ओड़िया और हिंदी में एक जाना-पहचाना नाम। कई पुरस्कारों से सम्मानित। देश और विदेश की कई भाषाओं में रचनाएं अनूदित।
यूं ही कविता लिखते लिखते
मेरे घर की छत से गिरती
बारिश की बूंदें
किसी के आंसू थे
आसमान रो रहा था!
शायद उस दिन
छत बनाते वक्त
मजदूर के शरीर का पसीना या
पेट की भूख की पीड़ा
आंसुओं में बदल कर
छत के किसी कोने के छेद में
संचित हो गई थी!
छत से चूती उन बूंदों को
रोक नहीं सकते
केवल एक बाल्टी रख दें तो
चलेगा नहीं क्या?
काश, बारिश की बूंदों की तरह
शब्द भी गिरते
एक कोरी डायरी रख देती और
एक कविता जमा हो जाती!
कविता लिखते-लिखते सारे कवि
ऋषि में बदल जाते हैं
अपनी इच्छाओं को मार
उनकी अर्थी रखकर जब आपने कंधे पर
ले जाते हैं तब भी कविता लिख लेते हैं
उन्होंने साबित कर दिया है कि
कविता अभी भी एक बिंदु की तरह है
लेकिन मुझे पता है
कवि अपनी कविता में
अपने हत्यारे होने के
कुछ सबूत छोड़ जाते हैं।
संपर्क : द्वारा एस. के. मिश्रा, २ डी २०४, सनसिटी फेज-१, ठाकुर विलेज, कांदीवली ईस्ट मुंबई-४००१०१ मो.९८६७११३११३