा
बाहर देखो और प्रेम करो
मैंने झांका तो केवल पौधे दिखाई दिए
मुझे असमंजस में देखकर
फिर कहा प्रेम करो, थको मत
यकीन किया उसकी बातों पर
अगले दिन फूल दिखे खिले हुए
दूसरे दिन कुछ यात्री
हर दिन कुछ-न-कुछ नया
थोड़ा-थोड़ा प्रेम किया सभी से
अच्छा लगा जैसे मन
कैद से बाहर आ गया
रात में जुगनू भी दिखे
रोशनी की लंबी रेखा खींचते हुए
लगा इनसे भी प्रेम कर सकता हूँ
उसी समय कुछ जानवरों की आवाजें आईं
इनसे भी जुड़ गया
जिस प्रेयसी के लिए सोचता था
वह कभी नहीं दिखी
लेकिन एक दिन
विवाहित जोड़ा गुजरा पास से
लगा मैं ही उसके साथ हूँ
उसके प्रेम में डूब गया
इतना अधिक कि
भूल गया मैं खिड़की के भीतर हूँ!
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