नंदकिशोर तिवारी, वाराणसी:‘वागर्थ’ मासिक का दिसंबर ’21 अंक देखा।जायसी का पद्मावत : पंचशती चर्चा जानकारीपूर्ण लगी।जसिंता केरकेट्टा की कहानी ‘औरत का घर’ हरियश राय की ‘इंडिया’, नर्मदेश्वर कर ‘अजान’ रुचिकर लगे।कविताएं भारत यायावर, राजेंद्र उपाध्याय, पूजा यादव की रचनाएं अच्छी लगीं।

आशीष मिश्र का ‘सीमांत का सौंदर्य और विषाद’ (संवाद) की रोचक लगा।कुसुम खेमानी का ‘मारवाड़ी राजवाड़ी’ की रोचकता भी एक स्निग्ध चुभन दे जाती है।वैसे इनकी रचनाएं तो आत्मीयता भरी होती है जिससे पाठकों को बांधे रखने का प्रचुर गुण है।

गुलशेर अंसारी, मुजफ्फरनगर:‘वागर्थ’ का जनवरी अंक पढ़ा।एकांत श्रीवास्तव की कहानी ने विशेष प्रभावित किया। ‘गांधी की चेतावनियां और नया भारत’ परिचर्चा सर्थक लगी।कविताएं और लघुकथाएं अच्छी हैं।एक बढ़िया अंक के लिए धन्यवाद।

संदीप अवस्थी, अजमेर: लंबे इंतजार के बाद ‘वागर्थ’ के दिसंबर 21, जनवरी  2022  के अंक मिले।सर्वप्रथम भारतीय भाषा परिषद की पूरी टीम और अध्यक्ष वरिष्ठ लेखिका कुसुम खेमानी को बधाई।प्रिंट पत्रिकाओं और छपे अक्षर का स्थान कभी भी वर्चुअल माध्यम नहीं ले सकता।समृद्ध अंक के रूप में ‘वागर्थ’ हाथ में लेते ही उसकी खुशबू, साहित्य की लपट और विचारों की कल-कल करती धारा का अहसास हुआ।जनवरी अंक में एकांत श्रीवास्तव, अश्विनी कुमार दुबे की कहानी अपने कथ्य और सामान्य शब्दों से जादू जगाती हैं।वहीं नई पीढ़ी के कवियों की रचनाएं ध्यान आकर्षित करती हैं।परंतु यह खटकता है कि दोनों अंकों में लगभग ९० प्रतिशत शिक्षक ही छप रहे हैं।हिंदी साहित्य शिक्षकों पर निर्भर क्यों हो? अन्य क्षेत्रों और सुदूर राज्यों, शहरों में भी अच्छे लेखक हैं, उन्हें भी स्थान दें।समीक्षा का नया ढंग थोड़ा अलहदा है पर यह अपने (लेखक के) स्तुति गान-सा हो गया है।नामवर जी को उद्धृत करूं तो, ‘अच्छी समीक्षा में आलोचनात्मक दृष्टि होना जरूरी है।इसके बिना वह अधूरी है।’

‘मारवाड़ी राजवाड़ी’ एक नजर में अपने सरल शब्दों और भावों से ध्यान खींचती है।फिर धीरे से पात्रों, खासकर ॠतु के साथ हम कैसे उस माहौल को जीवंत रूप से महसूस करते हैं, यह कमाल कुसुम जी ही अपनी लेखनी से कर पाती हैं।कुरीतियों, उस जमाने की खराबियों पर लेखिका बड़ी मजबूती से प्रहार करती है।आगे के अंश पढ़ने की उत्सुकता रहेगी।

ओम प्रकाश शर्मा प्रकाश: सच्चा साहित्यकार संवेदनशील होता है।बिना इसके वह कलाकार नहीं बन सकता।संवेदना के अभाव में समाज के दुखदर्द को वह समझ नहीं सकता।समाज के प्रति एक उत्तरदायित्व हमेशा से उसके कंधों पर रहता रहा है। ‘वागर्थ’ जनवरी ’22 के अंक के साहित्यकारों और कवियों के वैशिष्ट्य को रेखांकित किया गया है।

कहानियां ‘पत्थर के डालर’ (ईशमधु तलवार) और ‘महानता’ (अश्विनी कुमार  दुबे) विशेष रूप से अच्छी लगीं।कविताएं भी।अंक का सबसे महत्वपूर्ण भाग गांधी जी के विचारों और जीवन-सिद्धांतों का तार्किक विश्लेषण है।इसे देश के लिए अपनाने की तजबीज है।गांधी के विचारों की अनुपस्थिति राष्ट्रीय जीवन और सामाजिक उत्थान के लिए बहुत बड़ी बाधा सिद्ध होगी।शासन का अंकुश जितना कम होगा, आम नागरिक का हित-साधन उतना ही अधिक होगा।गांधी को समझना और उस पर अमल करना समय की जरूरत है।उनके जीवन-दर्शन की सटीक प्रस्तुति अंक की बड़ी उपलब्धि है।

मधुलिका, औरंगाबाद:‘वागर्थ’ का प्रत्येक अंक उत्कृष्ट सामग्री से भरा होता है किंतु दिसंबर २०२१ का अंक मेरे लिए खुशियों से भी भरा है।इसके प्रकाशन के कुछ ही दिन पूर्व मैं परिणय सूत्र में बंधी।मुझे इस बात की भी खुशी है कि ‘पद्मावत’ का पंचशती वर्ष मेरे विवाह का भी वर्ष है।जायसी का ‘पद्मावत’ ः पंचशती चर्चा विषय पर परिचर्चा आयोजित करने के लिए अनूप यादव को अनेक साधुवाद। ‘सूफी प्रेम के मायने’ में मंसूर हल्लाज, बाबा फरीद, बुल्ले शाह, वारिस शाह, जलालुद्दीन रूमी, अमीर खुसरो जैसे सूफी साधकों के साथ ही रबिया और जहांआरा का संदर्भ देकर लेखक ने सूफी प्रेम के अनेक आयामों का उद्घाटित किया है।हुस्न तबस्सुम निहां की कहानी ‘अनबीता व्यतीत’ में अति महत्वाकांक्षी रश्मि का प्रतिकूल परिस्थितियों में ससुराल से हटना और फिर वहीं वापसी की विवशता हमें अंदर तक झकझोरती है।

छेदीलाल कांस्यकार, वाराणसी:‘वागर्थ’ जनवरी 2022 का अंक मिला।शानदार फनकार गौहर जान (1873 से 1930) के जीवन पर आधारित आलेख ‘गौहर जान का जमाना’ अदाकारा की कला निपुणता के साथ उसके दृढ़ मनोबल का सटीक लेखा-जोखा प्रस्तुत करता है।

एक बेबाक, मनस्वी, विस्मृति के गर्त में छिपे एक तवायफ के कटु-मधुर जीवन का विश्लेषण कर लेखकद्वय ने पत्रिका का गौरव बढ़ाया है।मशहूर शायर ‘अकबर इलाहाबादी’ ने ठीक ही कहा था- ‘खुशनसीब आज भला कौन है गौहर के सिवा/सब कुछ अल्लाह ने दे रखा है शौहर के सिवा।’

नीतू बंसल:‘वागर्थ’ फरवरी 2022अंक।संपादकीय में बुद्धिजीवी पाठक वर्ग को सचेत करने के लिए साधुवाद! आम जन से लेकर बुद्धिजीवी पाठक तक किस तरह आज मीडिया का शिकार हो रहा है, यह चिंता का विषय है।

गोपाल कृष्ण शर्मा: आदमी की लंपटता और विवशता का लाभ उठाने की प्रवृत्ति का बहुत ढंग से चित्रण करती है सुषमा मुनींद्र की सुंदर कहानी ‘शामिल फैसला’।दांपत्य जीवन के प्रेम और भरोसे पर आधारित है रविशंकर सिंह की मार्मिक कहानी ‘योद्धा’।

कृष्ण पाठक:‘वागर्थ’ के फरवरी 2022 अंक में आशीष मिश्र ने अपने आलेख ‘स्त्री के अंतर्लोक का वैभव’ में तीन तरह की महिलाओं और उनकी रचना प्रक्रिया के बारे में बताया गया है।उनमें एक है स्त्री की कामनाओं का, इच्छाओं का संसार।इसे ही आधार बनाकर सविता सिंह कविताएं लिखती हैं।

सविता सिंह का मानना है कि सिर्फ हक-अधिकार मांगने से काम नहीं चलेगा।चलिए हक-अधिकार मिल भी गए तो क्या करेंगी? अगर मन पुरुषों द्वारा दिखाए सपने में ही उलझा हो।

कार्तिक राय: फरवरी अंक में बहुत शानदार लेख है आशीष मिश्र का ‘स्त्री के अंतर्लोक का वैभव’।सविता अपने बिंब प्रयोग और नवीन अर्थ छवियों के लिए जानी पहचानी जाएंगी।कविता स्वयं उनके लिए एक सहयात्री है, उनका अपना साथी है।