खिड़की से अचानक बारिश आईएक तेज़ बौछार ने मुझे बीच नींद से जगायादरवाज़े खटखटाए ख़ाली बर्तनों को बजायाउसके फुर्तील्रे क़दम पूरे घर में फैल गएवह काँपते हुए घर की नींव में धँसना चाहती थीपुरानी तस्वीरों टूटे हुए छातों और बक्सों के भीतरपहुँचना चाहती थी तहाए हुए कपड़ों...
बाबा!मुझे उतनी दूर मत ब्याहनाजहाँ मुझसे मिलने जाने ख़ातिरघर की बकरियाँ बेचनी पड़े तुम्हें मत ब्याहना उस देश मेंजहाँ आदमी से ज़्यादाईश्वर बसते हों जंगल नदी पहाड़ नहीं हों जहाँवहाँ मत कर आना मेरा लगन वहाँ तो क़तई नहींजहाँ की सड़कों परमन से भी ज़्यादा तेज़ दौड़ती हों...
तीज – ब्रत रखती धन पिसान करती थींगरीब की बीबीगाँव भर की भाभी होती थीं कैथर कला की औरतेंगाली – मार खून पीकर सहती थींकाला अक्षर भैंस बराबर समझती थींलाल पगड़ी देखकर घर में छिप जाती थींचूड़ियाँ पहनती थीं, होंठ सी कर रहती थीं कैथर कला की औरतेंजुल्म बढ़ रहा था, गरीब – गुरबा...
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