गुरिंदर सिंह कलसी
वरिष्ठ पंजाबी कवि, चित्रकार और मोरिंडा (पंजाब) में शिक्षक। कई काव्य संकलन प्रकाशित।
रावेल पुष्प
कोलकाता के वरिष्ठ रचनाकार और पत्रकार। कविता संग्रह ‘मुझे गर्भ में ही मार डालो’, यात्रा संस्मरण, ‘मेरी बांग्लादेश यात्रा’। युगल किशोर सुकुल पत्रकारिता सम्मान। शोध पत्रिका– ‘वैचारिकी’ में साहित्य–संपादक।

दस्तख़त
रोटी का निवाला मुंह में डालते
बच्चों को पिज्जा, बर्गर खिलाते
दावतों में छत्तीस प्रकार के
व्यंजन वितरित करते
कॉटन की नरम कमीज पहनते, सेंट छिड़कते
मैं घर की सुंदर छत की ओर देखते
भूल जाता हूँ उस किसान को
जो दूर कहीं खेतों में हल चलाता है
मैं भूल जाता हूँ उस मजदूर को
जो छोटी-छोटी जरूरतों के लिए
मजबूर हो जाता है
मैं भूल जाता हूं उस कामगार को
जो घर से दूर मुश्किलों में
सामान पहुंचाता है
हां मैं भूल ही जाता हूँ
जब मेरी आंखों में सियासत का
सफेद मोतिया उतर आता है
मैं भूल कर उसका पसीना
अपने नकली आंसू बहाता हॅूं
नित नए लालच की गिरफ्त में आकर
उसकी और शायद अपनी मौत के भी
कागजों पर दस्तखत कर आता हूँ।
संघर्ष की तस्वीर
गरम तवों पर बैठने वालों की संतान हैं हम
गरमी से क्या डरना
सिरसा नदी में बिछड़ गए
उस परिवार के बंदे हैं हम
आंधी तूफानों से क्या डरना
ठंढे बुर्ज में काटी गई
रातों वाली उस दादी मां के पोते हैं हम
ठंढ ने हमारा क्या करना
चमकौर की गढ़ी से भूखे प्यासे
लड़ने वाले उन बुजुर्ग
सिखों में से ही हैं हम भी
भूखे रहने से क्या डरना
हमें मत आजमाओ
हमारे सब्र की परीक्षा मत लो
चाहे मरना ही क्यों न पड़े
हम हारने वालों में से नहीं।
संपर्क : नेताजी टावर, 278/ए, एन. एस. सी. बोस रोड, कोलकाता – 700047 मो. 9434198898
कलसी जी आपकी कविता ‘संघर्ष की तस्वीर’ वास्तव में किसानों की आवाज सुनने में बहरी सरकार के मुंह पर थप्पड़ है और एक मुक्कमल जवाब है । इस अति संवेदनशील कविता के लिए धन्यवाद