वरिष्ठ दलित रचनाकार। कविता संग्रह ‘प्रयास’ और ‘क्यों विश्वास करूँ’।
शाखामृग
जानता हूँ तुम्हारा जीवन
शाखाओं से नहीं है बाहर
इसलिए तुम्हारा ख्वाब भी
पेड़ से अधिक बसता है शाखाओं में
ये शाखाएँ जो जंगल की तरह
फैलती हैं पेड़ पर
तुम्हारा सपना चमकता है इनके बीच
तुमने लगाई हैं शाखाएँ
केवल शाखाएँ
क्या कभी रोपा है कोई पौधा
और कभी दे पाए उसे शक्ल पेड़ की
क्या कभी तुम बढ़ोगे बीज लेकर
उगाओगे कोई पेड़
क्योंकि पेड़ जड़ों से बंधा होता है
पर जड़ नहीं होता
हथिया ही सकते हो
किसी के पोषित पेड़ को
शाखामृग
अब शाखा से नहीं
जड़ से पैदा करो भाव।
मुझे भी बचाओ
मेरे महान देश के पशु-पक्षियो!
तुम कितने भाग्यशाली हो
जीवित हो तुम
‘पीपुल फार एनीमल्स’ के नाम पर
मेरे देश के वृक्षो!
तुम कितने भाग्यशाली हो
तुम्हारी रक्षा के लिए
चलाया गया है
चिपको आंदोलन
चलता है जब भी तुम पर कुल्हाड़ा
मच जाता है कोहराम
पर्यावरणविदों की
हो जाती है नींद हराम।
और मैं
इस देश का जीता जागता मानव
जिसे पुकारा जाता है
सभ्य और सुसंस्कृत लोगों में अछूत
घुमाया जाता हूँ नंगा
गांव, शहर की गलियों में
मेरी नाक में डाल कर नकेल
कर दी जाती है मेरी निर्मम हत्या
दिन-दहाड़े
न जाने कब शुरू होगा
कोई आंदोलन
मेरी रक्षा के लिए?
संपर्क: सी-130-ए, से.20, नोएडा-201301 (उ.प्र.), मो. 9711196855
Dalit aandolan ko aage badhane wali kavita. wakai kai sawal khade karti hai ye kavita. aakhir koi aandolan ya prayas hai jo daliton ko samman ke saath jeena sikhaye. jo daliton ki baat kare. bahut sare sawal hain…bahut sara kaam karna baki hai abhi…Surajpal chouhan sir ko badhai…