प्रकाशित पुस्तकें : जंगल में पागल हाथी और ढोल’, ‘पीठ पर रोशनी’ (काव्य संकलन), ‘ढुकनी एवं अन्य कहानियां’ (कहानी संग्रह)

कई बार ऐसा होता है कि जो कुछ हो रहा है वह क्यों हो रहा है, कैसे हो रहा है, इसका पता नहीं चलता। बाज दफा कई चीजों के अर्थ, उनकी प्रासंगिकता और उपयोगिता समझ नहीं आती। लेकिन स्मृतियों के लिहाफ से निकलकर कुछ घटनाएं चलचित्र के समान दृष्टिपटल पर जब गतिमान हो उठती हैं तब उन घटनाओं के महत्व समझ आते हैं। 

रात के लगभग ग्यारह बज चुके थे। मैं अपनी ड्यूटी खत्म कर साइकिल पर जल्दी-जल्दी पैडल मारता हुआ वापस अपने घर लौट रहा था। यही मेरे रोज के लौटने का वक्त था, कभी-कभी तो मैं इससे भी देरी से लौटता था। गर्मियों के दिन थे। वातावरण में बहुत उमस थी। रात में हवा चेहरे से टकरा रही थी तो अच्छा लग रहा था। सड़क के किनारे बीच-बीच में बांस के झुरमुट थे। हवा चलने पर झुरमुट से सरसराहट की आवाज आती थी। रात ज्यादा हो जाने की वजह से रास्ता बिलकुल सुनसान था। बीच-बीच में कहीं कोई कुत्ता दिख जाता था, नहीं तो कहीं कोई आहट भी नहीं थी।

उन दिनों मैं एक क्लब में काम करता था। क्लब शहर के बाहरी इलाके में था और देर रात तक खुला रहता था। मेहमानों के रहने तक वहां काम चलता था। मेहमानों के जाने के बाद सभी कर्मचारियों को एक-एक पैग शराब दी जाती थी। इस एक पैग के लालच में कोई कर्मचारी जल्दी जाने की जिद नहीं करता था। शुरू में तो मैं शराब से परहेज ही करता था लेकिन देर रात हो जाने से भूख बड़ी तेज लग जाती थी। शराब के साथ ठीक-ठाक चखने का प्रबंध भी रहता था। उसी चखने के चक्कर में एक पैग मैं भी पीने लग गया था। उस रात भी मैंने एक पैग शराब पी रखी थी। मैं यह बात दुहरा रहा हूँ कि मैंने बस एक पैग ही शराब पी थी और मैं बिलकुल नशे की हालत में नहीं था।

जिस रास्ते से मैं वापस लौटता था उसमें एक कब्रिस्तान था। यह एक खुला हुआ कब्रिस्तान था और उसके इर्द-गिर्द दूर तक खाली और बंजर जमीन थी, बिलकुल किसी गरीब के जीवन की तरह। सभी कब्र मिट्टी के थे एवं उनमें कुछ कब्रों को सफेद रंग से पोत कर रखा गया था और कब्रों के आगे एक क्रॉस, जो मुख्यतः लकड़ी के थे, लगाए गए थे। मैं चूंकि रोज उसी रास्ते से गुजरता था, इसलिए उसमें कोई नई बात नहीं थी। उस रोज साइकिल चलाता हुआ जब मैं वापस लौट रहा था तो मुझे लगा कि कुछ दूरी पर कोई चीज हिल-डोल रही है। मैं जरा करीब गया तो मैंने देखा कि सफेद रंग से पोती गई एक कब्र पर एक खूब काले रंग का आदमी नंगे बदन बैठा हुआ है। मैंने उसे नजरंदाज करना ही उचित समझा और तेजी से पैडल मारता हुआ वहां से निकल गया।

लेकिन अब यह लगभग रोज की ही बात हो गई। मैं रोज ही उधर से जाता तो उसे वहीं कब्र पर बैठा हुआ पाता। शुरू-शुरू में मुझे लगा था कि कोई पियक्कड़ है और दारू के नशे में यहां आकर बैठ गया है। लेकिन जब वह रोज ही दिखने लगा तो मुझे लगा कि हो न हो यह कोई पागल है।

एक दिन तो हद हो गई। उस दिन काम खत्म करने में कुछ ज्यादा ही देरी हो गई थी। मैं जब काम खत्म करके वापस लौट रहा था तो देखा कि वह कब्र पर से उठा और धीरे-धीरे सड़क की ओर आने लगा। कब्र से सड़क की दूरी ज्यादा नहीं बमुश्किल तीस-चालीस मीटर ही थी। मेरी निगाह उसी पर टिकी थी और मैं जल्दी-जल्दी पैडल मारता हुआ आगे बढ़ रहा था कि तभी वह मेरी नजरों से अदृश्य हो गया। लेकिन कुछ ही दूर आगे बढ़ते ही वह मेरी साइकिल के आगे खड़ा था।

मैंने देखा कि उसने एक पुराना गमछा अपने कमर पर लपेटा हुआ था। उसके बदन पर कुछ भी नहीं था। वह एक क्षीणकाय आदमी था। जिसकी पेट धंसी हुई थी। उसकी लंबाई लगभग साढ़े पांच फीट की रही होगी। बाल बिखरे हुए थे। उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था। इसलिए यह समझ पाना बहुत मुश्किल था कि वह आदमी गुस्से में था या नहीं।

चेहरे पर बिना किसी उतार चढ़ाव के बहुत सपाट आवाज में उसने पूछा :

‘खैनी है?’

ऐसा लगा जैसे बहुत थकी हुई आवाज बहुत दूर से आ रही थी।

मैंने कहा, ‘खैनी है, लेकिन चूना नहीं है।’

मुझे लगा ऐसा कहने पर वह मुझे वहां से  जाने देगा। लेकिन उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।

मैंने जेब में हाथ डाला। खैनी की डिबिया निकाली और उसे दे दी।

उसने डिबिया से खैनी निकाली और नीचे झुककर थोड़ी मिट्टी उठाई और खैनी में मिलाकर उसे मलने लगा।

‘मिट्टी मिले मिट्टी में, सब मिट्टी हो जाए… चूना नहीं होने पर हमलोग कभी-कभी मिट्टी से भी काम चला लेते थे।’ उसने लापरवाही से कहा।

थोड़ी देर खैनी रगड़ने के बाद दो-तीन बार उसने बाईं हथेली पर दाहिने हाथ की हथेली से ताल मारा और थोड़ी-सी खैनी मुझे भी दे दी।

‘खाकर देखो, अच्छा लगता है। चूना की कोई जरूरत ही नहीं है।’

मैंने खैनी ले ली, उसे होंठों के बीच रख लिया।

खैनी का प्रभाव सचमुच अद्भुत था। मैं कब वहां से चला और कब अपने घर पहुंच गया कुछ पता नहीं चला।

अब यह रोज का क्रम बन गया। मैं वापस लौटता, वह रोककर मुझसे खैनी मांगता, मुझे भी खैनी खिलाता और मैं कब अपने घर आ जाता मुझे पता नहीं चलता। मुझे भी उसके हाथों की बनी हुई खैनी अच्छी लगने लगी थी और मैं रोज ही उसकी खैनी की प्रतीक्षा करता। अब तो ड्यूटी खत्म करके चलने से पहले मैं यह सुनिश्चित करता था कि मेरी डिबिया में खैनी हो। मैं धीरे-धीरे उसके हाथों की खैनी के नशे का आदी हो गया था।

एक दिन मैं जब काम खत्म करके चलने लगा तो यह  सोचकर चला कि आज उस आदमी का नाम पूछूंगा। क्योंकि तब तक मुझे विश्वास हो गया था कि वह आदमी न तो पागल है और न नशेड़ी।

उसने मुझे रोका, खैनी मांगी।

जब वह खैनी रगड़ रहा था तो मैंने उससे पूछ लिया। ‘तुम्हारा नाम क्या है?’

आज पहली बार उसके चेहरे पर थोड़े-से भाव दिखे थे। वह हल्के से मुसकाया था।

‘शुकरा… शुकरा कच्छप। एक और नाम है- सिमोन… सिमोन कच्छप।’

‘वाह दो-दो नाम हैं!

‘हां, एक नाम बाप ने दिया दूसरा मिशन के बाप ने’ कहकर वह धीमे से हँसा।

मैं समझ गया वह फादर की बात कर रहा है। उसने मुझे खैनी दी और मैं पैडल मारकर आगे बढ़ गया।

थोड़ी दूर जाने पर मुझे अहसास हुआ कि कोई मेरे साइकिल के पीछे करिअर पर बैठा है। मैंने घबराकर साइकिल रोक दी। पीछे मुड़कर देखा और पाया कि वही आदमी मेरी साइकिल के पीछे बैठा है।

यह कब मेरी साइकिल पर बैठ गया। और बैठ गया तो साइकिल चलाने में भारी क्यों नहीं लगा!

‘तुम!!’ मैंने हकबका कर कहा। फिर मुझे लगा कि हो सकता है, कुछ नशे का असर हो और मैंने उसके बैठने पर ध्यान नहीं दिया। मैंने सर को झटका और आगे बढ़ गया।

‘हां, बस मुझे थोड़ी दूर छोड़ दो।’ वह धीरे से हँसा।

मैं साइकिल चलाने लगा। थोड़ी ही दूरी पर शहर का मुख्य इलाका शुरू हो गया। स्टेशन जाने वाले रास्ते के मोड़ पर विधायक एनोस  तिर्की का महलनुमा घर और उसी के बगल में बिग मॉल खड़ा था। कहते हैं बिग मॉल की बिल्डिंग विधायक की ही है और उसने लाखों रुपये के मासिक भाड़े पर उसे एक कंपनी को मॉल चलाने के लिए दे रखा था। कहने वाले यह भी कहते हैं कि जिस जमीन पर विधायक का घर और मॉल बना है वह किसी और की थी, उसे जबरन उसने अपने नाम लिखवा लिया था।

विधायक का घर रोशनी से जगमग कर रहा था। सड़क सुनसान थी। मॉल नींद में ऊंघ रहा था।

अचानक मैंने महसूस किया कि शुकरा मेरी साइकिल पर नहीं है। वह कब साइकिल से उतर गया मुझे पता नहीं चला। मैंने फिर सर को झटका दिया और आगे बढ़ गया।

अगले दिन रास्ते में फिर वह मिला। मैंने पूछा, ‘तुम कल कहां चले गए थे?’

उसने कुछ कहा नहीं।

‘तुम्हारा घर किधर है?’ मैंने पूछा।

‘वहीं, जहां तक तुम मुझे लेकर गए थे। महुआ टोली में।’

‘महुआ टोली! जहां मॉल है?’

वह खैनी मलता रहा और फिर उचककर मेरी साइकिल पर बैठ गया।

‘तुम जेवियर को जानते हो?’ उसने पूछा।

‘कौन जेवियर?’

‘जेवियर मेरा बेटा। जेवियर कच्छप। काफी दिनों से उसका पता नहीं चल रहा है। वह बहुत अच्छा गाना गाता था।’

‘ना… क्या हुआ उसे?’

‘पता नहीं कहां गायब हो गया। बहुत अच्छा लड़का था। चर्च के कॉइर में भी गाता था। मिशन के स्कूल में पढ़ाई किया था। फादर कहते थे बहुत तेज था पढ़ने में। उसी को पढ़ाने के लिए हम मिशन में गए थे!’

‘फिर क्या हुआ?’

‘गलत संगत में पड़ गया था। विधायक के आगे-पीछे घूमने लगा था।’

‘कौन विधायक?’

‘वही एनोस…  बहुत समझाया कि बेटा अपने काम पर ध्यान दो। लेकिन उसको राजनीति का चस्का लग गया था। एनोस उसपर शुरू में खूब खर्चा करता था। नया मोबाइल दिया, नया बाइक दिया। बिलकुल हीरो बनकर घूमता था जेवियर। बहुत स्मार्ट था। नया बाइक पर चश्मा लगाकर बैठता था तो बिल्कुल हीरो लगता था।’

शुकरा उर्फ सिमोन फिर से गायब हो गया था। मुझे फिर पता नहीं चला कि वह कब साइकिल से उतर गया।

कुछ दिनों तक मैं किसी कारण से अपनी ड्यूटी पर नहीं जा पाया। फिर एक दिन जब मैं अपनी ड्यूटी से वापस आ रहा था, शुकरा वहीं अपने पुराने स्थान पर बैठा मिला। इस बार मैं उसे देखकर रुक गया। वह शीघ्र ही मेरे पास आया। खैनी खाई और मेरे साइकिल के पीछे उचक कर बैठ गया।

‘तुम इतनी रात रोज यहां क्या करते हो?’ मैंने उससे पूछा।

‘कब्रिस्तान की रखवाली।’

‘कब्रिस्तान की रखवाली? इसकी क्या जरूरत है?’

‘जरूरत है, देखते नहीं कि शहर किस तरह से अजगर के मुंह की तरह बढ़ता जा रहा है। लगता है एक दिन सबकुछ उसके पेट में समा जाएगा। हो सकता है रातों-रात कब्रिस्तान के किसी हिस्से में बाउंड्री हो जाएगी और मॉल बन जाएगा! देखते नहीं, शहर में कितने मसान थे, सब खत्म हो गए। अब कब्रिस्तान से भी किसी को डर नहीं है। इसलिए कब्रिस्तान की रखवाली बहुत जरूरी है।  एनोस टाइप के लोग और सूरज सिंह जैसा दलाल सबकुछ हड़प कर गड़प कर जाएगा।

‘ई साला एनोस क्रिस्तान है, फिर भी गद्दारी किया हमसे। पहले मिलता था तो जय ईसू जय ईसू करता रहा। लेकिन मालूम नहीं था कि उसके मन में इतना पाप है।’

उस दिन शाम से ही बादल छाए थे और बारिश की संभावना बनी हुई थी। उत्तर दिशा को घने बादलों ने घेर रखा था। मैं किसी तरह जल्दी घर पहुंच जाना चाहता था। इसलिए मैं ज्यादा बातचीत करने के मूड में नहीं था, लेकिन मेरे मन में एक जिज्ञासा उमड़-घुमड़ रही थी।

मैंने उससे पूछा, ‘जेवियर मिला?’

‘न… तुम मेरी मदद करोगे?’

‘मैं? मैं क्या मदद कर सकता हूँ?’ हठात मैंने साइकिल पर ब्रेक लगा दिया।

‘एक बार मॉल में जाकर पता करो जेवियर के बारे में।’

‘लेकिन तुम खुद क्यों नहीं जाते?’

‘मैं नहीं जा सकता। तुम पता करो।’

‘पुलिस में चले जाओ। वे पता करेंगे।’

‘पुलिस तो एनोस के अंदर में है।’  

कल मेरी साप्ताहिक छुट्टी थी। पत्नी ने कहा कि चलो बिग मॉल चलते हैं, वहां सेल लगी है, सामान सस्ते मिल रहे हैं। हमारे जैसे कम वेतन वालों को सस्ते सामान का लोभ बहुत होता है। इसी मानसिकता को मैनेज्मेंट वाले अच्छे से समझते हैं और नए-नए तरीके से सेल की घोषणा करते रहते हैं। मॉल में जब पत्नी रोजमर्रा के सामान लेने में व्यस्त थी, मैं यूं ही इधर-उधर टहल रहा था। अचानक मुझे याद आया कि शुकरा के बेटे जेवियर के बारे में पता किया जाए। उसने इसी मॉल में पता करने के लिए कहा था। लेकिन किससे पूछूं? मैंने सिक्युरिटी वाले से पूछना उचित समझा। किसी और बड़े अधिकारी से पूछने की मेरी हिम्मत नहीं पड़ी।

मैंने एक सिक्युरिटी वाले से पूछा, ‘भाई आप किसी जेवियर को जानते हैं?’

सिक्युरिटी वाला स्थानीय युवक था। उसने पहले मुझे संदेह की दृष्टि से ऊपर से नीचे देखा। फिर पूछा, ‘आप कौन?’

जब मैंने कहा मैं उसके पिता साइमन का दोस्त हूँ तो वह हँसा।

मैं हँसी का अर्थ नहीं समझ पाया।

‘जाओ उधर जाकर मैनेजर से पूछो!’ 

मैंने मैनेजर से पूछा। वह एक हट्टा-कट्टा सुंदर नौजवान था।

उसने ऑफिस की दीवार पर टंगी एक तस्वीर की ओर इशारा किया। मैंने देखा वहां एक नौजवान की तस्वीर टंगी थी। तस्वीर पर एक माला पहनाई गई थी। उसके नीचे नाम के साथ जन्म और मृत्यु की तारीख लिखी थी। नाम लिखा था जेवियर कच्छप।

हे भगवान! क्या जेवियर मर चुका है और उसके बाप को पता ही नहीं। ऐसा कैसे हो सकता है!

मैंने घबराकर मैनेजर से पूछा, ‘क्या जेवियर की मृत्यु हो गई है?’

मैनेजर ने अजीब-सी नजरों से मुझे देखा, मानो कह रहा हो अजीब अहमक है, क्या जीते हुए आदमी तस्वीर पर हार चढ़ाकर उसपर मृत्यु की तारीख लिखते हैं! वह चुप रहा।

मैं वहां से निकल आया, लेकिन कई सवाल मेरे मन में घुमड़ते रहे। आखिर मामला क्या है?

उसका बाप मुझे रात में रोज मिलता है। क्या उसे सचमुच पता नहीं कि जेवियर मर चुका है?

जिस क्लब में मैं काम करता था, उसी क्लब में संजय कच्छप भी काम करता था। वह भी स्थानीय लड़का था और स्वभाव का बहुत अच्छा था। उस दिन बातों ही बातों में मैंने उससे जेवियर का जिक्र छेड़ दिया।   

वह जेवियर को जानता था। ‘जेवियर बहुत अच्छा गाना गाता था, बहुत अच्छा लड़का था।’ उसने कहा।

‘फिर?’

महुआ टोली में उसके बाप-दादा का घर था। उसका बाप शुकरा बहुत सीधा-सादा आदमी था। एयरपोर्ट बन जाने से महुआ टोली की वैल्यू बहुत बढ़ गई थी। महुआ टोली एयरपोर्ट जाने वाले रास्ते के बिलकुल किनारे है। हमलोगों की बस्ती अभी भी वही है। शुकरा की जमीन बस्ती में एयरपोर्ट जाने वाली रोड के किनारे थी। उसी जमीन पर सूरज सिंह की नजर पड़ गई थी। लेकिन जमीन आदिवासी की थी, इसलिए वह इसे ले नहीं सकता था। तो उसने एनोस को आगे किया और उसके साथ पार्टनरशिप की।  एनोस ने शुकरा से बात की। लेकिन शुकरा ने साफ-साफ मना कर दिया। तब एनोस ने जेवियर को फुसलाया और उसको प्रोजेक्ट में पार्टनर बनाने का भरोसा दिया।

सूरज सिंह बड़ा ठेकेदार है। इसलिए उसके पास बहुत पैसा था। सूरज सिंह का पैसा एनोस ने जेवियर के पीछे खूब खर्च किया। शुकरा के मना करने के बाद भी जेवियर सूरज और एनोस के चक्कर में पड़कर बड़ा आदमी बनने का सपना देखने लगा। एनोस ने उसको जमीन के बदले मॉल में चालीस प्रतिशत का हिस्सा देने का भरोसा दिया था। जब शुकरा जमीन देने के लिए तैयार नहीं हुआ, तब जेवियर की उससे खूब लड़ाई होने लगी।

बाद में जेवियर ने जमीन एनोस और सूरज सिंह को दे दी। उसके बाद विद्युत गति से मॉल बना। उतना अथाह पैसा जाने कहां से आया? कई लोग कहते हैं कि कई मंत्रियों के नाजायज पैसे उसमें लगे हैं!

‘क्या जेवियर को मॉल में हिस्सा मिला?’ मेरी उत्सुकता बढ़ रही थी।   

‘नहीं, जब मॉल बन गया तो मॉल में गार्ड लगाकर जेवियर को घुसने से रोक दिया गया।

‘बाद में जेवियर ने खूब हल्ला-हंगामा किया, लेकिन तब तक एनोस विधायक बन चुका था। उसकी सत्ता की ताकत और सूरज सिंह के पैसे की ताकत के आगे सब बौने हो गए। जेवियर लगभग रोज आकर मॉल के आगे लड़ाई करता। लेकिन उसकी कोई सुनने वाला नहीं था। जो एग्रीमेंट उसने किया था उसमें भी उसकी हिस्सेदारी नहीं दिखाई गई थी। इसी बीच में एक दिन जेवियर रेलवे लाइन पर मृत पाया गया। खबर बनी कि पिछले कुछ समय से वह मानसिक रूप से विक्षिप्त था, इसलिए उसने आत्महत्या कर ली।

‘जब उसकी मृत्यु हो गई, एनोस ने बहुत अफसोस व्यक्त किया और उसकी तस्वीर भी मॉल में लगवाई। इस बात का अखबारों में खूब प्रचार किया गया कि जेवियर की मृत्यु पर एनोस और सूरज सिंह ने श्रद्धांजलि दी और उसकी तस्वीर को मॉल में लगाकर उसपर फूल-माला चढ़ाया गया।’

‘लेकिन उसका बाप शुकरा?’

‘शुकरा कहां था, जब उसने जमीन देने से मना किया था तब उसकी जेवियर से रोज लड़ाई होती थी। इसी लड़ाई-झगड़े के बीच एक दिन ज्यादा दारू पीने से शुकरा की मौत हो गई थी। कुछ लोग कहते हैं कि दारू पिलाने वाले कुछ बाहरी एवं शरारती तत्व थे। लेकिन दारू से मरने वाले के बारे में कौन चिंता करता है! वह भी अगर कोई आदिवासी दारू पीकर मरे।’

क्या शुकरा उर्फ सिमोन कच्छप जिंदा नहीं है, वह मर चुका है?

मैं आँखें फाड़-फाड़ कर संजय को देख रहा था।

‘लेकिन तुम यह सब क्यों पूछ रहे हो?’ संजय  ने मुझे इतना हैरान-परेशान होते हुए देखकर पूछा।

‘कुछ नहीं, कुछ नहीं। आज तुम कितने बजे ड्यूटी से घर जाओगे? आज से मैं तुम्हारे साथ ही लौटूंगा।’

मेरी आँखों के सामने कब्रिस्तान की रखवाली करता हुआ शुकरा तैर गया।

 

संपर्क सूत्र :आशीर्वाद, बुद्ध विहार, अरगोड़ा बाय पास, पोस्ट डोरंडा, राँची– 834002, झारखंडमो.8797777598