युवा कवयित्री।विभिन्न पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित।संप्रति अध्ययनरत।

दुख ज़ुड़ा रहा नाभि से

नाराज़गी का बोझ उठा सकें
इतने मजबूत कभी नहीं रहे मेरे कंधे

‘दोष मेरा नहीं तुम्हारा है’
यह कहने के बाद
मन ने तब तक धिक्कारा स्वयं को
जब तक अपराध बोध ने
श्वासनली अवरुद्ध न कर दी
और क्षमायाचना न करवा ली

प्रेम करते हुए स्वयं को
घाट पर पानी पीते
उस निरीह हिरण की भूमिका में पाया
जिसे बाहर से भी घात का डर है
और पानी के भीतर से भी
जिसके लिए पानी पीना भी दुरूह है
और न पीना भी

विरक्ति ने मनमाने पैर पसारकर
अपनी जड़ें मजबूत कर लीं
वांछना और प्राप्ति के बीच इतना अंतराल रहा

सुख आया भी
तो किसी नकचढ़े अतिथि की तरह
आवभगत में जरा सी कमी हुई
बोरिया बिस्तर उठाकर चलता बना
दुख जुड़ा रहा नाभि से
माँ की तरह
गालियां दीं, मारा-पीटा, खूब रुलाया
और अंतत: आंसू पोंछते हुए
सीने से लगाकर
सहेज लिया अपने आंचल में।

नाचती हुई स्त्री

नाचती हुई स्त्री घूमती हुई पृथ्वी है
जिसके पैरों में बंधे हैं दिन और रात
जिसके हाव-भाव और मुद्राओं के साथ
बदलते हैं मौसम

पृथ्वी का क्रेंदबिंदु है
बैली डांस करती स्त्री की नाभि

एक साथ नजर आते हैं
उत्तरी व दक्षिणी ध्रुव
पोल डांस करती स्त्री में

कंटेम्पररी के लिए बांहें फैलाकर
सगींत के साथ बहती स्त्री हवा सी लगेगी तुम्हें

हिपहॉप करती बिजली सी स्त्री
लॉक कर सकती है
ससांर की तमाम गतिविधियां अपनी पॉपिंग से
प्रेम में डूबी कालिदास की नायिका है
सालसा करती स्त्री

गौर से देखना प्रकृति को
स्त्री देह में शास्त्रीय नत्य करते हुए
सत्व रजस और तमस का सुंदर सतुंलन है वह
गिरते हुए पल्लू को भूलकर
ढोलक की थाप में मग्न
लोकगीतों पर झूमकर नाचती स्त्री के भीतर
पूरे वेग से बह रही होती है
सारी लोक-लाज बहा ले जाने को आतुर एक नदी

एक आंख दबाकर
सीटीमार बॉलीवुड ठुमके लगाती स्त्री
महाकाली प्रतीत होती है मुझे
समाज की छाती पर पैर रख
जीभ चिढ़ाकर तांडव करती महाकाली

आश्चर्य है
व्याकरण की इस सुंदरतम क्रिया के
सर्वश्रेष्ठ कर्ता की प्रतिमा गढ़ते हुए
उन्हें शिव याद रहते हैं शिवा नहीं
जबकि मुझे विश्वास है
अर्द्धनारीश्वर की आधी नारी देह भी
तांडव में उतनी ही निपणु होगी
जितनी बाकी आधी पुरुष देह।

पैटर्न

तुम से हारकर मैं कविताओं तक लौटती हूँ
और कविताओं से थक कर तुम तक

चींटियों का आरोप है
लौटने का यह पैटर्न मैंने उनसे चुराया है

जबकि सच तो ये है
कि उनके द्वारा छोड़े गए फेरोमोन की गंध से
कहीं अधिक तीक्ष्ण होती है
उन स्मृतियों की गंध
जो अनायास ही छूट जाती है
तुम से तुम तक लौटने की राह में
और मैं चाहकर भी रास्ता नहीं बदल पाती।

संपर्क : हाउस नं. ७५, प्रीत विहार, फायर स्टेशन के करीब, उसमापुर रोड, खुर्जा, जिलाबुलंदशहर२०३१३१ (उत्तर प्रदेश) मो. ७८२७११८५५४