संपादकीय सितंबर–2024 : महादेवी : छायावाद की स्त्री आवाज

संपादकीय सितंबर–2024 : महादेवी : छायावाद की स्त्री आवाज

शंभुनाथ 11 सितंबर महादेवी वर्मा की पुण्यतिथि है। हिंदी में अपने महान साहित्यकारों का स्मरण करने की परंपरा कमजोर है, क्योंकि इसके लिए खुद को थोड़ा भूलना पड़ता है। हम कह सकते हैं कि महादेवी हमारे लिए आज भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। उनका काव्य स्त्री मुक्ति और छायावाद दोनों...
संपादकीय अगस्त-2024 : स्वाधीनता का वर्तमान

संपादकीय अगस्त-2024 : स्वाधीनता का वर्तमान

शंभुनाथ 15 अगस्त का स्वतंत्रता दिवस अब महज छुट्टी का एक दिन है या देश की राजधानियों में परेड और शक्ति प्रदर्शन का दिन। गली-मुहल्ले में तिरंगा फहराने का अनुष्ठान भी हो जाता है। सिर्फ यह नहीं सोचा जाता कि देश-दुनिया के हजारों-लाखों शहीदों ने कैसी स्वाधीनता के स्वप्न...
संपादकीय जुलाई 2024 : प्रेमचंद – परंपराओं से विच्छेद के दौर में

संपादकीय जुलाई 2024 : प्रेमचंद – परंपराओं से विच्छेद के दौर में

शंभुनाथ प्रेमचंद ने हिंदी प्रांतों के गवर्नर मालकम हेली की एक टिप्पणी ‘भारत 1983 में’ का विरोध करते हुए लिखा था, ‘सर मालकम हेली के विचार में भारत की परंपरा और उसकी संस्कृति प्रतिनिधि (लोकतांत्रिक) शासन के अनुकूल नहीं है। यह कथन हमें चिंता में डाल देता है।… यह...
संपादकीय जून-2024 : लेखक का अकेलापन

संपादकीय जून-2024 : लेखक का अकेलापन

शंभुनाथ साहित्य महज कुछ लिखना नहीं है, बल्कि यह दुनिया में प्रेम और स्वतंत्रता की खोज है जो कई बार अकेला कर देती है। फिर भी साहित्य लिखना और पढ़ना जरूरी है, क्योंकि यह जीवन की सुंदरताओं को बचाकर रखनेवाली मनुष्यता की सबसे सच्ची अभिव्यक्ति है। साहित्य का खो जाना सभ्यता...
संपादकीय मई-2024 : कामायनी का महत्व

संपादकीय मई-2024 : कामायनी का महत्व

शंभुनाथ यदि आज की उपभोक्ता संस्कृति के प्रतिपक्ष में किसी एक कृति को रखना हो, कहा जा सकता है कि वह प्रसाद की ‘कामायनी’ है। यह कृति सुख की दासता और स्वेच्छाचारिता से एक महाकाव्यात्मक विद्रोह है। आज का मनुष्य कृत्रिम इच्छाओं की वजह से भोगवादी और कट्टर एकसाथ दोनों होता...