युवा कवि; काव्य संग्रह ‘जंगल में पागल हाथी और ढोल’
संप्रति सरकारी सेवा में।

पहले जंगल
खेतों के पास थे
इतने पास कि
जंगली जानवर कर देते थे कभी-कभी
अतिक्रमित
खेतों और जंगल की सीमा
खेतों के पास थे
इतने पास कि
जंगली जानवर कर देते थे कभी-कभी
अतिक्रमित
खेतों और जंगल की सीमा
मेरे पिता ने देखे थे कई बार
भालू और बाघ
मेरी माँ समझती थी
लकड़बग्घे की आवाज
वे देखते ही समझ जाते थे
गेहुअन और करैत का फर्क
हमने सुनी थीं कहानियाँ साँप की
जो गाय का पैर बांध कर
उसका दूध पी जाते थे
अब जंगल खेतों से दूर चले गए
और जानवर आ गए
घरों के अंदर
उनकी पहचान संभव नहीं है
मेरे बच्चों के लिए खतरा बढ़ गया है।
संपर्क:आशीर्वाद, बुद्ध विहार, अशोक नगर, रांची-834002/ मो. 8797777598
जंगल में पागल हाथी ढोल
आपकी कविता अनेकों भाव से भरी है ।
बहुत सुंदर व्यक्त्तव्य है