‘आज बाहर जाना है और आज ही महारानी को बीमार पड़ना था।’उर्मिला बड़बड़ाते हुए जल्दी-जल्दी बचे बर्तन साफ कर रही थी।आज उसका महिला सशक्तिकरण को लेकर एक जरूरी कार्यक्रम है।

तभी ससुर जी ने आवाज लगाई,‘उर्मि बेटा, एक कप चाय और बना दो।सामने वाले शर्मा जी आए हैं।’

‘जी पापा’ कहते हुए उर्मिला ने बरतनों को बीच में छोड़ दिया।चाय देकर उसने सब काम निपटाया।कमरे से बाहर निकली ही थी कि उर्मिला के पति ने कहा,‘अरे! उर्मि तुम जा रही हो।ऐसा करो मेरा खाना लगा जाओ।मैं खा-पीकर कहीं घूम आऊं।’

उर्मिला पहले से लेट थी, पर कुछ बोलने का मतलब नाहक घर वालों की नाराजगी मोल लेना था।उसने जल्दी से राकेश को थाली लगाकर दी, फिर तेज कदमों से बाहर निकलकर, ऑटो से कार्यक्रम स्थल पर पहुंची।

खैर, वह ज्यादा लेट नहीं थी।अभी भी कुछ सहयोगी आ रहे थे।तभी मुख्य संयोजक वालिया जी हांफते हुए हॉल में आए।उर्मिला ने घड़ी देखकर मुस्कराते हुए उनकी तरफ देखा, वे पूरे पौना घंटा लेट थे।

वालिया अपनी झेंप मिटाते हुए उर्मिला से बोले,‘अरे मैडम, आप नहीं जानतीं, यहां तक आने के लिए कितने हर्डल्स पार करने पड़ते हैं।’

उर्मिला उनकी यह बात सुनकर बस मुस्कराई और मन ही मन बोली, ‘हर्डल्स! काश, होती मैं अनजान इनसे।’

२५—बी  सीताराम कॉलोनी, फेस—२, बलकेश्वर मंदिर रोड,  बलकेश्वर, वाटर वर्क्स, आगरा-२८२००४ मो.९४१२८१२९०२

Painting : Eduardo Kingman