सुपरिचित वरिष्ठ कवि। चर्चित कविता संग्रह समुद्र पर हो रही है बारिश। फिल्म निर्माण से जुड़े।

1.
हमारी नदियां गुलाम हैं
उन्हें सुखा दिया गया है
हमारे जंगल गुलाम हैं
उन्हें काट लिया गया है
हमारी हवा गुलाम है
सोख ली गई है उसकी प्राणवत्ता
हमारे पहाड़ गुलाम हैं
उन्हें खन लिया गया है
आकाश को भर दिया गया है
खतरनाक गैसों और रेडियोधर्मी तरंगों से
अपनी हवा, पानी, मिट्टी और आकाश
सब कुछ नष्ट कर चुकने के बाद
हमारे बचे रहने की
कितनी उम्मीद है डॉक्टर?

2.
बसंत
कैलेंडर मत देखो
उसमें किसी महीने का नाम बसंत नहीं है
मत पुकारो मुझे अपनी ग्यारहवीं मंजिल से
अभी तो मैं तुम्हारी स्मृतियों में हूँ
जब वे भी नहीं रहेंगी
तो मैं कहां रहूंगा

आऊं तो कहां आऊं और
कहां छोड़ आऊं अपना सामान
सहजन होता तो उसकी फलियों में आता
आम होता तो बौर में
कच्चा आंगन जो होता कहीं तो
सेम, तुरई और लौकी के
कत्थई, पीले और सफेद फूलों में
फूल बनकर आ जाता
फैल जाता दीवारों पर

तुम्हारे देश में कोई स्त्री
अब वीणा क्यों नहीं बजाती
सुन कर देखो अपनी सीडी पर राग बसंत
मैं तुम्हें एक शोक धुन की तरह सुनाई दूंगा।

3.
चट्टानों को
या तो ज्वालामुखी बनाते हैं
या समुद्र
चट्टानें चट्टानों को नहीं बनातीं
मनुष्य को भी मनुष्य नहीं
कोई न कोई तूफान ही बनाता है।

4.
घड़ियां होती हैं निहायत बेवकूफ
बुरे से बुरी घड़ी में भी
वे कुछ न कुछ बजाती रहती हैं
उनसे ज़्यादा बेवकूफ वे
जो वक्त के लिए घड़ियों का मुंह ताका करते हैं
बेकार लोगों की घड़ियों में होता है
बेकार का वक्त

जिन्होंने दुनिया में किए बड़े काम
क्या उन्होंने कभी घड़ियों का मुंह ताका?
यदि आप किसी को बार-बार घड़ी देखते पाएं
तो समझ जाएं कि वह
किसी दूसरे के वक्त से चल रहा है
और जिसका वक्त दूसरे के कब्जे में जा चुका है
उसके पास अब बचा क्या है?

5.
धरती हिलती है
तो बस्तियां मलबे में बदल जाती हैं
समुद्र हिलता है
तो उलट देता है नावों को
जहाजों को डुबो देता है
बादल हिलते हैं तो बिजलियां गिराते हैं
खड़ी हुई फसलें बर्बाद हो जाती हैं

लेकिन जब कोई पेड़ हिलता है
तो धरती खिले हुए फूलों से भर जाती है और
झोलियां पके हुए फलों से

लेकिन ऐसे हरे-भरे पेड़ों को काटते हुए
नहीं हिलते मनुष्यों के दिल…

6.
आकाश में
न कोई पक्षी था न बादल न सूर्य
इतना खाली था आकाश
कि नीला रंग तक नहीं था

धरती पर न कोई वृक्ष था न झाड़ी न दूब
इतनी खाली थी धरती
कि हरा रंग तक नहीं था

आकाश के लिए सूर्य तो क्या होता मैं
अपनी धरती के लिए
एक हरा वृक्ष ही हो जाता
इतना हरा वृक्ष
कि छाया भी हरी हो जाती।

7.
खंडहर पत्थरों के होते हैं
फूलों के नहीं
बहुत छोटा होता है उनका जीवन
वे पीछे छोड़ जाते हैं
अपने बीज
चुपचाप
बिना किसी से कहे
कि पत्थर बोने से पहाड़ नहीं उगते।

8.
वाल्मीकि ने अपने
पत्थरों को पानी पर तैराया था
स्वामीनाथन ने
अपने पत्थरों को हवा में उड़ाया था
और तुमने?
क्या किया अपने पत्थरों का
कुछ ने अपने गुर्दों में जमा कर रखे हैं पत्थर
और कुछ ने पेडूं में
पता करो
तुम्हारे सीने में
दिल की जगह कोई पत्थर तो नहीं धड़क रहा

पत्थरों से फूटी चिंगारी से ही
शुरू हुई थी सभ्यता की शुरुआत लेकिन
सिर कुचलकर मारने के काम में
आज भी लाए जाते हैं पत्थर
पता नहीं पत्थर
क्या सोचते होंगे आदमी के बारे में

पत्थरों के पास होता है एक भारी विचार
जो उन्हें हिलने नहीं देता

मुक्त करो पत्थरों को अपने आदिम विचारों से
पत्थर युग से बाहर आने दो उन्हें।

भारत माता

मातृ ऋण इस तरह भी चुकाते हैं हम कि
पिता के कहने से परशुराम मां का सिर
धड़ से अलग कर देते हैं
हमने गाय को कहा माता
तो बूढ़ी होते ही पीटकर घर से निकाला और
घूरों पर मरने के लिए छोड़ दिया
हमने धरती को कहा माता
तो उसकी हरियाली को
उजाड़, बंजर बना कर छोड़ दिया
हमने नदियों को कहा माता
तो उन्हें मल-मूत्र और
गलाज़त से भरकर कुंभीपाक बना कर छोड़ दिया

कहते हैं नागिन अपने बच्चों को
खुद ही खा जाती है
लेकिन कुछ बच्चे ऐसे भी होते हैं
जो अपनी मां को खा जाते हैं

माता! तेरे बहुत से सपूत इन दिनों कर रहे हैं
तेरे नाम का कीर्तन
भारत माता!
अपनी ख़ैर मना।

दरवाजा

दरवाजा बारिश में भीगा फूल गया है
कभी पेड़ था हम समझे थे भूल गया है
अब न चौखटे में अपने फिट बैठ रहा है
इतनी कीलें ठुकी हुईं पर ऐंठ रहा है
बारिश छूने ज्यों कुछ बाहर झूल गया है
कभी पेड़ था हम समझे थे भूल गया है…।

चले गए जो लोग

चले गए जो लोग
कहां जाकर अब उन्हें तलाशें
जहां मछलियां तैर रही थीं
गंगा तट पर तैर रही हैं लाशें
शांति लिखी होठों पर लेकिन
सीने में कोहराम लिखा
हम सबका काम तमाम लिखा

श्याम घटा पर
हिंद महासागर का जैसे नाम लिखा है
भक्तों के सीने पर जय श्री राम लिखा है
सभी जानते इन लाशों पर
किस कातिल का नाम लिखा है…

मछलियां

मछलियों को लगता था
कि जैसे वे तड़पती हैं पानी के लिए
पानी भी उनके लिए तड़पता होगा
लेकिन जब खींचा जाता है जाल
तो पानी मछलियों को छोड़कर
जाल से निकल भागता है
पानी मछलियों का देश है
लेकिन मछलियां
अपने देश के बारे में कुछ नहीं जानतीं…।

संपर्क : विवेक खंड, 25-गोमती नगर, लखनऊ-226010  मो.9450390241