वरिष्ठ लेखक। ‘मुझे एकांत में जीने दो’, ‘झील के उस पार’, ‘खामोशी की आंच’ (कविता संग्रह)।
मैं सवेरे उठते ही हर दिन पार्क की ओर चला जाता हूँ, ‘मॉर्निंग वाक’ के लिए। और लोग भी आते हैं। पेड़-पौधों से, फूलों से भरा हुआ पार्क और चहचहाती चिड़ियों की सुंदर आवाजें, पेड़ों पर इधर से उधर दौड़ लगाते गिलहरी और गिरगिट। फूलों पर मंडराते तितली और भौंरे, आंखों को ठंडक पहुंचाती हरियाली जैसे प्रकृति-शोभा का प्रतीक है वह पार्क। उसके भीतर ‘वाकिंग ट्रेक्स’। उसपर लोग चलते हैं और मैं भी चलता हूँ। थके हुए लोगों को बैठने के लिए सीमेंट के बेंचों का प्रावधान है। शहर के भीतर होते हुए भी वह पार्क ठंडी हवा देता है। बाहर से देखने वालों को भीतर आने के लिए आकर्षित करता है।
मेरे उस पार्क में ‘वाकिंग’ करते लगभग 10 वर्ष पूरे हुए। समय कैसे निकल गया, पता ही नहीं चला। जब मैं पहली बार इस शहर में नौकरी के ट्रांसफर पर आया था, मुझे यह शहर और यहां के लोग नए लगे थे। धीरे-धीरे मेरी पहचान इस शहर से और यहां के लोगों से बढ़ती गई।
रोज की तरह आज भी मैं सवेरे ही ‘वाकिंग’ के लिए पार्क में आ गया। फिर मैंने ‘वाकिंग ट्रेक’ पर चार राउंड वाक किया। एक-एक राउंड आधा किलोमीटर का है। 30 मिनट में चार राउंड, यानी 2 किलोमीटर। फिर मैं बैठने के लिए ‘बेंच’ के पास गया। उस बेंच पर पहले से ही एक लड़की बैठी हुई थी। वह मुझे देखकर मुस्कुराने लगी। मैंने पूछा, ‘क्या मैं बैठ सकता हूँ?’
उस लड़की ने हां के जवाब में सिर हिलाया। फिर मैं उस लड़की को धन्यवाद देते हुए बेंच पर बैठ गया। और विचारने लगा कि ‘यह लड़की अपने पति के साथ आई हुई हो। और पति ‘वाकिंग’ कर रहा हो’। फिर मैंने उस लड़की की ओर मुस्कुराते हुए पूछा, ‘क्या आपके पति वाकिंग कर रहे हैं?’
वह कहने लगी, ‘नहीं…।’
‘तो आप किसके साथ आई हुई हैं?’ मैंने प्रश्न किया।
वह मुस्कुराते हुए कहने लगी, ‘सर के साथ।’
‘कहां हैं आपके सर…?’
‘मॉर्निंग वाक कर रहे हैं।’
‘आप नहीं करोगी?’
‘नहीं…।’
लड़की की ओर देखते हुए मैंने परीक्षा की, तो मुझे लगा इस लड़की की आयु 30 वर्ष की, 5.5 फुट की थी। सलवार सूट में अति सुंदर दिख रही थी। आंखों में प्रेम की भावना, लाल होठों पर मुस्कुराहट, गोरे गाल, खड़ा चेहरा, काले और घने बालों के साथ आकर्षक दिख रही थी।
फिर मैंने बात आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘आप कहां रहती हैं…?’
वह कहने लगी ‘साइंस सिटी में।’
‘क्या काम करती हो…?’
‘रिसर्च।’
‘क्या हॉस्टल में रहती हो?’
‘नहीं।’
‘फिर पति के साथ या माता-पिता के साथ?’
‘नहीं, अपने ‘सर’ के साथ रहती हूँ, जिन्होंने मुझे पैदा किया है।’
वह हँसने लगी। उसकी हँसी में एक मिठास थी। होठों पर, गालों पर वह स्पष्ट दिख रही थी।
फिर मैंने आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा, ‘जन्म दिए हुए व्यक्ति को ‘सर’ क्यों कहती हो, वह तो तुम्हारे पिता हैं?’
लड़की कहने लगी, ‘नहीं, वे मेरे ‘सर’ हैं।’
मामला क्या है मुझे समझ में नहीं आया। मैं दुविधा में पड़ गया। यह लड़की अपने पिता को सर क्यों कहती है। मैं कुछ देर विचारों में डूब गया। फिर सोचने लगा ‘छोड़ो इस सब्जेक्ट को, आगे दूसरी बात बढ़ाते हैं। उस लड़की की ओर देखते हुए फिर मैंने पूछा, ‘चलो बाहर कैंटीन में चाय पीकर आते हैं।’
वह लड़की फिर मुस्कुराते हुए कहने लगी, ‘नहीं…।’
‘क्या तुम शर्मा रही हो, या डरती हो?’ मैंने फिर प्रश्न किया।
‘नहीं, न मैं शर्माती हूँ, न डरती हूँ।’
‘क्या तुम्हें भूख नहीं लग रही है?’
‘नहीं, मुझे न भूख लगती है, न प्यास।’
लड़की के इस जवाब से मैं और हैरान हो गया। फिर मैंने पूछा, ‘क्या नाम है आपका…?’
‘सुनीता…।’
‘बहुत सुंदर नाम है। आपके माता-पिता ने अच्छा नाम रखा है।’
‘नहीं, मेरे सर ने रखा है।’
फिर मैंने मुस्कुराते हुए आगे बात बढ़ाई, ‘सुनीता जी आपने कहां तक पढ़ाई की? मेरा मतलब है आप का एजुकेशनल क्वालिफिकेशन क्या है?’
वह हँस दी। उसकी हँसी एक छोटे बालक जैसी थी। उसकी हँसी को ‘वाकिंग ट्रेक’ पर चलने वाले भी अपना सर घुमाकर देख रहे थे और सुन रहे थे।
फिर अपनी हँसी रोक कर सुनीता ने कहा, ‘मैंने कहीं पढ़ाई नहीं की है, अभी मैं एक साल की हूँ।’
यह सुनते ही मैं हतप्रभ हो गया। मेरे मन में अनेक विचार आने लगे कि यह लड़की पागल तो नहीं? कहीं यह लड़की ‘डिमेंशिया’ पीड़ित तो नहीं? इस लड़की को भूलने की बीमारी ‘अल्जीमर्स’ तो आरंभ नहीं हुआ? या कहीं ‘एक्सीडेंट’ होने के कारण अपनी याददाश्त खो बैठी हो! इस तरह के प्रश्न मेरे मन को घेरने लगे। फिर मैं उस लड़की की ओर बारी–बारी से देखने लगा।
सुनीता मेरे मन के प्रश्नों को समझते हुए मुस्कुराने लगी। फिर कहने लगी, ‘मेरे सर ने मुझे जन्म देकर मेरा एक वर्ष पूरा किया है। अभी मैं साइंस सिटी में खगोल शास्त्र पर अध्ययन कर रही हूँ।’
यह सुनते ही, मुझे विश्वास हो गया कि यह लड़की अपनी याददाश्त खो बैठी है। कहीं से भटक कर आ गई हो। फिर मैं विचार कर रहा था कि वह इस लड़की के बारे में किसी को बताएं या पुलिस को सूचित करे, ताकि इसे उसके घर वालों तक सही-सही पहुंचाया जाए।
इधर मैं सुनीता से बातचीत कर ही रहा था, उधर ‘वाकिंग ट्रेक’ पर से लोग घूम-घूम कर देख रहे थे। कुछ युवा लड़के उसके समीप आने की कोशिश कर रहे थे। मुझे देखकर उसका पिता समझ रहे थे और चुपचाप चले जा रहे थे।
मुझे कुछ दूर पर एक आदमी दिखाई दिया। वह मेरे और सुनीता के बीच की चर्चा की ‘वीडियोग्राफी’ कर रहा था। सामने दो आदमी मेरे और सुनीता पर नजर रखे हुए थे। फिर मैंने पीछे की ओर देखा। वहां भी दो आदमी मेरे और सुनीता पर नजर रखे हुए थे। मैंने सोचा कि इस लड़की को अब अकेले छोड़ना खतरे से खाली नहीं है।
मैंने मोबाइल से पुलिस को ‘इन्फॉर्मेशन’ दे दिया। कुछ ही देर में पुलिस की गाड़ी पार्क के सामने आ खड़ी हुई। उसमें से तीन महिला पुलिसकर्मी और एक पुलिस अधिकारी उतर गए।
वे पुलिस वाले पार्क के भीतर प्रवेश करके सीधे मेरे समीप आ गए, जहां मैं बैठा हुआ था। इस जगह का ‘लोकेशन’ मैंने भेजा था। उनके आने से मैं उठ खड़ा हुआ और पुलिस अधिकारी को पूरा मामला बताया। अधिकारी सुनीता के समीप आकर प्रश्न पर प्रश्न कर रहे थे। सुनीता उस अधिकारी को जवाब दे रही थी। ‘वाकिंग ट्रैक’ पर चलने वाले कुछ व्यक्ति तमाशा देखने के लिए आ खड़े हुए। भीड़ जमा हो गई। पुलिस अधिकारी और भी प्रश्न कर रहे थे। वह जवाब देते-देते उसी बेंच पर गिर पड़ी। यह देख पुलिस अधिकारी घबरा गया। वहां खड़े लोग भी आंदोलित हो गए, और घबरा गए।
उन लोगों में से किसी ने शोर मचाते हुए पुकारा, ‘यहां कोई डॉक्टर है?’
वाकिंग ट्रेक पर चल रहा एक डॉक्टर यह आवाज सुनकर वहां आ पहुंचा। फिर उसने सुनीता का हाथ पकड़कर ‘पल्स’ चेक किया। पल्स साइलेंट थे। फिर नाक के पास अंगुली रखकर श्वास चेक किया। श्वास भी बंद थी, तो डॉक्टर ने कह दिया, ‘शी इज डेड।’
यह सुनते ही वहां खड़े सभी लोगों के होश उड़ गए। वे घबरा गए और आशंकाओं से घिर गए। पुलिस अधिकारी के होश उड़ गए। उसके माथे से पसीने छूट रहे थे। वह घबरा गया था। इधर मैं भी घबरा गया, डर गया। मुझे भी पसीने आने लगे, क्योंकि मैंने ही पुलिस को इन्फॉर्म कर यहां बुलाया था। मुझे दुख होने लगा। मेरी आंखों से आंसू आने लगे। फिर मैं सुनीता की ओर देखते हुए विचारने लगा, ‘इतने समय तक मेरे साथ बात कर रही यह सुंदर लड़की अचानक कैसे मर सकती है?’ मेरे मन में अनेक प्रश्न उठने लगे।
कुछ पल के बाद वहां पांच आदमी भीड़ को हटाते हुए सुनीता के समीप आए। चार आदमी हट्टे-कट्टे थे। उन लोगों ने वहां जमा लोगों से जाने को कहा। एक आदमी बुजुर्ग था। वह एक वैज्ञानिक की तरह दिख रहा था। वह पुलिस अधिकारी से कुछ सीक्रेट बात कर रहा था। इसके बाद पुलिस वहां से निकल गई। मैं अकेला खड़ा देख रहा था। उन लोगों ने मुझे जाने को नहीं कहा। वह बुजुर्ग आदमी मेरे समीप आकर मुझे धन्यवाद दे रहा था।
मैंने पूछा, ‘सर आप मुझे धन्यवाद क्यों दे रहे हैं?’
बुजुर्ग आदमी ने कहा, ‘आप इतने समय इस लड़की के साथ बात कर रहे थे। इसलिए मैं आपको धन्यवाद दे रहा हूँ।’
‘लड़की का देहांत हुआ, फिर आप मेरी प्रशंसा क्यों कर रहे हैं?’ मैंने अचरज से पूछा।
वे बोले, ‘लड़की मरी नहीं!’
यह वाक्य बुजुर्ग आदमी के मुंह से सुनते ही मेरे होश उड़ गए। मामला क्या है, मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। मैं आश्चर्य से देखता रह गया।
फिर बुजुर्ग आदमी ने अपना परिचय देते हुए मुझसे कहा, ‘मैं साइंटिस्ट राजन हूँ। सुनीता कोई जिंदा लड़की नहीं। वह एक ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) है, ‘रोबो’ है।’
यह सुनते ही मैं हक्का-बक्का हो गया। फिर मैं आश्चर्यचकित आंखों से सुनीता की ओर देखता रह गया। वहां ठहरे हट्टे-कट्टे चार आदमियों में से दो पार्क के बाहर चले गए। वहां उनकी कार खड़ी थी। कार के पीछे ‘डिक्की’ खोल कर उन्होंने एक बॉक्स निकला। फिर सीधा सुनीता के समीप आ गए। बॉक्स को खोलकर उसमें से एक चार्जर निकाला। फिर सुनीता को चार्जिंग करना शुरू किया। चार्ज होते ही सुनीता उठ बैठी। उसके चेहरे पर फिर वही मुस्कुराहट और हँसी दिखने लगी। वह मुझे देख मुस्कुरा रही थी। मैं भी मुस्कुराते हुए उसकी ओर देखता रह गया।
इधर साइंटिस्ट राजन ने मेरे कंधे पर अपना दाएं हाथ से स्पर्श रखते हुए कहा, ‘मिस्टर, आप अपना नाम और परिचय दे सकते हैं?’
‘हां, क्यों नहीं।’ कहते हुए मैंने अपना नाम बताया ‘अशोक।’ अपना परिचय भी उन्हें दिया।
राजन साहब ने मेरे नाम से मुझे पुकारते हुए कहा, ‘अशोक जी! सुनीता नाम की इस ‘रोबो’ को यहां पार्क में लाकर बिठाना एक ‘रिसर्च ’ था। हम देखना चाहते थे कि इस लड़की को देखकर लोगों के हाव-भाव क्या होंगे? और लोगों को देखकर इस ‘एआई रोबो’ के हाव-भाव कैसे रहेंगे। यह कैसे बात करेगी और लोग इससे कैसे बात करेंगे। हम ‘रिसर्च ’ कर रहे थे!
फिर राजन साहब ने कहा, ‘अशोक जी, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। आपने इस ‘एआई रोबो’ को ‘एक लड़की’ समझ कर जो बात-चीत की, हमने उसे ‘रिकॉर्ड’ किया है। आज हमारा ‘ऑपरेशन’ सक्सेस हो गया। आपको फिर एक बार मैं धन्यवाद देता हूँ।’
इतना कहकर साइंटिस्ट राजन और उनकी रिसर्च टीम सुनीता नाम की ‘एआई रोबो’ को ले जाने लगे। मैं उनकी ओर देखता रह गया। जाते-जाते सुनीता मेरी ओर देखकर अपना हाथ हिलाते हुए, मुस्कराकर निकल गई। मुझे लग रहा था कि यह कोई ‘रोबो’ नहीं, बल्कि यह एक जीवित लड़की है और जा रही है।
संपर्क : हाउस नं. 10-52-10/ई, विजयनगर कॉलोनी, बोम्मकल जीपी, करीमनगर-505001, (तेलंगाना) मो.9440237804
बहुत साधारण कहानी है। रावन और चित्ती रोबॉट्स फिल्मों में देखने के बाद सामान्य आदमी भी जानता है इस प्लॉट को। कुछ रोचक और अलग नहीं ला पाए लेखक। बस तकनीक आधारित होने के कारण वागर्थ में जगह मिल गयी है शायद।