सुधीर विद्यार्थी:‘वागर्थ’ के अगस्त 2024 अंक में प्रकाशित इतिहास पर निरंतर खोजपूर्ण और प्रतिबद्ध लेखन से जुड़े सुभाष चंद्र कुशवाहा की कहानी ‘रिक्तता’ रचनात्मकता की बुलंदी पर है। जीवन को देखने की दृष्टि ही किसी को बड़ा कथाकार बनाती है। वीडियो कालिंग से संबंधों को जिंदा रखने का विकल्प तलाशना, हरियाली भरी दुनिया में भी सूखे का विस्तार, बुजुर्गों के अट्टहास का छद्म तथा ‘भैया ने  कहा कि तुम हर हाल में मम्मी के संस्कार में चले जाओ, मैं…..पापा के समय…’ सचमुच आपकी यह कहानी अपने समय का सच बन गई है। अंत में करगिल युद्ध का राजनीति की बलिवेदी पर लड़ा गया युद्ध लगना, जैसे आपकी प्रतिबद्ध अंतरभेदी दृष्टि का साक्ष्य है।

बासिल किड़ो, रांची:‘वागर्थ’ के अगस्त- 2024 अंक में में ‘बतरस’ के तहत कुसुम खेमानी  का ‘सुगंध स्मृतियों की : अज्ञेय’ पढ़ने को मिला। मानना पड़ेगा, स्मृतियों से भरा यह आलेख अज्ञेय के विषय में जानकारिओं से भरा है। अज्ञेय जैसे व्यक्ति का व्यक्तिव का यह हिस्सा किसी के भी मन को जानने के लए और उद्वेलित कर देता है। परंतु इसके साथ अगर उनकी कविताओं का भी उल्लेख रहता तो दिल और ही बाग-बाग हो जाता।

सरोजिनी नौटियाल:‘वागर्थ’ के जुलाई अंक में सुधा थपलियाल की कहानी ‘शतरंज के प्यादे’…। जीवन में घटनाक्रम कभी-कभी इतना निर्मम और भयावह हो जाता है कि राह नहीं मिलती। अपनी विषम पारिवारिक दशा के दबाव और तनाव तथा दूसरी ओर प्राइवेट नौकरी का अचानक चले जाना, साथी कर्मचारियों का उसे संदेह की नजर से देखना, मिल मालिकों का भी उसपर ऐतबार न रखना, कहानी के नायक के नैराश्यपूर्ण अंधकार की बहुत प्रभावी प्रस्तुति है।

कथ्य और शिल्प दोनों ही दृष्टियों से एक अच्छी कहानी लंबे समय बाद पढ़ने को मिली है।

अर्चना पैन्यूली :‘वागर्थ’ के जुलाई अंक में सुधा थपलियाल की ‘शतरंज के प्यादे’ एक नए विषय पर, नए अंदाज में बहुत सशक्त कहानी है। आरंभ से अंत तक इसने बांधे रखा। प्रस्तुतीकरण प्रभावशाली। अंत बहुत कुछ कहता है- शतरंज के प्यादे भी बाजी मार लेते हैं, किसी को कम ना समझो!

अलका पंत:‘शतरंज के प्यादे’, एक मंजी हुई कहानी है। यह अंत तक पाठक को बांधे रखती है। अचानक नौकरी जाने से असुरक्षा की भावनाओं को बहुत संवेदनशीलता से प्रस्तुत किया गया है। नफा-नुकसान के चलते कंपनी का श्रमिकों के प्रति संवेदनहीन होना, अंदर तक कटोच जाता है। बहुत बधाई लेखिका को!

सुजीत कुमार, भागलपुर:‘वागर्थ’ का कई वर्षों से नियमित पाठक हूँ। जब मैं जून 2024 अंक पढ़ रहा था तो कई लेखकों से फोन पर बात की और साहित्यक चर्चा हुई। उन्हें साधुवाद दिया कि इसी प्रकार से लघुकथा और लेख, आलेख, यात्रा वृत्तांत लिखते रहें और  राष्ट्रीय स्तर की पत्रिका ‘वागर्थ’ में प्रकाशित कर हम जैसे पाठकों के ज्ञानवर्धन का कार्य करते रहें।

कहानियों में विद्या भूषण द्वारा लिखी ‘इंटरवल के बाद’ काफी रोचक कहानी है। अरिमर्दन कुमार सिंह की लघुकथा ‘अंतर्द्वंद्व’, आलोक सातपुते की लघुकथा ‘थिंक पॉजिटिव’ काफी अच्छी लगी। नीतू सिंह भदौरिया द्वारा लिखी कहानी ‘अंतिम संस्कार’ मुझे बहुत मार्मिक लगी। आलेख में ‘आदिवासी जीवन की त्रासदी’ जो कनक तिवारी जी द्वारा लिखा गया है, ने प्रभावित किया। ‘समीक्षा संवाद’ हमेशा अच्छ लगता है।  आने वाले अंक की प्रतीक्षा रहती है।

वंदनागोपाल शर्मा शैली, छत्तीसगढ़:‘वागर्थ’ के जून 2024 के अंक में जसिंता केरकेट्टा की कहानी ‘रिश्ता’ बहुत बढ़िया लगी। यह रिश्तों की अहमियत बताती मैना की आपबीती है। प्रेम आजादी चाहता है और रिश्ता एक ऐसा बंधन जिसमें सम्मान जुड़ा होता है एक-दूसरे के प्रति। रिश्ता हवा और पानी की तरह जीवन की जरूरत है। गंगा जल की तरह पवित्र रिश्ते को परिभाषित करती कहानी ‘रिश्ता’ एक सार्थक रचना है।

‘वागर्थ’ में एक बहुत सुंदर बात कही गई है कि पाठक ही लेखक का जनक होता है। यह पंक्ति बताती है कि पढ़ने की संस्कृति का कभी क्षय नहीं होना चाहिए।

कविता विकास:‘वागर्थ’ के जुलाई अंक में के पी अनमोल की बहुत सुंदर ग़ज़ल! कई बार पढ़ गई। हर शेर आज के हालात की मुकम्मल कहानी है।

रेणुका श्रीवास्तव: जुलाई अंक में समसामयिक विषय पर गहन अभिव्यक्ति के साथ लिखी गई के पी अनमोल की ग़ज़ल एक संवेदनशील हृदय का परिचय देती है। यह पाठक को सोच की एक दिशा देती है।

अनामिका सिंह: जुलाई अंक में के पी अनमोल जी की ग़ज़ल सामयिक और जनसरोकारों के पक्ष में खुलकर बोलती-बतियाती है। बिलकुल जुदा अंदाज़ की रदीफ़ लेकर आते हैं।

संदीप छेत्री:‘वागर्थ’ के जुलाई 2024 अंक में कवि धनंजय मल्लिक की मार्मिक पंक्तियों ने पूरी तरह प्रभावित किया।

के पी अनमोल: हिंदी की गजल हिंदी कविता परंपरा को किस तरह अपने भीतर समाहित करती है, इसका उदाहरण है ‘वागर्थ’ के जुलाई अंक में प्रकाशित राहुल शिवाय की गजल। वे एक संभावनाशील युवा गजलकार हैं। बधाई।

मनीषा प्रजापति:‘वागर्थ’ के जुलाई अंक में बहुत खूबसूरती से मां के दिए हुए संस्कारों को शब्दों में पिरोया है गीता प्रजापति ने। आप ऐसी ही दिल को छू लेने वाली कविताएं लिखती रहें प्यारी बहन!

महादेव टोप्पो: हर बार की तरह प्रेरक और पठनीय और नई दृष्टि से संपन्न अंक।

अयाज़ ख़ान, छिंदवाड़ा:‘वागर्थ’ के अगस्त 2024 अंक में सिराज फैसल खान की बेहतरीन ग़ज़ल है। समसामयिक विडंबनाओं का बेबाक चित्रण किया गया है। यह किसान और हाशिये पर जीवन-यापन कर रहे लोगों का करुण-गान है।

पवन कुमार वर्मा:‘वागर्थ’ के अगस्त अंक में गोलेंद्र पटल की बेहतरीन कविताएं हैं, जीवनानुभव से पकी हुईं।