प्रकाशित कृतियां – ‘अक्स कोई तुम–सा’, ‘शब्दों की कीमत’, ‘चुप्पियों के बीच’ (ग़ज़ल संग्रह)।संप्रति व्याख्याता, आर एस एस कॉलेज, चोचहाँ, मुजफ्फरपुर।
1.
मेरी माँ में बसी है शक्ल इक गुमनाम रानी की
कि जैसे झांकती अलबम में हो तस्वीर नानी की
भला हम भागते फिरते कहां तक राजधानी में
दिखे कुछ तो कहीं चिंता हमारे दाना-पानी की
न होते भूत और न ही कोई परियां यहां होतीं
गरीबी मानती है बात इस बिटिया सयानी की
खड़ाऊं पांव में, हाथों में लाठी और छाते थे
हमारे दादा ऐसे थे, न ये बातें कहानी की
समय की बांह में जिसको नहीं हम बांध पाएंगे
सियासत कर रही है फिक्र वैसी आग-पानी की
कभी सूखे हुए फूलों से उनका दर्द तो पूछो
हमेशा बात करते हो महकती रातरानी की
गज़ब वे लोग हैं जो जड़ में मट्ठा डालने बैठे
हमें तो फिक्र है पल-पल हमारी बागवानी की।
2.
कोई बरगद दिखाता है, पिता तब याद आते हैं
पवन झूले झुलाता है, पिता तब याद आते हैं
पड़ोसी छोटे बच्चों को कभी छू लेने को अंबर
अगर कंधे चढ़ाता है, पिता तब याद आते हैं
चले जो उंगलियां थामे, उन्हीं में सज गई मेहंदी
इधर बछड़ा रंभाता है, पिता तब याद आते हैं
घने कोहरे की चादर में लिपट जाते हैं ये रस्ते
कदम जब डगमगाता है, पिता तब याद आते हैं
झमाझम तेज बारिश में कहीं से चीरकर बादल
जो सूरज मुस्कराता है, पिता तब याद आते हैं
सुबह अलसाई चिड़िया-सी मैं खोते में दुबक बैठी
कोई हौले जगाता है, पिता तब याद आते हैं
परिंदा जब कोई मासूम, नभ के पार जाने को
परों को फड़फड़ाता है, पिता तब याद आते हैं।
संपर्क : आद्या हॉस्पिटल, सीतामढ़ी रोड, जीरोमाइल, मुजफ्फरपुर– 842004