भावना सिंह, हालिशहर :2022 के जनवरी अंक में छपी ईशमधु तलवार जी की कहानी ‘पत्थर के डालर’ अंतर्मन को छू गई।सच में इस कोरोना महामारी ने बहुतों से बहुत कुछ छीन लिया।हम दिन-रात पाने की चाह में बस चलते चले जा रहे थे, पता नहीं कब इस महामारी ने हम पर विराम लगा दिया।यह कैसी महामारी है, जहां बीमार भी खुद होना है, दवा भी खुद लेनी है तथा अपनी देखभाल भी खुद करनी है, जब तक हम पूरी तरह ठीक न हो जाएं।और तो और अगर इस महामारी के दौरान व्यक्ति की मौत हो जाए तो अंतिम विदाई भी घरवालों को नसीब नहीं होती।रिश्तों की निमर्मता का लेखा-जोखा व्यक्त करती है यह कहानी।
इस अंक की एक दूसरी कहानी एकांत श्रीवास्तव की ‘जलरंग’ है।सच में जल का कोई रंग नहीं होता।बच्चों को जिस रंग में ढालिए, उसी को अपना मान लेते हैं।उनके रंग की बस एक ही परिभाषा होती है- प्रेम।उम्र में छोटे होते हुए भी लेखक, हरिओम के साथ ही खेलते हैं।एक तरफ हरिओम, लेखक को बीड़ी पीना सिखाता है।दूसरी तरफ, लेखक के दूर जाने पर उसे कंचे से भरी पोटली भी लाकर देता है।प्रेम और लगाव होते ऐसे हैं जहां न कोई वर्ण आड़े आता है न वर्ग।इस कहानी को पढ़ते हुए श्री टी. पद्मनाभन की कहानी ‘कंचा’ का चित्र मानस पटल पर उभरने लगता है।
इस अंक में शर्मिला जालान का संस्मरण ‘प्रबोध कुमार-जो दूसरों की कथा सुनाते रहे’, पढ़ने को मिला।सच में लेखक की महानता केवल लेखनी से नहीं होती, उसका व्यक्तित्व भी उन्हें बड़ा लेखक बनाता है।
पुष्पांजलि दास:‘वागर्थ’ के फरवरी अंक में सविता सिंह की उम्दा पंक्तियां हैं।सही है, प्रेम भी गल रहा है, बह रहा है, रिस रहा है आत्मा के रंध्र से, जम रहा है काई सा, सब कुछ हो रहा है, पर प्रेम ही नहीं हो रहा है।
उदय राज: फरवरी अंक की परिचर्चा महत्त्वपूर्ण है, साहित्य के प्रति जागरूक और समर्पित जनों की संगत हर उदीयमान बीज में प्राण फूँक देता है ।आभार और शुभकामनाएं!
रमेश कुमार घई: फरवरी अंक में समीक्षा संवाद के अंतर्गत संजय अलंग के बारे में कहूँ तो वे न केवल अच्छे प्रशासनिक अधिकारी हैं, बल्कि एक अच्छे कवि भी हैं।खदान मजदूरों के प्रति उनकी सहृदयता उनकी कविताओं में प्रकट होती है।वे एक अच्छे प्रकृति प्रेमी भी हैं।
रेणुका श्रीवास्तव:‘वागर्थ’ के जनवरी अंक में मल्टीमीडिया के अंतर्गत जयशंकर प्रसाद जी की कालजयी रचनाओं- आत्मकथा और ‘बीती विभावरी जाग री’ का काव्य पाठ सुंदर है।लगा, जैसे यह प्रसाद जी की ही वाणी हो।बहुत आभार इस सुंदर अनुभव हेतु!
श्याम मनोहर पांडेय:‘वागर्थ’ के जनवरी अंक में प्रसाद जी गंभीर कर देते हैं, रुला देते हैं और फिर गुदगुदी कर देते हैं।अद्भुत एवं प्रिय कवि।अनुपम जी का स्वर एवं आह्लादक संगीत, नृत्य तथा गायन।वागर्थ परिवार को हार्दिक बधाई एवं धन्यवाद।
आशीष रिम्बल:‘वागर्थ’ फरवरी अंक।महाभारत पर आधारित नरेश मेहता की कृति ’महाप्रस्थान’ की मल्टीमीडिया प्रस्तुति रोचक थी।मैं सच में वागर्थ के कविता चित्रपाठ का इंतज़ार करता हूं।आप बहुत अच्छी कविताएं चुनते हैं और उतना ही सुंदर संयोजन होता है।