मरियम शुजाई
1953 में तेहरान में जन्म। रंगे पाइज़’, ‘दसीसे ब्लाक 44’, ‘निशानबहार’, ‘माजराए खालाजानआदि रचनाएं।
नासिरा शर्मा
हिंदी की चर्चित कथाकार। ईरानी समाज तथा राजनीति के अतिरिक्त साहित्य, कला और सांस्कृतिक विषयों की विशेषज्ञ।

मैंने बर्तन धोने वाली मशीन से इसपंदान उठाया और गैस के बर्नर पर रख दिया। लाइटर से जब गैस जलाई तो उसकी नीली लौ से बचने के लिए अपना चेहरा पीछे किया। दराज से इसपंदान की डिबिया निकाली और चुटकी भर अपनी हथेली पर रखी। जब इसपंदान से धुंआ निकलने लगा तो मैंने उसे गोल-गोल घुमाना शुरू कर दिया और साथ ही बुदबुदाना भी… ‘इसपंद दूने… इसपंद सी व से दूने.. लगी नज़र उतार दे।’

उसके चेहरे के सामने कहवे का फिनजान घुमाया, अधखुली आंखों ने कुछ ढूंढ़ा और फिनजान को फिर घुमाया और फिक्रमंद लहजे में बोली, ‘तुम्हें नजर लग गई है। तुम पीर और बुध को इसपंद का धुआं करो।’

फिर फिनजान की तलछट को पढ़ा, दोबारा उसको घुमाया, फिर घुमाया।

‘एक औरत! एक औरत लंबे कद और सुनहरे बालों वाली!’

परवेज को लंबे कद वाली और सुनहरे बालों वाली लड़कियां पसंद हैं। जब मुझे यह सच पता चला तो मैंने बाल सुनहरे रंगवा लिए और जब मैं ब्यूटी पार्लर से लौटी तो इतराते हुए मैंने सर से स्कार्फ उतारा और बालों को लहराते हुए बड़ी अदा से बोली, ‘अच्छी लग रही हूं न… पसंद आया?’

‘हां, बुरा नहीं है। लेकिन नेचुरल चीजें ज्यादा अच्छी लगती हैं।’ उसने अखबार पर झुके सर को उठाया और ठंडे स्वर में कहा।

उसका जवाब सुनकर मुझे ऐसा लगा जैसे सारी दुनिया की बर्फ मेरे दिल पर जमा हो गई है।

मैंने उड़ती हुई नजरें अपने चारों ओर घुमाईं। सारा घर बिखरा हुआ लगा। पर्दे बेतरतीब थे। खाने की मेज पर नमकदान, चम्मच-कांटा कुछ भी अपनी जगह पर नहीं था। गुलदान में फूल भी नहीं थे। वह एक गुलदान पीले रंग के पानी से भरा फूलों के बिना ठीक मेरे दिल की तरह लगा। परवेज के कपड़े सोफे पर थे और कई जोड़े जूते दरवाजे के बाहर उलटे सीधे पड़े थे। ये जूते अपनी जगह पर क्यों नहीं हैं? कहां गया मेरा सारा सलीका और ध्यान!

घर में सुलगते इसपंद की खुशबू फैली हुई थी। मैं भूल गई थी कि मैंने इसपंदान के नीचे जलता बर्नर छोड़ दिया है। याद आते ही मैं किचन की तरफ लौटी ताकि मैं बर्नर को बंद कर दूं।

दादी और खाला जान जल्दी-जल्दी सोने के इसपंदान के सुलगते लाल कोयले पर इसपंद को छिड़ककर घुमा रही थीं, और जोर-जोर से कह रही थीं, ‘एई यार मुबारक!’ हर आदमी अपने काम में लगा था। मेरा दिल भी किसी झील की तरह साफ हो उठा। मेरी जिंदगी की सब से बड़ी तमन्ना पूरी हुई थी, सचमुच मैं परवेज की बीवी बन गई थी। मुझे खुद यकीन नहीं आ रहा था। जो भी परवेज को देख रहा था, वह उसके मर्दाना हुस्न की तारीफ करता था। लेकिन खालाजान जो एक जहांदीदा औरत थीं वह बोलीं, ‘यह मर्द आतफे जैसी सीधी-सादी जज्बाती लड़की के लिए मुनासिब नहीं है! पुरानी कहावत है, हसीन मर्द दूसरे का माल होता है।’ लेकिन मेरी मां को लगता था कि मेरी खाला जलन के मारे ऐसा कह रही हैं, क्योंकि उनका दामाद बहुत बदसूरत था। मामान खाला की बात का जवाब देती, ‘बात मर्द-औरत की नहीं है। बात यह है कि पहली नजर में कौन दिल को भा जाता है!’ मां परवेज की तरह के दामाद की आरजू रखती थीं।

लेकिन इस वक्त न खालाजान थीं, न मामान थीं। आज जबकि हम दोनों अपनी जवानी को पीछे छोड़ आए तो जब भी दावतों में औरतों का सारा ध्यान परवेज की तरफ रहता तो मुझे बहुत बुरा लगता था। अजीब तरह के उलटे-सीधे ख्याल मेरे दिमाग में चक्कर लगाते थे, फिर अपने आप चले जाते थे। जब मैं शिकायत करती कि तुम कहां जाते हो, कहां से आते हो मुझे कुछ पता नहीं होता तो उसका यह जवाब सुनने को मिलता, ‘मेरी जान! तुम्हें अच्छी तरह से पता है कि मैं कहां जाता हूँ और कहां से आता हूँ। आखिर तुम और क्या जानना चाहती हो? हर पल की तुम्हें खबर दूं? औरतें शायद ज्यादा बात करने की शौकीन होती हैं!’

मैंने बेटे के स्कूल से आया दावतनामा कहीं रख दिया था और भूल चुकी थी। बेटा गुस्से से भरा घर लौटा और सलाम के बाद फौरन ठंडे लहजे से कह उठा, ‘तुम्हारा पूरा ध्यान बाबा, कपड़ों और यूडीक्लोन की तरफ रहता है। तुम हमें भूल चुकी हो। अगर शौहर से तुम्हें इतना प्यार है तो फिर बच्चे क्यों पैदा किए, वह भी दो-दो?’

मेरी ताज्जुब भरी आंखों को देख वह कमरे से निकला। उसने दरवाजा जोर से बंद किया और घंटों कमरे से बाहर नहीं निकला। इसके बाद कई दिनों तक उसका मुंह फूला रहा। बेटा भी जिंदगी के इस घेरे से मुझे निकाल नहीं पाया, यहां तक कि वह इस बीच इम्तहान में दो बार फेल हुआ,  फिर उसने पढ़ाई छोड़ दी। जब वह किसी तरह स्कूल जाने पर राजी न हुआ तो अपनी मर्जी के खिलाफ परवेज ने जोर देकर उसे विदेश भेज दिया। मेरे और उसके बीच का रिश्ता उस दिन से आज तक अच्छा नहीं बन पाया।

जले हुए इसपंद के धुएं ने मुझे खांसने पर मजबूर कर दिया। मैं बाथरूम की तरफ भागी ताकि चेहरे पर पानी की छींटे मार सकूं। मेरी आंखें आईने पर पड़ी तो उसमें छोटा सा गुलदान दिखा। उसपर मेरी आंखें टिक गईं। मैंने उसे उठाया और बेदिली से उसे हटाकर किनारे रखा। आईने के ऊपर लगी लाइट जलाई और टकटकी लगा अपने चेहरे पर पड़ी झुर्रियों को देखने लगी!

‘हर हालत में इसे जाकर साफ कराऊं… बालों का रंग भी दूसरा करवाऊंगी। परवेज चाहे जो कहे कि नेचुरल चीजों के आगे  बनावटी चीजें बेकार लगती हैं, इस महीने मैं यह काम कर डालूंगी!’

वह आईने के सामने से हटकर थोड़ा आराम करने के लिए बेडरूम की तरफ बढ़ी। जहां लाल रंग का बेडकवर और मेरुन रंग के पर्दे लगे थे।

बेटी रहा की आंखें अचानक बेडरूम के अंदर गई तो कह उठी, ‘वाह मामान! कौन सा रंग है यह? रंग आपकी उम्र के साथ नहीं जाता है।’

मैंने तेज नजरों से उसे घूरा। कह उठी, ‘रंग का उम्र से क्या लेना देना? यह लाल रंग तुम्हारे बाबा को पसंद है।’

इतना सुनकर उसने गर्दन हिलाई और लाल कमरे से बाहर निकलते हुए बोली, ‘अरे हां, बाबा जब नई कार का रंग लाल पसंद करते हैं तो तुम इस कमरे को लाल पुतवा लो।’

इतना कहकर हँसते हुए वह बाहर निकली। उसे जब महसूस हुआ कि उसका यूं कटाक्ष करना मुझे अच्छा नहीं लगा तो मेरी तरफ़ आई, मेरे गाल को चुटकी से पकड़ते हुए बोली, ‘मेरी हसीन मामान! तुम और तुम्हारे शौहर दोनों बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम हो न?’

तीन साल पहले जो पहला मर्द पसंद आया मेरी बेटी ने उससे शादी कर ली। मैंने उसके इस फैसले को पसंद नहीं किया और गुस्से से बोली, ‘इससे कहीं अच्छे मौके तुम्हें मिलेंगे! तुम्हें इतनी जल्दी किसलिए है?’

उसने आंखों में आंखें डाल मुझसे कहा, ‘आपके लिए भी यह बेहतर होगा कि आपके  सर से जितनी जल्दी बोझ उतरे, उतनी ही जल्दी और आराम से बाबा तक पहुंच पाएंगी!’

यह भी सही है, जिंदगी हमेशा कामयाबी नहीं देती है लेकिन बेटी और बेटे का मस्तमौलापन और बेपरवाह अंदाज विरासत में अपने बाप से मिला है, इसलिए किसी से कभी कोई शिकायत नहीं रहती!

दिन में कई बार मैं अपने ऊपर लानत भेजतीखुद को बुरा भला कहती। मगर कोई फायदा न होता। यह जलन और शक का भूत मेरा पीछा नहीं छोड़ता था। इधरउधर से जो भी सुनती उस से मेरी तकलीफ और बढ़ जाती।

अभी कुछ दिन पहले ही मैंने सुना कि मेरी सहेली बेचारी अफाक के साथ कितना बुरा हुआ। उसका शौहर एक जवान औरत के हाथ में हाथ डाल घर आया और उसकी ताज्जुब से फटी आंखों की तरफ देखकर बोला, ‘यह मेरी बीवी है, तुम्हारी तरह।’

अफाक आगे बताने लगी, ‘पहले मैं सोचती थी कि इस तरह के इत्तफाक सिर्फ कहानियों में होते हैं, अब अपनी जिंदगी में देख रही हूँ।’ इतना कहकर वह रोती जाती, बात करती जाती।

तभी रहा ने घंटी बजाई। वह मिलने आई थी, मजबूर हो गई फोन काटने के लिए। जैसे ही वह फ्लैट में दाखिल हुई उसके नथुनों में फ्लैट में फैली गंध पहुंची तो वह पूछ बैठी, ‘खाना जल जाने की बू आ रही है। क्या फिर आप सौतन की फिक्र में डूबी थी मेरी हसीन मामान या फिर इस टापिक पर कोई प्रोग्राम सुन रही थी?’

‘सलाम की जगह ये बातें?’ इतना कहकर मैंने जाकर गैस बंद कर दी।

मैंने फ्रेम को उठाया जिसमें हमारी शादी की सालगिरह की तस्वीर लगी हुई थी और उसे देखने में डूब गई। परवेज के बाल चमकीले और काले। अब सारे के सारे सफेद हो चुके थे। उसके चेहरे पर बिखरी हुई कीलें, झुर्रियों से भरा चेहरा, जबकि वह भी झुर्रियों को कम करने वाली क्रीम का मेरी तरह ही इस्तमाल करता है। मैं ताजा खिंची अपनी तस्वीर को वापस रखकर, उसकी जगह शादी की तस्वीर उठाती हूँ जिसमें हम दोनों के चेहरे पर ताजगी और शादाबी फैली नजर आ रही थी, आंखें आईने पर टिक गईं।

‘आंखों की वह चमक कहां चली गई? यह मेरी नाक कैसे बदल गई है, पता ही न चला! काश! कुछ साल पहले मैंने सर्जरी करवा ली होती। लेकिन अब मैं यह नहीं करा सकती हूँ। न मेरे बस की बात रह गई है और न हौसला बचा है कि रहा के जहर से बुझे तीर सह सकूं, लेकिन परवेज अपने सफेद बालों व झुर्रियों के साथ और भी हसीन लगने लगा है। मेरे जहन में उस फालगीरन का कहा जुम्ला गूंज उठा- ‘एक लंबे कद व सुनहरे बालों वाली लड़की…!’

तभी घंटी की आवाज ने उसकी सोच का सिलसिला तोड़ दिया। मैंने गेट के दरवाजे का बटन दबाते ही दरवाजा खुल गया। परवेज की आवाज सुनाई पड़ती है… कि वह किसी औरत से बात करते हुए लोन में दाखिल हुआ और कहा ‘दरवाजा खोलो!’

मेरा हाथ अचानक दरवाजा खोलने की तरफ बढ़ता है। परवेज उस औरत का स्वागत करता है। मुझे नर्म और सुरीली जनाना आवाज सुनाई पड़ी।

‘लॉन तो बहुत खूबसूरत है।’

‘हमारा माली काफी सलीके वाला है।’

‘लॉन घरों के उत्तर की ओर…’

मैं इससे आगे नहीं सुन पाई और बेचैन हो खिड़की की तरफ़ भागी। पर्दा हटाया और बाहर झांका। औरत कहीं नजर नहीं आ रही थी। इसका मतलब है परवेज उससे आगे है और वह खिड़की से दूर हो चुके हैं।

‘यह कौन है? अरे कहीं वह इत्तफाक जो अफाक के साथ हुआ है कहीं मेरे साथ न हो जाए? आज तक जिस चीज से मैं डरती रही हूँ, वह आज मेरे सर पर आन गिरा? क्या करूं मैं, कैसे मैं इस औरत का सामना कर पाऊंगी? बच्चों को क्या जवाब दूंगी? वह जरूर कहेंगे, ‘कितनी हिफाजत करती थीं, देखा वह जो करना चाहता था उसने कर लिया न?’

अपना हाथ सर और कपड़ों पर फेरा। अचानक बेडरूम की तरफ भाग कर गई, ताकि मेकअप को फ्रेश टच दे सकूं। आखिर मैं क्या करूं? शौहर एक अजनबी औरत के साथ घर में दाखिल हो गया है और उस वक्त मैं सजने बैठूं? आखिर कौन सी आफत टूटने वाली है? हाय परवेज! मैंने नहीं सोचा था कि तुम नामर्द साबित होगे। जो आदमी दो बड़े बच्चों, एक दामाद और नवासे वाला हो, वह ऐसा काम करेगा? आखिर वह उसे घर में लेकर क्यों आया है? यकीनन उसका दिल मुझसे भर चुका है… अभी वह घर के अंदर दाखिल होगा और कहेगा, ‘इधर आओ खानम! यह रही तुम्हारी सौत जिसकी तलाश में तुम थीं!’

यह मेरी गलती है। मैंने उसे बांधे रखने की कितनी कोशिशें की हैं। काश! रहा की बात को मैं गंभीरता से लेती, वह सब समझती जब मेरा बेटा मुझसे नाराज हो गया था। आफाक ने मुझे कितनी बार समझाया था।

‘तुम उसके पंखों को जितना बांधोगी, बात उतनी ही बिगड़ेगी। यही मैंने किया था। उसका नतीजा मेरे सामने है… मैंने उसकी एक न सुनी।

‘अल्लाह! मेरी मदद कर, मुझे एक चांस और दे तौबा करने की।’

मेरे हाथ-पांव बुरी तरह से कांप रहे थे, चेहरा गर्म हो उठा और हाथ ठंडे पड़ने लगे, यह क्या हो रहा है मुझे? मेरे दिल की धड़कन डेढ़ सौ तक पहुंच चुकी थी।

किसी तरह मैं अपने को घर के दरवाजे तक घसीट कर ले गई ताकि उसे खोल सकूं… पहली सीढ़ी पर परवेज दिखा और उसके बाद वह सुनहरे बालों वाली लंबे कद की औरत! मैं उसे देखकर बेहाल हो उठी। तभी परवेज की आवाज सुनाई पड़ी और उसने मुझे गिरने से बचा लिया।

‘आतफे जान क्या हुआ? चेहरा कैसे बेरंग हो गया?… इनसे मिलो जानम यह खानम हमारी पड़ोसन की बहन है… नई पड़ोसन… कह रही है कि तुम्हारे पास पड़ोसन ने कुछ अमानत के तौर पर रखवाया था, उसी को लेने आई हैं। तुम वह पैकेट इनको लाकर दे सकती हो?’

मैंने राहत की एक लंबी सांस ली और पैकेट लाने बेडरूम की तरफ जाने लगी। मेरे हाथ-पांव संभाले नहीं संभल रहे थे। ये बुरी तरह कांप रहे थे।

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