युवा कवयित्री। पी.जी.टी हिंदी केंद्रीय विद्यालय, सिख लाइंस, मेरठ में अध्यापिका। पुस्तकें– ‘कुछ लापता ख़्वाबों की वापसी’,’ समय की धुन पर’(काव्य संग्रह)
ध्यान रखना अपना
ध्यान रखना अपना
उसने कहा
और वह ध्यान से ही निकल गया
समय जब उम्र की पपड़ियां गिराने लगा
तब फिर ध्यान आया वह
चेहरा धुंधला था अब उसका
पर पानी के बुलबुले-सी
स्मृतियों में डूबा
वह अब भी कह रहा था शायद
ध्यान रखना अपना!
एक बच्चा
एक बच्चा हँसता है
मां पकड़ती है उसकी हँसी
घर से उदासी धप्प…से कूदकर
किसी वृक्ष पर
बेताल की तरह लटक जाती है।
बाईपास से गुजरते रिश्तों में
हम दोनों आजकल चुप रहते हैं
एक-दूसरे में टहलना बंद-सा हो गया है
सहमतियों-असहमतियों के पंख भी
झड़ने लगे हैं
पर प्रेम अभी भी किसी बूढ़े की तरह
खंखार लेता है कभी-कभी
बाईपास से गुज़रते रिश्तों में
प्रेम शब्द में
प के साथ चिपके र की तरह
एक-दूसरे को
पसंद करना भी निहायत ज़रूरी है।
स्त्री ध्यान दो!
स्त्री ध्यान दो!
तनिक मुस्तैद रखो निगाह अपनी
घर को सिर पर नहीं उठाती स्त्री
जख्मों का क्या है स्त्री
घर की सैनिक हो तुम स्त्री
शहीदों में तुम्हारा नाम भी लिखा जाएगा स्त्री
संस्कृति का गौरव हो तुम स्त्री
इतिहास याद रखेगा तुम्हारा नाम स्त्री
ऐ..ऐं…!
तुम्हारा नाम क्या है स्त्री?
रात गिर रही है
रात गिर रही है अलसाई पृथ्वी पर
वह धीरे से खींचती है
अपनी खिड़की से एक झपक जितना आकाश
बूढ़ी यादें तकिए पर बालों की तरह चिपकी हैं
घड़ी सरक रही है अपनी दो टांगों पर
उसकी नींद बैठ कर खोज रही है
अपने होने के कुछ जायज़ तर्क।
गौर से देखो!
देखो, गौर से देखो
मेरी आंखों की अल्हड़ नदी में
तैरता है अभी भी जीवन
भ्रम है यह तुम्हारा कि मैं तुम्हारे लिए मरी
तुम तो बहुत पहले से ही थे मृत
याद रखो और मेरी ओर देखो
मैं प्रेम की हिफ़ाज़त में मरी थी।
संपर्क: 45,ग्रेटर गंगा, गंगानगर, मेरठ, मो.9411904088
लाजवाब बिम्ब।सभी कविताएं बहुत कुछ खोलकर कहती हैं
शुक्रिया
बेहतरीन!
भ्रम है यह तुम्हारा कि मैं तुम्हारे लिए मरी
तुम तो बहुत पहले से ही थे मृत
याद रखो और मेरी ओर देखो
मैं प्रेम की हिफाज़त में मरी थी
बहुत प्रभावी कविता। अदभुत कल्पना और वैचारिक धरातल पर रची गई कविता।
लाजवाब 🌹🌹, कविता मे पहाड़ से गिरते झरने सी प्रवाह है, और भाषा किसान सी सरल 🌹🌹
बहुत प्रभावी कविताएं।
साधुवाद ।।
बहुत खूबसूरत कविताएं
बधाई
हम दोनों आजकल चुप रहते हैं
एक-दूसरे में टहलना बंद-सा हो गया है
सहमतियों-असहमतियों के पंख भी
झड़ने लगे हैं
पर प्रेम अभी भी किसी बूढ़े की तरह
खंखार लेता है कभी-कभी
बाईपास से गुज़रते रिश्तों में
अच्छे शब्द और सार्थक शब्द ….
Khoobsurat
मां पकड़ती है उसकी हंसी … घड़ी सरक रही है अपनी दो टांगों पर… ऐसे प्रयोग ख़ूबसूरत लगते हैं…