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हिंदी प्रस्तुति : बालकृष्ण काबरा ‘एतेश’ कवि और अनुवादक।अद्यतन कविता संग्रह : ‘छिपेगा कुछ नहीं यहां’।विश्व काव्यों के अनुवादों के दो संग्रह ‘स्वतंत्रता जैसे शब्द’ और ‘जब उतरेगी सांझ शांतिमय’ और विश्व कथाओं और लेखों का संग्रह प्रकाशित ‘ये झरोखे उजालों के’। |
परंद
अफगानिस्तान की युवा महिला कथाकार। दरी भाषा में लेखन। साहित्यिक नाम परंद का फारसी अर्थ पक्षी है।
महिलाओं पर तालिबानी अत्याचार और दमन के विरोध में परंद मुखर रही हैं। उन्होंने अपने कपड़ों के चयन में काले हेड स्कार्फ के बदले गुलाबी हेड स्कार्फ का चयन किया है। उनकी यह लड़ाई हेड कवरिंग को लेकर नहीं, बल्कि अपनी पसंद–नापसंद को लेकर है। वे कहती हैं, ‘लिखो! कि तुम क्यों भयभीत हो। लिखो कि तुम्हें किससे डर है। तुम्हारा लेखन किसी आहत मन का उपचार कर सकता है। तुम्हारी कलम कुछ निराश लोगों में एक छोटी–सी आशा पैदा कर सकती है।’ परंद के स्पष्ट चित्र उपलब्ध नहीं हैं।
(दरी भाषा से अंग्रेजी में अनुवाद : परवाना फैयाज)
मध्य अक्टूबर। बसंत और गर्मी के तूफानों में पले-बढ़े फल पेड़ों पर झिलमिला रहे हैं। अपने उपहारों के साथ चली आई है अनुदाता शरद ऋतु। लोग फसलों में अपना हिस्सा लेकर बैग और बक्सों में भर रहे हैं। जाहरा भी अपने बगीचे में दिन-ब-दिन व्यस्त होती जा रही है।
जैसे ही वह बगीचे के पीछे का गेट खोलती है, इसकी टूटी हुई लोहे की छड़ें उसके दुपट्टे और स्कर्ट को थोड़ा चीर देती हैं। अपने एक हाथ में टूटे हुए प्लास्टिक के जूते लिए वह खुद को बाहर की ओर खींचती है। उसके दुपट्टे के एक कोने में गांठ में बंधी कोई चीज पेंडुलम की तरह बाएं से दाएं, दाएं से बाएं झूलने लगती है।
खुद से वह कहती है : यह भी कोई जिंदगी है। गरीबी के बोझ से मुक्त होने के लिए मैंने शादी की, किंतु मेरी स्थिति तो और भी बदतर हो गई। मेरे पति की पहली पत्नी रोशन गुल को देखो! उसका भाग्य उज्ज्वल और मेरा अंधकारमय है। किसी ने सही कहा है, ‘धन्य है वह दुल्हन जिसका जीवन सूर्य-सा प्रकाशमान हो।’ उनका यह कहना भी सही है, ‘जब भाग्य साथ न दे तो चेहरा रुदन करता नजर आता है।’
वह फटे हुए जूते को गुस्से में अपने सिर के ऊपर घुमाती है और अपनी पूरी ताकत से बहुत दूर उछाल देती है। उसे लगता कि उसका दुख हवा में उड़ रहा है।
वह नंगे पैर चलती है, लेकिन मन से वह हल्का महसूस करती है।
मन-ही-मन वह कह उठी, ‘धैर्य कड़वा होता है, लेकिन उसका फल मीठा होता है। वह दिन जरूर आएगा जब मैं गांव के सुनार से माणिक की एक अंगूठी खरीदूंगी और उसे तब तक पहने रखूंगी जब तक कि रोशन गुल पूरी तरह से जल-भुन न जाए। उसे उस अंगूठी का बड़ा घमंड है जो उसे उसकी माँ से विरासत में मिली है।’ जाहरा को अपनी मां की याद आती है जो अन्य सभी महिलाओं की तरह ऐसी अंगूठी चाहती थी, लेकिन वह ऐसी अंगूठी कभी न ले पाई, न ही वह ऐसा कुछ मुझे दे सकी।
यह सब सोचते हुए वह अपने दुपट्टे की गांठ को छूती है मानो कोई पवित्र चीज उसमें बंधी हो। वह जीत की खुशी से मुस्कुरा उठती है। बस कुछ दिन और, कुछ और बादाम, और मेरे पास अंगूठी के लिए पैसे आ जाएंगे।
अपनी आंखें बंद कर वह अपनी उंगली में अंगूठी होने की कल्पना करती है। बगीचे में कटाई से सने अपने खुरदरे हाथ में माणिक की चमकती लाल अंगूठी का चित्र उसे दिखाई देता है।
सर्दियों की धूप में गर्माहट है। यह गर्माहट उसे अच्छी लग रही है। इसका पवित्र एहसास उसे उस वास्तविकता से दूर ले जाता है, जिसका वह हिस्सा नहीं बनना चाहती। अपनी कल्पनाओं की बालकनी में वह एक क्वीन की तरह है। वह देखती है कि वह एक हरे रंग की मखमली पोशाक पहने हुए है, जिसमें अनेक चुन्नटे हैं और जो गांव की दस महिला दर्जियों द्वारा मिलकर तैयार किया गया है। उसके हाथ कोमल और युवा हैं और एक उंगली में माणिक की अंगूठी है, माणिक जिसे सोने की प्लेट में जड़ा गया है। उसे अचानक चिंता होती है कि कहीं वह अपने पुराने प्लास्टिक के जूते पहनकर तो यहां नहीं आ गई है। वह डर से कांप रही है। क्या होगा यदि रोशन गुल, जो दूर खड़ी है और अन्य महिलाओं की तरह ईर्ष्यालु है, इन जूतों को देख ले। वह अपने पैरों की ओर देखती है और राहत महसूस करती है कि वह तो सुनहरी चप्पलें पहने हुए है, ठीक वैसी जैसी उसने गांव की सबसे अमीर महिला को पहने हुए देखा था और तब उसका आकांक्षी मन दुखी हो गया था।
उसे अचानक कमर में तेज दर्द महसूस हुआ। वह सोचती है कि वह बहुत देर से खड़ी है और अब उसे आराम करना चाहिए। इसी वक्त उसे अपने सौतेले बेटे की शरारती हँसी सुनाई देती है, जो उसे वापस कड़वी हकीकत में खींच लाती है और वह उस पत्थर की ओर देखती है जो उसने उसकी ओर फेंका था।
वह हँसते हुए ताना मारता है, ‘पागल औरत, तुम क्या फिर से अपने सपनों की दुनिया में खोई हुई हो? खुद से बातें करते हुए तुम कब से खोई हुई हो? लौट आओ अपनी वास्तविक दुनिया में।’
वह उसे वहां से जाने को कहती है और अपने दिवास्वप्न में लौटने की कोशिश करती है। लेकिन लड़के की नारकीय आवाज ने उसकी खुशी छीन ली। वह लड़का सामी जान है। वह पक्षियों को मारता है, तितलियों को बांधता है और मधुमक्खियों को डोरी से कस देता है। और अब जब जाहरा ने उसके पिता से शादी कर ली है, सामी जान को एक नया क्रूर मनबहलाव का साधन मिल गया है।
जाहरा चलना शुरू करती है और थोड़ी देर बाद एक टूटी-फूटी इमारत तक पहुंचती है। वह लकड़ी के भारी दरवाजे को खोलकर अंदर प्रवेश करती है। वहां कोई नहीं है। वह उस खलिहान की ओर बढ़ती है जहां भूसे की गांठें पड़ी हुई हैं। ढेर के बीच वह कुछ खोजने लगती है और बादाम का थैला मिलने पर राहत महसूस करती है। अपने दुपट्टे की गांठ खोलकर वह थैले में और बादाम डाल देती है। वह थैले के वजन का अनुमान लगाती है और इसे फिर से वहां छुपा देती है। वह इन नरम खोल वाले बादामों को इकट्ठा करती है, जिन्हें सर्दियों में केवल उसके पति को खाने की अनुमति है।
वह सोचती है, काफी बादाम इकट्ठे हो गए हैं। बस अपने दुपट्टे में कुछ और बादाम बांध कर लाऊंगी और जल्द ही मैं वह अंगूठी खरीद लूंगी।
अचानक उसे लगता है कि कोई उसे देख रहा है और वह बेचैन हो जाती है। खलिहान के एक छिद्र से वह देखती है और उसे लगता है मानो कोई अपनी आंखें उस पर गड़ाए हुए है। वह इधर-उधर तलाशती है पर वहां कोई नहीं होता। वह सोचती है कि यह एक सामान्य भ्रम था जो उनके साथ हो सकता है जो छिपाकर कुछ करते हैं।
वह घर चली आती है। घर में घुसते ही उसके सामने रोशन गुल खड़ी होती है। उसकी निगाहों से बचते हुए वह दूसरी ओर मुड़ जाती है।
फिर भी रोशन गुल ने उससे पूछा, ‘इतनी देर से तुम बगीचे में क्या कर रही थी? क्या तुम किसी नए प्रेमी का सपना देख रही थी? जल्दी करो और डिनर बनाना शुरू करो। यदि थोड़ी भी देर हुई तो हाजी जान तुम्हें मार ही डालेंगे।’
जाहरा ने अब रोशन गुल को नजरअंदाज करना सीख लिया है। एक गरिमा के साथ वह उस कमरे से दूसरी ओर चली जाती है।
वह रसोई में पहुंचती है जो अब उसकी शरणस्थली बन गई है। वह कड़ाही में तेल डालती है। इसे गर्म करने के दौरान उसे किसी चीज के गिरने की भारी आवाज सुनाई देती है। उसका दिल बैठ जाता है। एक डर उसमें समा जाता है। उसे लगता है कि यह आवाज बादाम की थैली के जमीन पर गिरने की है। उसके रहस्य का पता चल गया है! उसने सिर उठाकर थैली को देखने की हिम्मत नहीं की, उसे लगा उसका सपना फर्श पर गिरा पड़ा है।
उसने सोच लिया था कि वह यह नहीं देखेगी। वह पिटाई और सजा स्वीकार करने को तैयार थी।
लेकिन कोई भी कुछ नहीं कहता, इसलिए धीरे-से वह अपना सिर उठाकर देखती है। वहां तो जलाऊ लकड़ी का गट्ठा था, जो उसके सौतेले बेटे ने पहले से ही इकट्ठा कर रखा था। वह मन-ही-मन मुस्काती है और सोचती है कि वह बिना वजह ही डर रही थी। उसे बस शांति की जरूरत है।
अपनी चिंता से मुक्त होकर वह डिनर बनाने में व्यस्त हो जाती है। वह प्याज काटकर गर्म तेल में डाल देती है। उसका धोना, काटना, उबालना, पकाना चलता रहता है। तभी कोई पीछे से उसके बाल पकड़कर उसे जमीन पर पटक देता है। यह उसका पति था।
जाहरा दर्द से चीख उठती है।
वह चिल्लाकर कहती है, ‘क्या दिक्कत है तुम्हें?’
उसका पति हँसते हुए कहता है, ‘मुझे क्या दिक्कत है?’
अट्टहास करते हुए वह अपने बेटे को बादाम का थैला लाने को कहता है। थैले को वह जाहरा के नजदीक तक घसीट कर लाता है और पूरे मेवे जमीन पर बिखेर देता है।
‘क्या कहना है तुम्हारा इनके बारे में?’ यह कहते हुए उसका पति उसके बाल बड़े हिंसक रूप से खींचता है और उसे एक थप्पड़ जड़ देता है। उसके हाथों की ताकत इतनी थी कि जाहरा का मस्तिष्क झनझना गया। उसके कानों में सैकड़ों मधुमक्खियों की आवाजें गूंजने लगीं। वह चीखते हुए कहता है, ‘मुझे जवाब चाहिए!’
इस बीच रोशन गुल मुस्कुराते हुए आ जाती है। ‘क्या तुम बहरी हो? हाजी को जवाब चाहिए।’
‘जवाब! किस चीज का जवाब?’ वह बार-बार जमीन से उठने की कोशिश करती है, किंतु उसका पति लात मार-मारकर उसे उठने नहीं देता। वह कहती है, ‘उसे एक अंगूठी चाहिए, गांव के उसी सुनार की दुकान से माणिक की अंगूठी, ठीक वैसी जैसी रोशन गुल के पास है।’
उसका पति, पहली पत्नी और उसका बेटा एक साथ जोर-जोर से हँसते हैं। उसका पति उसकी गर्दन पकड़कर जोर से दबाने लगता है कि उसका दम घुट जाए।
उसका पति हँसते-हँसते उस पर चीखता है, ‘तुम्हें अंगूठी चाहिए! और वह भी गांव के उसी सुनार से!’
रोशन गुल उसकी गर्दन को और भी जोर से दबाने को उकसाती है।
जाहरा ठीक से सांस नहीं ले पा रही थी। फिर भी उसने कहा, ‘मुझ पर हँसो मत! मेरी इच्छा गलत नहीं है।’
लड़के को लगने लगता है कि ऐसे गला दबाने से जाहरा कहीं मर न जाए। वह अपने आबा से बोलता है, ‘आबा सावधान! कहीं वह मर न जाए और आपको जेल जाना पड़े। किसी चोर को सजा देने के और भी तरीके हैं।’ वह अपने पिता की ओर देखता है। वह उसकी बात से सहमत होते हुए जाहरा की गर्दन पर अपनी पकड़ ढीली कर देता है।
खाँसते-खाँसते जाहरा अपनी गर्दन छुड़ाकर बाहर निकलने दरवाजे की ओर लपकती है। उसकी यह कोशिश भी बेकार हो जाती है। रोशन गुल और सामी जान उसे पकड़कर फिर उसे उसके पति के हवाले कर देते हैं। वह उसका हाथ खौलते हुए तेल की ओर बढ़ाते हुए पूछता है –
‘अब बोलो, क्या होगा तुम्हारी इच्छा का?’
बालकृष्ण काबरा ‘एतेश’, 11, सूर्या अपार्टमेंट, रिंग रोड, राणाप्रताप नगर,नागपुर – 440022 (महा.) मो. 9422811671