पंजाबी और हिंदी, दोनों भाषाओं में लेखन।

वो रोज टीवी देखते थे

थे वे हमारे जैसे ही
लेकिन हमारे साथ नहीं
अलग खड़े थे
हमारे साथ खेले थे, हम साथ पढ़े थे
हम सबकी समस्याएं एक जैसी थीं
हालात लगभग एक जैसे थे
न ही वे सरकार थे
न वे मक्कार थे
लेकिन जब हमने अपने वर्तमान
और भविष्य को संवारना चाहा
वे हमारे खिलाफ हुए
उन्होंने हम पर कई उपनाम जड़े थे
हम हैरान थे, परेशान थे
यह कैसे हो सकता है
कहां से सीखी गई यह सोच
तरीका, भाषा
हमने सुन रखा था बजुर्ग सयानों से
कि एक जैसे हालात के मारे लोग
लगभग एक जैसे होते हैं
सच जानने की जल्दी में
हमने उनका पीछा किया
घर तक पहुंच गए और पता चला
वे रोज टीवी देखते थे!

हम लौट जाएंगे

हमारा पानी दे दे
हमारी मिट्टी दे दे
हम लौट जाएंगे
अपनी खाद ले जा
दारू दवाई ले जा
काली कमाई ले जा
किसान की खुदाई दे दे
हम लौट जाएंगे
तेरा कथन है कि
हरी-क्रांति से पहले कोई तरक्की नहीं थी हुई
हम कहते हैं
हरी-क्रांति से पहले कोई खुदकुशी नहीं थी हुई
अपनी क्रांति ले जा
हमारी शांति दे दे
हम लौट जाएंगे
हम मोल भाव नहीं
हिसाब करने आए हैं
आज के नहीं
मुद्दत्तों से सताए गए हैं
अपने झूठे केस ले जा
झूठे कर्ज ले जा
हमारे अंगूठे दे दे
हम लौट जाएंगे
हमारा पानी दे दे
हमारी मिट्टी दे दे
हम लौट जाएंगे।

(अनुवाद : स्वयं कवि)

संपर्क : नरेंद्र कुमार, 70, शिव नगर, सोडल रोड, जालंधर सिटी (पंजाब), 144004  मो. 9417049039