नेपाली के चर्चित युवा कवि। उज्यालोका आंखा और आधा अर्थ कविता संग्रह।

युवा लेखिका। सामाजिक यथार्थ और दुष्यंत कुमार पुस्तक प्रकाशित।

पहली बार जब मैं माँ के गर्भ से
बाहर आया
मैंने उसके चेहरे का उजला रंग देखा
कुछ दिनों बाद माँ ने जब
खेलने के लिए मुझे जमीन पर छोड़ा
मैंने मिट्टी का रंग पहचाना
जब पिता ने मेरी फूल जैसी अंगुलियों को पकड़कर
मुझे चलना सिखाया
मैंने उड़ती तितलियों के रंगों को पहचाना
धीरे-धीरे जब
अपने पैरों से टुकटुक टुकटुक चलना सीखा
मैंने अपने कंपन को जाना
आँधी के रंग को पहचाना
बतास के रंग को पहचाना
मैंने उसमें भींगकर पहचाना
बादल, बरखा और सतरंगे इंद्रधनुष को
जैसे-जैसे आगे चलता गया
जैसे-जैसे वापस लौटता गया
आकाश के सिर पर झिलमिलाते
सूरज, चांद और तारों के रंगों को पहचाना

जैसे-जैसे रंगों को पहचानता गया
रंगों के साथ खेलता गया
रंगों ने
रंगों में मेरा अनुवाद करना शुरू किया
मैंने भी खुदसपने देखने शुरू किए
एक दिन जब मैंने पहली बार
अपने गुलाबी होंठ देखे
लगा संसार इसी तरह हँसता है
लगा संसार इसी तरह बचा हुआ है
घर के आंगन में
जब आड़ू के पौधोंमें फूल लगे
उसकी डालियों परहल्का हल्का पंख फैलाए
चिड़ियों के रंगीन पंखों को देखने के बाद
लगा संसार रंगीन चित्रों की एक पाठशाला है

रंगों के अनंत रंगों के साथ
खेलते-खेलते
जब पहली बार मैंने सपने में देखा
मनुष्य सफेद और काले रंगों में विभाजित थे
मेरे लिए सपने में सिर्फ रंग थे
जब मैं समझ पाया रंगों की गहराई को
गहरी नींद में
धर्म जाति नस्ल के रंगों को
दीवारों को
हिस्से की तनातनी मेंमैंने लड़ते-झगड़ते देखा
हाँ, उसी वक्त से
संवेदना के सारे सृजनशील रंग
घावोंके रूप में उभर आए
मैंने अपने आपको टटोला-
क्या अब मैं बेरंग हो गया हूँ..?

चित्र साभार 
संपर्क : वासुदेव पुलामीअसिस्टेंट प्रोफेसर, कालीपद घोष तराई महाविद्यालय, बागडोगरा, पश्चिम बंगाल -734014 मो.9647753594

संपर्कअनुवादक :शशि शर्मा, गौर आवासन, रवींद्रपल्ली, माटिगाड़ा-734010 पश्चिम बंगाल /मो– 9832321080 इमेल anantshashi.sharma43@gmail.com