रजनी शर्मा बस्तरिया, रायपुर:‘वागर्थ’  का जून 2024 अंक जो आदिवासी साहित्य पर आधारित है, बहुत ही शानदार है। मन को छू लेने वाला है। अनुज जी की कविताएं मुठभेड़ 1, 2, 3, 4, 5 लाजवाब हैं। कनक तिवारी की रचना  सारगर्भित है और शुभम यादव जी का लेख ‘आदिवासी जीवन की वर्तमान चुनौतियां’ प्रमाणों के साथ अकाट्य तर्क  रखता है। जसिंता  केरकेट्टा की कहानी एक पुरानी फिल्म ‘कमला’ की याद दिलाती है।

अंक पर कहीं एक कोना, जो बस्तर के नाम से होना था, वह लगभग खाली ही छूट गया।

आशीष कुमार:‘वागर्थ’ अप्रैल 2024  मल्टीमीडिया में निर्मला पुतुल की कविता ‘उतनी दूर मत ब्याहना बाबा’ का कविता चित्रपाठ देखा। अदभुत कविता है, खासकर आखिर की तीन पंक्तियां जिससे खाया नहीं जाए, मेरे भूखे रहने पर उसी से ब्याहना मुझे…!

ऋतु शर्मा: मई अंक में हरिमोहन झा की कहानी ‘विनिमय’ बहुत अच्छी कहानी है। उसका अनुवाद भी बहत अच्छा है। कहानी पढ़ते समय कहीं भी यह नहीं लगा कि यह अनुवाद है। मैं स्वयं एक अनुवादक भी हूँ ( डच-हिन्दी)। इसलिए यह कह सकती हूँ कि यह अनुवाद मूल कहानी से ज़्यादा सुंदर है।

अमित कुमार चौबे:‘वागर्थ’ के अप्रैल अंक में उपमा शर्मा की कहानी ‘प्रोग्रामिंग’। रोबोट मानव संवेदना की अनुभूति करने में सक्षम नहीं होते। वे केवल प्रोग्राम के अनुसार कार्रवाई करते हैं और संवेदनशीलता का अनुभव नहीं कर सकते। हालांकि, लोग अक्सर रोबोट को अपनी संवेदना के रूप में परिभाषित करते हैं, लेकिन यह रोबोट की वास्तविक संवेदना नहीं होती।

 बदलाव तेजी से हो रहा है। जीवन और मनुष्य को देखने का नजरिया बेहद बदल चुका है। ऐसे में यह बात उभरकर सामने आती है कि क्या संवेदना सच में खत्म हो जाएगी और लोगों के भीतर अ-मनुष्यता घर कर लेगी। रीटा एक प्रोग्रामिंग लैंग्वेज द्वारा जब अपने पूर्वजों को देखती है तो वह निष्कर्ष निकालती है कि मानव सभ्यता और विकास के क्रम में सबसे बड़ी बाधा संवेदना थी। संवेदना के कारण ही लोग आपस में जुड़े रहते थे और एक दूसरे से अलग नहीं हो पाते थे। इसी कारण विकास का चरम अपने शीर्ष पर नहीं पहुंच सका।

कहानी वाकई में एक नया नजरिया प्रदान करती है और बताती है कि हम कितने भी विकसित हो जाएं, संवेदना के स्तर को कभी भी प्रोग्रामिंग में ढाला नहीं जा सकता है। उसका ढांचा बनाया जा सकता है, लेकिन उसे वास्तविकता में निरूपित नहीं किया जा सकता। कहानी के अंत में रीटा को इसी बात का आभास होता है, जब वह अमन से हाथ पकड़कर कहती है, ‘यह बताओ, चाय कैसी होती है?’

भाव संवेदना के उच्च स्तर को बयां करते हैं जो किसी कोडिंग के माध्यम से बनाया नहीं जा सकता है।