‘युवा कवि।अभी भी दुनिया में’ काव्य–संग्रह।संप्रति : एसोसिएट प्रोफेसर, हिंदी विभाग, राजधानी कॉलेज, नई दिल्ली।
दरार से झांकती धूप
बंद कमरे में
दीवार की दरार से
झांकती थी धूप
दर्शक
दीवार में पड़ी हुई
दरार देखते थे
मैं दरार से
आती हुई
धूप देखता था।
जन्म
एक दिन पेड़ से
किसी पत्ते-सा टूटकर
धरा पर गिरूंगा मैं
समय सोख लेगा
बची-खुची हरीतिमा भी
डाल से टूटे हुए पत्ते को
हवा उठा लेगी अपनी गोद में
और ले जाकर छोड़ देगी
किसी निर्जन स्थान पर
अज्ञात में पड़ा-पड़ा पत्ता
अकेलेपन के प्रहार से टूटेगा कई बार
फिर उड़ता हुआ कोई पंछी
आएगा किसी दिन
उठा लेगा टूटे पात को
अपनी चोंच में
ले जाएगा
किसी हरे भरे पेड़ की डाल पर
बनाएगा अपने अजन्मे शिशुओं के लिए
एक घरौंदा
इस तरह
नवजात शिशुओं के जन्म के साथ-साथ
जन्म लेगा
डाल से टूटा हुआ पत्ता भी एक बार।
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