राजनीति के बारे में सोचने के बजाय एक सुंदर उपन्यास लिखना मेरी प्राथमिकता है

ओरहान पामुक
नोबेल पुरस्कार से सम्मानित तुर्की लेखक। ‘माई नेम इज रेड’, ‘द म्युजियम ऑफ द इनोसेंस’, ‘स्नो’ आदि प्रसिद्ध पुस्तकें।अद्यतन उपन्यास ‘द नाइट्स ऑफ प्लेग’।

(२००६ के साहित्य के नोबेल पुरस्कार विजेता तुर्की के ओरहान पामुक एक अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त लेखक हैं।सहिष्णुता, स्वतंत्रता और दूसरे के प्रति सम्मान को महत्व देने की भावना से गहराई तक जुड़े पामुक सार्वभौमिक मानवीय मूल्यों के प्रति निष्ठा रखते हैं और खुद को दो दुनियाओं के बीच एक सेतु के रूप में देखते हैं।स्वतंत्र अभिव्यक्ति के मुखर प्रवक्ता होने के कारण उन्हें अपने देश में कारावास तक भोगना पड़ा।उनके आठ उपन्यासों में माई नेम इज रेड, स्नो, द म्युजियम ऑफ द इनोसेंस आदि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेस्टसेलर हैं।उनकी रचनाओं में मानवता के विकास के लिए एक प्रतिबद्धता है।प्रस्तुत है आज के नए तुर्की परिवेश के संदर्भ में निर्मला लक्ष्मण द्वारा मुंबई में ओरहान पामुक से लिए गए साक्षात्कार का संक्षिप्त अंश।)

प्रश्न : आपके उपन्यासों में इतिहास, कला, संस्कृति, हमारे रोजमर्रा के जीवन की स्मृतियाँ और परंपरा, मानव अनुभव की मार्मिकता और सुंदरता विद्यमान है।आपका काम भी बहुस्तरीय, प्रभावशाली और कई विधाओं से युक्त है।आप अपने विषयों को गहनता से प्रस्तुत करते हैं।क्या एक उपन्यासकार के रूप में यही आपका वैशिष्ट्य है?

ओरहान पामुक – मैं कला में सांस्कृतिक सत्य को देखने तथा राष्ट्र की भावना को सजग रखने के लिए एक पैनोरामा बनाना चाहता हूँ। ‘द ब्लैक बुक’ में मैंने इसी भावना को इस्तांबुल की परतों और इतिहास की पहेलियों के बीच देखा है। ‘स्नो’ में मैं उसी संस्कृति को राजनीति की पहेलियों के भीतर खोजता रहा हूँ।

‘द म्युजियम ऑफ द इनोसेंस’ में मैंने प्रेम के माध्यम से राष्ट्र की भावना को उद्धाटित किया है।यह दुनिया का मेरा हिस्सा है, पूरी तरह से गैर-पश्चिमी दुनिया, जहाँ एक ऐसे समाज में प्यार के ये सभी मुद्दे हैं, जहाँ शादी के बाहर सेक्स बड़ी समस्या है।कौमार्य की रक्षा अनिवार्य है।ये मुद्दे तुर्की के मुद्दे हैं, लेकिन केवल तुर्की के नहीं हैं। ‘द म्युजियम ऑफ द इनोसेंस’ दमित समाजों में प्यार की ऐसी कहानी है, जहाँ प्रेमी आसानी से अपने प्यार की बात नहीं कर सकते।

१९७० के दशक में तुर्की में तथाकथित उच्च वर्ग के बुर्जुआ लोगों में प्रेमियों से मिलने, बात करने, अपने प्यार को तलाशने का अवकाश बहुत कम था।पर जब समाज में इस प्रकार का दमन होता है तो मानव हृदय संवाद का नया और परिष्कृत रूप खोज लेता है।मौन, भौंहों के संकेत से संवाद आदि के द्वारा प्रेमी अपने प्यार का इजहार कर लेते हैं।उन्हें खुले रूप से संवाद करने, प्यार की बातें करने का अवसर नहीं मिलता, जैसा कि अमेरिका आदि पश्चिमी देशों में है।किंतु वे एक-दूसरे को एक ऐसी भाषा से समझ लेते हैं, जो उनके बीच स्वतः विकसित हो जाती है, जो देखने, मौन संकेतों और दोहरे अर्थों तथा दृष्टि-भंगिमाओं से प्रकट होती है।

प्रश्न– क्या आप मानते हैं कि हमारे जीवन की रोजमर्रा की चीजें वास्तव में हमारे अस्तित्व की सचाइयों को दर्शाती हैं और क्या इसीलिए सामान्य लोगों के जीवन का उल्लेख अत्यंत महत्वपूर्ण होता है?

ओरहान पामुक – हां, यह विशेष रूप से गैर-पश्चिमी समाजों में महत्वपूर्ण है जहां संग्रहालयों का विचार विकसित नहीं हुआ है।लोगों का संग्रह या उनका जमावड़ा महत्वपूर्ण है।मैं एक इस्लामी संस्कृति से आता हूं जहां पेंटिंग पर पाबंदी लगा दी जाती है।एक संग्रहालय केवल फैंसी पेंटिंग्स के लिए एक जगह नहीं होना चाहिए, बल्कि एक ऐसा स्थान होना चाहिए जहां हम अपनी दैनिक वस्तुओं के माध्यम से अपने जीवन को संप्रेषित कर सकें।संग्रहालय पश्चिमी आविष्कार हैं जहां अमीर और शक्तिशाली या सरकार और राज्य अपनी संस्कृति के संकेतों और प्रतीकों और छवियों को प्रदर्शित करते हैं।हम गैर-पश्चिमी लोग भी अपने जीवन का प्रतिनिधित्व करने वाली वस्तुओं के माध्यम से अपनी मानवता प्रदर्शित कर सकते हैं।

प्रश्न– ऐसा लगता है कि ‘द म्युजियम ऑफ द इनोसेंस’ आपकी पसंदीदा पुस्तक है।भारत में बहुत लोग इसे पढ़ भी रहे हैं।

ओरहान पामुक– हाँ, मैं जानता हूँ।जब मैं इस पुस्तक को लिख रहा था तो अपने दोस्तों से कहता था कि इस किताब के माध्यम से लोग मुझे याद रखेंगे।यह पुस्तक पसंदीदा इस मायने में है कि मैं जब इसे लिख रहा था तो समय अनुकूल नहीं था और राजनीतिक दबाव था।तब नोबेल पुरस्कार का भी मामला था और बहुत कुछ घट भी रहा था।शहर बदल रहे थे।लेकिन मैं खुश था।जिस दिन मैं एक पेज लिखता तो खुद को खुश महसूस करता।एक और भी कारण है, यह पुस्तक प्रत्यक्ष अनुभव पर आधारित है।मैं उन जगहों एवं क्लबों, रेस्तराँ और मूवी हाउस तथा इस्तांबुल में हिल्टन होटल में कई शादियों एवं सगाई पार्टियों में गया हूँ, जहां केमल (उपन्यास का पात्र) गया था।यह सब मेरे जीवन पर आधारित है।

प्रश्न–   आप अपने सभी उपन्यासों में इस्तांबुल जाते रहे हैं, स्नो को छोड़कर।वह पुराना और नया इस्तांबुल है।आपकी स्मृतियों का शीर्षक भी इस्तांबुल है।ऐसा लगता है कि आप इस्तांबुल की आत्मा के रक्षक हैं।

ओरहान पामुक– हाँ, मैं जाता रहा हूँ।कुछ वर्षों को छोड़कर, ५४ वर्ष की आयु तक मैंने अपना सारा जीवन वहीं बिताया है।मैं इस्तांबुल की मानवतावादी भावना से गुजरा हूँ और जीवन के बारे में जो कुछ जानता हूँ वह निश्चित रूप से इस्तांबुल से ही प्राप्त है।मैं इस्तांबुल के बारे में ही लिख रहा हूँ।मैं उस शहर को इसलिए भी पसंद करता हूँ कि मैं वहाँ रहता हूँ, उसने मुझे गढ़ा है और जो कुछ हूँ उसके कारण हूँ।बेशक यह स्वाभाविक है।यदि कोई सारा जीवन दिल्ली में रहा हो तो वह दिल्ली के बारे में ही लिखेगा।

प्रश्न– तब क्या आप सोचते हैं कि इस अर्थ में लेखक की प्रामाणिक आवाज तभी उभरती है जब वह उस सांस्कृतिक जगत के बारे में लिखता है, जहाँ उसकी जड़ें हैं।लेखक के लिए यह कितना जरूरी है कि वह उसमें रचा-बसा रहे?

ओरहान पामुक– हां और नहीं, दोनों।किसी भी संस्कृति की विशिष्टता और अनोखापन किसी उपन्यास में रोचक होता है, किंतु वह किसी संस्कृति में तब और रोचक हो जाता है जब लेखक सार्वभौमिक तथा शाश्वत तत्वों को गहराई से अनुभूत और अभिव्यक्त करे और यह देखे कि वह आम आदमी के हृदय से गहनता से जुड़ा हो।मैं इसी प्रकार का लेखक हूँ।मैं इस अर्थ में उस तरह का लेखक बनना चाहता हूँ कि वह इस्तांबुल के रंगों को महसूस करे, उन्हें आत्मसात करे और देखे, लेकिन यह भी माने कि दुनिया के सारे लोग किसी न किसी अर्थ में एक जैसे ही हैं, भले संस्कृति अलग है, इसलिए वे व्यवहार अलग करते हैं।इसलिए ये दो चीजें मेरे उपन्यास की कहानियों में दिखाई पड़ेंगी।और मैं उसका ध्यान भी रखता हूँ।विशिष्टता और सार्वभौमिकता दोनों।लेकिन उनपर विशेष ध्यान देने की जरूरत नहीं है।आपको अपनी कहानी लिखनी है उसी रूप में जैसे वह आपके सामने आती है।

प्रश्न–  अभी जो एक नए प्रकार का राष्ट्रवाद उभर रहा है, क्या आपको लगता है कि इससे असहिष्णुता बढ़ रही है, विरोध को लगातार दबाने का प्रयास किया जा रहा है और सेंसरशिप बढ़ रही है?

ओरहान पामुक– इसपर हम अपने अनुभव के आधार पर विचार कर सकते हैं।मुझपर भारी दबाव था।उन्होंने मुझे जेल में डालने की कोशिश की, लेकिन फिर छोड़ दिया।यह एक पक्ष है।लेकिन पिछले दस वर्षों में, तुर्की कहीं अधिक खुला समाज रहा है, कहीं अधिक स्वतंत्र।आज वहाँ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है।सेना और सभी संस्थाओं की आलोचना करने की छूट है।इसलिए यह सिर्फ एकतरफा मामला नहीं है।आप किसी चीज को सामान्यीकृत नहीं कर सकते और नहीं कह सकते कि राष्ट्र बढ़ रहा है और राष्ट्र के लोग बोल नहीं रहे हैं।नहीं, व्यक्तिगत तौर विरोधी आवाजें उठ रही हैं, बढ़ रही हैं।जब राष्ट्रवाद बढ़ रहा होता है तब अधिकांश समय उत्तर-औपनिवेशिक समाज समृद्ध हो रहे होते हैं।शासन करने वाले अभिजात वर्ग, सैनिक, सर्वहारा और पूंजीपतियों का एक सम्मिलित वर्ग समृद्ध हो रहा है।किंतु उनके साथ पूरा देश भी बढ़ रहा है।इसलिए जो लोग अलग-थलग हैं, असहमत हैं, उनकी संख्या भी बढ़ रही है।विरोध भी देश के साथ-साथ बढ़ता जा रहा है।विरोध और व्यक्ति की गरिमामयी आवाजें भी बढ़ रही हैं।आप इसे रोक नहीं सकते।

एक खुले समाज को नियंत्रित करना मुश्किल है, जहाँ लोग अपनी किताबें प्रकाशित कर सकते हैं।आप एक व्यक्ति को जेल भेज सकते हैं, परंतु पूरे देश को जेल में नहीं डाल सकते! केंद्रीय अधिनायकवाद हमेशा रहेगा।यदि राष्ट्रीय कट्टरवाद या धार्मिक कट्टरवाद स्वतंत्रता को दबाने की कोशिश करता है तो मुझे लगता है अधिक केंद्रीय अधिनायकवादी आंदोलन बढ़ेगा।लेकिन कुछ सम्मानित लोग हमेशा होंगे जो अपनी मौज में अपनी बातें कहेंगे।भले ही उन्हें कुचल दिया जाए या जेल भेज दिया जाए या वे सारे परिदृश्य में एक संतुलन पैदा करेंगे।यह राजनीति का मामला है, लेकिन मैं एक गैरपश्चिमी उत्तर-औपनिवेशिक राष्ट्र के रूप में निराशावादी नहीं हूँ।

यह मत भूलिए कि तुर्की भी कभी उपनिवेश था।लेकिन अंततः उसके पूंजीपति लोग समृद्ध हो जाते हैं।इसलिए चाहे वह राष्ट्रवादी कट्टरपंथी हो या धार्मिक कट्टरपंथी, चाहे किसी तरह का राष्ट्रवाद हो, वे अधिनायकवाद की ओर अग्रसर होते हैं, और साथ ही जातीय भी हैं और उनमें अल्पसंख्यकों का अनादर करने की प्रवृत्ति भी पनपती है।यह एक बात है।

लेकिन फिर उस देश में व्यक्तिगत आवाजें भी हैं, अल्पसंख्यकों की व्यक्तिगत आवाजें भी हैं।समुदाय में शामिल नहीं होने वाले खास लोगों की संख्या भी बढ़ रही है।इनमें संतुलन कैसे स्थापित होगा, यह एक रोचक मामला है।विभिन्न संस्कृतियों में राष्ट्रवाद या कट्टरवाद उन आवाजों को दबाता है या वे आगे बढ़कर अपनी आवाज उठाते हैं तथा एक साथ रहने का समाधान ढूंढ़ते हैं, यह मुख्य बात है।

प्रश्न–  क्या यह बुद्धिजीवियों या लेखकों की जिम्मेदारी है कि वे असहमति को दरकिनार कर स्वाधीनता को दबाने और सेंसरशिप को लागू करने के प्रयासों का लगातार विरोध एवं आलोचना करें?

ओरहान पामुक हमें निश्चित रूप से कहना चाहिए कि यह लेखक का कर्तव्य है, लेकिन साथ ही एक नागरिक का भी।यदि आप शिक्षित हैं और जानते हैं कि दुनिया कैसे चल रही है, तो निश्चित रूप से आपपर अधिक जिम्मेदारी है।लेकिन मैं इस बात को रेखांकित नहीं करना चाहता कि रचनाकार दूसरों की तुलना में राजनीति के प्रति अधिक जिम्मेदार है।

आप जानते हैं कि तुर्की लेखकों की पिछली पीढ़ी बहुत नेकदिल थी।पर वे राजनीति में चले गए और अपनी कला को नष्ट कर दिया और उनकी राजनीति भी बुरी साबित हुई।तो इस अर्थ में मैं राजनीतिक नहीं हूँ।मैं राजनीति का आदमी नहीं हूँ।मेरी पहली प्रेरणा प्राउस्टियन, नाबोकोवियन, बोर्गेसियन लिखना है, आप उसे जो भी नाम दें।राजनीति के बारे में सोचने के बजाय एक सुंदर उपन्यास लिखना मेरी पहली प्राथमिकता है।बेशक, जब आप दुनिया के किसी अशांत हिस्से में रहते हैं तो हर कोई आपसे राजनीति की बात करता होता है।लेकिन मैं अपने उपन्यासों में उनका जवाब देने की कोशिश नहीं करता।

प्रश्न– क्या आप सोचते हैं कि साहित्यिक क्षेत्र में ऐसी आवाजें और अधिक उभर रही हैं?

ओरहान पामुक– हां, भारत और चीन में ऐसी आवाजों के लिए आधारभूमि है।इसे आप उत्तर-औपनिवेशक या जो भी नाम दें।लेकिन सत्तारूढ़ राष्ट्रीय अभिजात वर्ग विकसित हो रहा है और इस वर्ग के लोग लगातार अमीर होते जा रहे हैं।अब दुख उपनिवेशीकरण का नहीं है, अब दुख इस बात का है कि किस तरह से उत्तर-औपनिवेशिक समाज उपनिवेशवाद में बदल रहा है।भारत में विशेष रूप से यह सब तरफ फैल रहा है।सत्तारूढ़ राष्ट्रीय अभिजात वर्ग, आप उन्हें पार्टियों के अभिजात वर्ग कहें, नए बुर्जुआ के रूप में पैदा हो रहे हैं।एक मजबूत मध्य वर्ग भी विकसित हो रहा है।उनके निजी जीवन को केवल साहित्य ही व्यक्त कर सकता है, जो दुनिया के लिए दिलचस्प होगा।

प्रश्न– आपके पसंदीदा लेखक कौन हैं?

ओरहान पामुक– बहुत सारे।दुनिया के सबसे महान लेखक गार्सिया मार्केज हैं।यदि मेरे पसंदीदा उपन्यासकारों की बात करें तो चार प्रमुख हैं- टॉल्सटॉय, दोस्तोयेव्स्की, थॉमस मान और मार्सेल प्राउस्ट।

प्रश्न आप अपनी मातृभाषा तुर्की में लिखते हैं।क्या आप समझते हैं कि अनुवाद होना चाहिए, ताकि व्यापक पहचान बन सके।

ओरहान पामुक– हाँ मैं तुर्क हूँ।मेरा जन्म तुर्की में हुआ है, इसका कोई विकल्प नहीं है।तुर्की एक अलग-थलग भाषा है।उन्हें बाहरी दुनिया में बहुत कम लोग जानते हैं।लेकिन वह मेरी मातृभाषा है।मैं पूरे जीवन उसमें लिखना चाहता हूँ।मैं अंग्रेजी जानता हूँ, पर तुर्की में लिखना मुझे बेहतर गुणवत्ता प्रदान करता है।

अनुवादक को पाना कठिन है।कोई बाहरी प्रकाशक तुर्की में लिखी रचना को प्रकाशित करने में हिचकिचाता है।मैंने उस भाषा में लिखा जिसमें मैं अपने दादा और दादी से बातें करता था।और उस समय दूसरी कोई भाषा भी मेरे लिए उपलब्ध नहीं थी।

एक लेखक होना कठिन काम है, परंतु इसके लिए मैं कोई शिकायत नहीं करता।

अंग्रेजी से अनुवाद अवधेश प्रसाद सिंह