युवा लेखिका। यह पहली कहानी। संप्रति गृहिणी।

भारत के हर क्षेत्र में एक न एक झोपड़पट्टी होती ही है। इसी तरह हर झोपड़पट्टी की एक न एक कहानी भी होती है। अनेक राजनीतिक वायदों के मद्देनजर इनका बसना उजड़ना तय होता है। इन्हीं वादों के अनुरूप फिर से एक नई झोपड़पट्टी का बसना होता है, जहाँ कुल मिलाकर 50 से 60 परिवारों का जमावड़ा होता है। हर नेता आजादी के बाद से रट्टा मारते आया है ‘आप हमें वोट दो, हम आपको बसेरा, बिजली और पानी देंगे।’ मिलता भी है, पर बिजली के नाम पर टिमटिमाती पीले बल्ब की रोशनी, पानी के नाम पर बाल्टी भर पानी और बसेरे के नाम पर गंदी, बदबूदार बस्ती, जो इनकी जुबानी झोपड़पट्टी कहलाती है।

मेरी कहानी इसी झोपड़पट्टी के इर्द-गिर्द मंडराती है। इस कहानी में जिस लड़की की जीवनशैली को दर्शाया गया है वह इसी झोपड़पट्टी की रहने वाली है। जन्म से ही अछूत कहलाती हुई, अपने को अवांछित मानती हुई। कारण, वह लड़की है। जीवन के आदर्शों से अपने मन के पृष्ठ पर वह उजागर होती है और अपने आदर्श के द्वारा दूसरों के आदर्श की पृष्ठभूमि पर अपने आपको स्थापित करती है।

हमारे शहर में एक झोपड़पट्टी है, जहाँ बसे हुए 50-60 परिवारों में एक परिवार रीना का भी है। परिवार के परिचालक के रूप में उसका बाप, जो पेशे से भिखारी था और आदत से कामचोर। इसीलिए हर सुबह बाप को छोड़कर परिवार के सारे सदस्य भीख मांगने निकल पड़ते थे। रीना का बाप कामचोर के साथ-साथ बहुत बड़ा कमीना भी था। इसी कमीनेपन के कारण परिवार में हर साल एक नए मेहमान का आगमन हो जाता था। बाप की सेना में बढ़ोतरी हो जाती। पूरा परिवार खुश हो जाता।

मेरी कहानी की मुख्यपात्र इसी परिवार की सबसे बड़ी बेटी रीना है। लगभग 10 साल की होगी। रीना हर सुबह निकल पड़ती भीख मांगने के लिए। लेकिन नन्हे मेहमान के आगमन से रीना के दो-तीन दिन उसकी सेवा शुश्रूषा में निकल जाते। इससे पारिवारिक कलह शुरू हो जाता।

हमारी नन्ही परी जब सुबह भीख मांगने निकलती तो सोचती, आज दिन भर में कम से कम 50 रुपये जरूर इकट्ठे करने हैं। उस दिन बाप ने कह दिया था कि अगर 50 रुपये आज नहीं लेकर आई तो घर में घुसने नहीं दूंगा और खाना भी नहीं मिलेगा। घर से निकलते ही सोच में पड़ गई थी। पर किस्मत चंगी होने के कारण 50 से भी अधिक की कमाई हो गई थी। उस दिन का खतरा टल गया था और घर वापस आ गई थी। पचास रुपये बाप के लिए निकाल कर बाकी पैसों से उसने नन्हे मेहमान के लिए एक झुनझुना खरीद लिया था। पैसे मिलते ही बाप दारू की भट्टी में चला गया था रोजाना की तरह। रीना ने देखा कि बाप नशे में धुत्त रात को घर लौटा और उसी हालत में उसकी माँ को खींचते हुए कमरे में ले जाकर उसने दरवाजा बंद कर लिया था। नन्हा मेहमान रोता-बिलखता बाहर पड़ा रहा। रीना उस नन्हे मेहमान को माँ की तरह संभालते हुए बंद दरवाजे को घूरती रही।

सुबह होती है। रोजाना की तरह रीना निकल पड़ती है। उस दिन कोई त्योहार होने के कारण रीना का लक्ष्य पूरा हो जाता है। इसलिए रीना उस दिन पास के ही एक पार्क में जाकर बैठ गई थी। वहीं पार्क में दो लड़कियाँ बैठी हुई थीं। रीना आदतन उसके पास भीख मांगने पहुँच गई।

रीना खूबसूरत थी, लेकिन गंदे कपड़े धूल मिट्टी से सने होने के कारण खूबसूरती कुछ दबसी गई थी। लड़कियों ने उससे पूछा, ‘तुम भीख तो मांग रही हो, लेकिन इन पैसों का करोगी क्या?’ रीना ने उनकी बात अनसुनी करते हुए कहा, ‘एक रुपया दीजिएगा दीदी?’ लड़कियों ने हँसते हुए कहा, ‘हम भी तो तेरी तरह हैं। तुम लोगों से मांगती हो और हम अपने मांबाप से मांगते हैं।

रीना हँस पड़ी, कहा, ‘आप लोग मुझसे मजाक कर रही हैं?’

लड़कियां हँसती हुई बोलीं, ‘चल, तू सबसे मांगती है, आज हम लोग तुझसे भीख मांगते हैं।’

रीना ने उनके हाथों में 10 रुपये देना चाहा। लड़कियां रुपये न लेकर ठहाके लगाने लगीं, फिर पूछा, ‘क्या करेगी तू इस पैसे का?’

‘इनमें से 50 रुपये अपने बाप को दूंगी और बाकी पैसे अपनी मर्जी का खाती हूँ।’

‘तेरा बाप क्या करता है? वह भी भीख मांगता है?’

‘नहीं, वह दिन भर घर में बैठा रहता है और दारू पीता है।’

‘हम चारों-पांचों भाई बहनें भीख मांग कर जो उन्हें देते हैं, उन्हीं से हमें खिलाता है और खुद दिन भर पी कर टुन्न रहता है और माँ को मारते-पीटते रहता है।’

‘तो तुम लोग अपनी मां को बचाने के लिए बाप को पीटती क्यों नहीं हो?’

‘नहीं, वह फिर हमें घर से निकाल देगा। कोई भला अपने बाप को पीटता है क्या! बाप तो बाप ही होता है।’

थोड़ी देर के बाद लड़कियां वहां से चली गईं और रीना भी अपने घर लौट आई। बाप के हाथ में 50 रुपये रख कर अपना रोजाना का काम पूरा किया। बाप भी डेली रूटीन के मुताबिक अपने काम में व्यस्त हो गया- मारना, पीटना, खरोंचना….

ऐसी ही दिनचर्या के बीच रीना 15-16 साल की हो गई। बाकी कामों के साथ-साथ रीना अपनी मां के रोजाना के काम में मदद करने लगी। अब वह भीख मांगने नहीं जाती थी। इन दिनों परिवार में और भी दो-तीन मेहमानों का आगमन हो चुका था। बाप की सेना में बढ़ोतरी हुई थी। पहले बाप दो वक्त दारू पीता था, अब दिन भर टुन्न रहने लगा था, क्योंकि कमाई पहले से ज्यादा हो गई थी। माँ भी बच्चों के साथ भीख मांगने निकल पड़ती। घर अब रीना ही संभालने लगी थी, क्योंकि रीना बड़ी हो गई थी।

एक दिन की बात है, जब रीना की नानी की सेहत बिगड़ गई थी और नानी को देखने मां को जाना पड़ा था। घर पर रीना अपने भाई बहनों के साथ थी और उसका बाप भी था। रात में सभी अगल-बगल सो रहे थे। उसका बाप भी कुछ दूरी पर सोया हुआ था। अचानक रीना को अपने शरीर पर एक दबाव महसूस हुआ। उसकी आंखें खुल गईं। वह चिल्ला उठी। लेकिन नशे में धुत्त बाप ने उसका मुंह दबा दिया। रीना मुट्ठी में बंद तितली की तरह फड़फड़ाती रही। पर उन हाथों के शिकंजे से कैसे बच पाती। फड़फड़ाती-फड़फड़ाती रीना थक चुकी थी। हाथों के शिकंजों का शिकार हो चुकी थी।

सुबह हुई। सूरज की पहली किरण रीना के मुख मंडल पर पड़ी, लेकिन उसकी लालिमा रीना के चेहरे पर फैल नहीं पाई थी। पहले जब सूरज की किरणें रीना को छूतीं तो वह हँस पड़ती थी। आज उसकी हँसी में वह इंद्रधनुषी रंग नहीं था जो पूरे आसमान पर फैल जाया करता था। रीना जीवन की कठोर भूमि पर घायल हिरणी की तरह तड़प रही थी।

मां जब घर आई, रीना ने उसे सब कुछ बताया। मां बेहद खुश लौटी थी, पर वह खामोशी के गहन अंधकार में डूब गई। रीना को पास बुलाकर, उसके बालों को सहलाती हुई कहती रही, ‘देख, यह बात किसी से मत कहना। हो सकता है, कलमुहां ने दारू के नशे में तेरी जगह मुझे समझ लिया हो।’

रीना कुछ नहीं कह पाई थी। बस उसकी दोनों आंखों से झरने की तरह आंसू बहते रहे। मां ने कहा, ‘अगर तू बाहर किसी से कह देगी, तो लोग तेरे बाप को मार-पीट कर भगा देंगे, फिर तेरे छोटे-छोटे भाई-बहनों का क्या होगा?’ माँ रोती हुई अपने रोजमर्रा के काम में जुट गई थी। रीना भ्रमित हो गई थी कि माँ किसके लिए रो रही है? अपने आपके लिए या बिटिया के लिए?

शाम हो गई थी। रीना दिन भर घर के एक कोने में सिमटी रही। माँ ने रीना को समझाने की लाख कोशिश की पर वह समझे कैसे। उस रात ने उसकी आत्मा को झकझोर कर रख दिया था।

रात की काली घटाऍं घिरते ही रीना फिर सहम गई थी। रात का शैतान फिर से जाग गया था।

उसका बाप घर आकर सो गया था। आधी रात गुजरने के बाद उसका बाप उसके पास आकर, उसका हाथ मां के हाथ से छुड़ाने की कोशिश करने लगा। रीना की मां की नींद टूट गई। रीना रोने लगी थी। मां ने गुस्से में रीना के बाप को धक्का दिया। बेड़ा गर्क हो तेरा कलमुंहे।

रीना के बाप को गुस्सा आ गया और उसने अपनी पत्नी को जोर से धकेल दिया। रीना की मां का सिर पत्थर से टकराया और वह अचेत हो गई। रीना ने गुस्से में चिल्लाते हुए अपने बाप को धक्का मार कर गिरा दिया। उसकी चिल्लाहट सुन कर आस-पड़ोस के लोग इकट्ठा हो गए। रीना के मां-बाप को सबने मिलकर अस्पताल पहुंचाया। अस्पताल पहॅुंचते ही डॉक्टर ने रीना की माँ को मृत घोषित कर दिया। अस्पताल वाले रीना की माँ को मुर्दाघर भेज चुके थे। दो दिनों बाद रीना आस-पड़ोस की आर्थिक मदद से अपने भाई बहनों के साथ मां का अंतिम संस्कार कर आई थी।

रीना स्तब्ध हो गई थी। वह जानती थी कि माँ कथित रूप से आज मुर्दा हुई है, लेकिन मानसिक रूप से जन्म के साथ ही मृत घोषित कर दी गई थी। नाना ने अपने सिर से बोझ उतारने के लिए माँ को मेरे बाप के सिर पर थोप दिया था। मेरे बाप ने मेरी माँ को अपना हवस मिटाने की मशीन समझ लिया था।

दस बारह दिन ऐसे ही गुजर गए। इस बीच रीना कभी भी अपने बाप को देखने अस्पताल नहीं गई। जो भी जाता, अस्पताल से लौट कर कहता- ‘जा, अस्पताल वाले तेरे बाप को छोड़ चुके हैं, ले आ।’ रीना चुप्पी साध कर रह जाती। दो-तीन दिन और बीत गए। फिर एक दिन सुबह-सुबह नानी का आगमन हुआ। अचानक ही नानी चिल्लाकर कहने लगी, ‘क्या रे कलमुंही, माँ को खा गई, अब क्या बाप को भी खाएगी?’  रीना चुपचाप सुनती रही, बस उसकी आंखों से गंगा की धारा बहने लगी। नानी को और भी गुस्सा आ गया। नानी बड़बड़ाती हुई कुछ देर बाद लौट गई।

अपने रोते-बिलखते भूखे भाई-बहनों की ओर एकटक ताकती हुई रीना को अचानक संज्ञान आया और वह सचेत हो गई। सोचने लगी, इन लोगों ने उसका क्या बिगाड़ा है। बाप के बारे में सोचती है, जंगली जानवर के साथ इंसान की क्या तुलना! जानवर कभी रिश्तों की भावनाओं से अवगत होता है क्या? उसकी प्रकृति ही उसे नोचना-दबोचना और रिश्तों की अवहेलना करना सिखाती है। लेकिन हम तो इंसान हैं। रीना अस्पताल से बाप को घर ले आती है।

बाप का जानवरनुमा शरीर- चलना, फिरना, बोलना खो चुका था। रीना की जिम्मेदारी और भी बढ़ गई। न चाहते हुए भी उसे बाप की सेवा करना, फिर भाई बहनों की देखभाल करना पड़ता था। जब वह बाप के पास जाती, मुआ एकटक उसे निहारता रहता। उसकी आंखों से पानी की धारा बहती रहती। रीना को उसका ताकना गंवारा न था, क्योंकि पाप की कोई क्षमा न थी।

एक दिन अचानक यह खबर फैल गई कि सरकारी जरूरत के अनुसार रीना की झोपड़पट्टी को उजाड़ दिया जाएगा। इस खबर को आधार बना कर पार्टी पॉलिटिक्स, मीटिंग-सीटिंग शुरू हो गई। अपने नेताओं पर भरोसा करके किसी ने अपनी झोपड़ी खाली नहीं की।

अंततः वह दिन आ ही गया जब सरकारी मुलाजिम बुलडोजर और रैफ को साथ लिए हुए झोपड़पट्टी तक आ धमके। लोगों में मारे डर के भगदड़ मच गई। सबको घर से खदेड़ दिया गया। रीना भी भाई-बहनों को लेकर घर से बाहर निकल गई, पर बाप को साथ नहीं लिया। बाप ने निकलना भी नहीं चाहा। बुलडोजर ने अपना काम शुरू कर दिया था।

रीना सोच में पड़ गई कि अब वह अपने भाई-बहनों को लेकर कहाँ जाए। इतने में रीना को चीखने-चिल्लाने की गूंज सुनाई पड़ी। रीना ने घबराकर उसी तरफ देख और समझ गई कि बाप अब इस दुनिया में नहीं रहा। बुलडोजर की दानवी आवाज सुनकर घर के भीतर रह गए बाप का दम अंततः टूट गया। लोग कहने लगे- मुक्ति मिल गई बेचारे को। रीना की आंखें पत्थर बनी हुई थीं।

संपर्क सूत्र : रेलवे क्वार्टर नं 185, फोरमैन कॉलोनी, 4 नं. रास्ता, उत्तर 24 परगना, कांचरापाड़ा, पश्चिम बंगाल-743145, मो.7278575356