प्रबुद्ध लेखक, रंगकर्मी और संस्कृतिकर्मी। इस वर्ष के आरंभ में ही दो ऐसे उपन्यास आ गए, जिनसे हिंदी कथा साहित्य समृद्ध होता दिख रहा है।यह एक संयोग ही है कि जिन उपन्यासों की चर्चा यहां होगी, उनकी रचनाकार स्त्रियां हैं।दोनों स्त्री रचनाकारों की चिंता और मांग भी समान...
प्रबुद्ध लेखक, रंगकर्मी और संस्कृतिकर्मी। जयशंकर प्रसाद और जैनेंद्र कुमार की जीवनियां बहुतों के लिए उत्सुकता जगा सकती हैं, क्योंकि दोनों अपने-अपने समय के बड़े साहित्यकार रहे हैं। प्रसाद के अवसान के ८३ वर्ष बाद आई यह जीवनी प्रसाद की रचनाओं की परतें भी खोलती है,...
प्रबुद्ध लेखक, रंगकर्मी और संस्कृतिकर्मी। ऐसे समय में जब सोच की शोचनीय हालत हो और हर स्तर पर सोच के महा अकाल के दृश्य उपस्थित हों तथा बिना सोचे-समझे जीने की लत लग गई हो, विजय कुमार और नरेश चंद्रकर की संपादित किताब जन बुद्धिजीवी एडवर्ड सईद का जीवन और...
प्रबुद्ध लेखक, रंगकर्मी और संस्कृतिकर्मी। गुजरात के आदिवासी कवि हैं चामूकाल राठवा।उनकी एक कविता ‘आदिवासी’ का एक अंश है, ‘इस शब्द को वे/इस तरह बोलते हैं/जैसे यह किसी/ महामारी का नाम हो/…इस शब्द को सुनकर/वे ऐसे देखते हैं/जैसे उन्होंने/आकाश में उड़ती/रकाबी देख ली...
रमाशंकर सिंह भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला में 2018 से 2020 तक फेलो। समाज, संस्कृति, राजनीति पर वायर हिन्दी, क्विंट हिन्दी और जनपथ जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर लगातार लेखन। ‘हिंदी लोकवृत्त की समस्याएं’ विषय पर आयोजित बहस के अंतर्गत पाठकों ने अबतक अजय कुमार,...
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