युवा कवयित्री। प्रकाशित कविता संग्रह : मन ओथंबून जाते (मराठी), टूटन बढ़ती जाती (हिंदी)। सहायक प्राध्यापक, विज्ञान और वाणिज्य महाविद्यालय, पुणे।
प्रसिद्ध मराठी कवि। अद्यतन कविता संग्रह ‘कर्क वृत्त‘। ‘चित्रलिपि‘ कविता संग्रह के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार।
बढ़ती उम्र में
होनेवाली बीमारियों से बचाव
बढ़ती उम्र के साथ
हमारे शरीर में बहुत-से परिवर्तन आते हैं
मन में भी आते हैं
प्रतिरोध की शक्ति कम हो जाती है
सहनशीलता कम हो जाती है
अपने आस-पास का सबकुछ
त्रस्त करनेवाला प्रतीत होता है
वह त्रस्त करनेवाला ही होता है
पर सहने के अलावा दूसरा उपाय नहीं
और यह केवल हम ही समझ पाते हैं
मानसिक एवं भावनात्मक परिवर्तन
होते ही हैं
कित्ती छोटी-छोटी बातों पर हम खीज जाते हैं
जोड़ों में, हड्डियों में दर्द होता है
सबसे महत्वपूर्ण यह कि हमारी जीने की
कल्पनाओं में भी दर्द होने लगता है
हम स्वयं को सामर्थ्यहीन
असहाय समझने लगते हैं
वैसे, होते भी तो हैं
पर यह महसूस होता है
और अत्यंत असहनीय हो जाता है
आस-पास की स्थितियों के संदर्भ में
हमारी प्रतिक्रिया तीव्र हो जाती है
परंतु हम जिह्वाहीन-से मूक हो जाते हैं
बहरे हो जाते हैं जब तक हम सुनना नहीं चाहते
मोतियाबिंद के कारण नहीं
जो देखना नहीं चाहते
वह दिखता है
परंतु न दिखने का अभिनय करते हैं
शरीर डगमगा जाता है
अपने हाथ की काल्पनिक तलवारें भी
स्वयं उठा नहीं पाते
फिर भूलने की बीमारी हममें
बढ़ जाती है, भूलना न आने पर भी
बढ़ती उम्र में होनेवाली बीमारियों से बचाव
करना ही हो तो
भूलने की बीमारी हममें बढ़ जाए
यही एकमात्र इलाज है।
रिक्त बुकशेल्फ
सामने ही चेहरा गिराकर कुर्सी पर बैठा है
एक निराश, उदास बूढ़ा
उसके पीछे एक निष्प्राण बुकशेल्फ है
पराजित के जीवन के समान वह रिक्त है
एक भी पुस्तक नहीं है उसमें!
कहाँ चली गईं पुस्तकें?
मानो कभी थीं ही नहीं !
उसी ने निकाल दी ऊबकर
या कोई उठाकर जब्त कर ले गया?
अब इन पुस्तकों में कुछ है भी तो नहीं
फिर उन लाशों को क्यों घर में रखें?
इसलिए उसी ने निकाल दी
फिर भी वह इतना उदास क्यों ?
इतने दिन संभाली थी
उनका साथ था
अब वे नहीं हैं इसलिए उदासी ?
इसीलिए वह इतना उदास….टूट-सा गया है ?
वे पुस्तकें मैंने पढ़ी थीं, पन्नों-पन्नों से गुजरा था…
अब किसी को इन जर्जर पुरानी पुस्तकों से
कोई लगाव नहीं
वे अब पुस्तकें नहीं रह गई थीं, रद्दी हो गई थीं
अलमारी को अब
पुस्तकों का महत्व समझ में नहीं आता
घर की दीवारों, फर्नीचर के रंग को शोभा दें
ऐसी पुस्तकें चाहिए अब सबको
वह पढ़ने के लिए होती ही नहीं
दिखाने के लिए होती हैं
शोभायमान वस्तुओं की तरह!
वह बूढ़ा अब
निकाल बाहर किए जाने के समान बैठा है
वह उसकी कुर्सी उसके पीछे का शेल्फ
ये सभी अब असंगत हैं
पुस्तकें कालबाह्य हो गई हैं वैसे वह भी
वह कोई लेखक पाठक कार्यकर्ता
या समाजसेवक होगा
उसके विरोध में किसी ने शिकायत की होगी
वह कौन है क्या काम करता है
कौन-सी पुस्तकें पढ़ता है
यह जांचने के लिए ही तो उसकी सारी पुस्तकें
जब्त करके नहीं ले गए ?
संभवत: वह लेखक होगा
किसी ने बताया होगा-
वह विद्रोही है या देशद्रोही
उसकी लिखी पुस्तकें तो जरूर ले गए होंगे
छल-कपट की, षड्यंत्र की आहट
मिलती है या नहीं यह देखने
पुस्तकें पढ़ने-लिखने को संदेहजनक कार्य
समझे जाने के इस दौर में
पुस्तकों की अलमारी का रिक्त रहना
स्वाभाविक बात है।
तालियां बजाने से होने वाले लाभ
तालियां बजाइए
जी भरकर तालियां बजाइए
तालियां बजाने से मानसिक और भावनात्मक
तनाव ख़त्म हो जाता है
दुर्बल पेशी-संस्थाएं सबल बन जाती हैं
तालियां बजाने से
ह्रदय जठर अंतड़ियां गर्भाशय
से संबंधित बीमारियां चली जाती हैं
नसों की बीमारियां भी दूर हो जाती हैं
मरा हुआ खून जिंदा हो जाता है
पैरों से लेकर सिर तक
खून का प्रवाह बहता रहता है
तालियां बजाइए
तालियां बजाइए
इससे डर खत्म होता है
असुरक्षा नहीं रहती
तालियां बजाते समय
और उन्हें बजाने के पहले और बाद में भी
मौन धारण करें
(आराध्य देवता की प्रतिमा अपनी बंद आंखों के सामने लाइए)
बोलिए मत सुनिए मत
देखिए मत!
दोनों हाथ जोड़कर
नमस्कार की मुद्रा में रहिए
ढाई मिनट तालियां बजानी चाहिए
सुबह दोपहर शाम मध्यरात्रि….कभी भी
सिर्फ तालियां बजाइए
सुख प्राप्त होगा शांति प्राप्त होगी।
डर की कविताएँ
लिखना तो होता ही है भले ही मैंने कहा था कि
अब मैं कुछ नहीं लिखूंगा
मैंने ही कहा था प्रकाशक से
मेरी पुस्तकें बाजार से हटा लें
और जला दें… आपकी भरपाई मैं कर दूंगा
मैंने घोषणा कर दी
कि लेखक के रूप में मैं अब मर चुका हूँ
मेरे नाम की कोई भी पुस्तक
दुनिया में कहीं भी नहीं मिलेगी!
उन्होंने रास्तों पर घूमना मुश्किल कर दिया
घर में रहना भी कठिन ही था
दरवाजे-खिड़कियों पर पत्थरबाजी
पता नहीं आग कैसे नहीं लगाई
हाथ में जलती मशालें होने पर भी!
शायद आग लगा भी दें….कह नहीं सकते
इसलिए मैंने घोषणा कर दी – ‘मैं मर गया हूँ’
मेरा शरीर जिंदा था पर मर गया था मैं!
मेरी नस-नस में फैल गया था डर….
अपने से ज्यादा बीवी और बच्चों का
क्या होगा, यह डर पैदा हुआ था
लिखते समय समझ में नहीं आया कि
मेरे हृदय के रिश्ते जिनसे थे
उनसे जानलेवा खेल खेल रहा हूँ
मेरे अक्षर उनका दुर्भाग्य न बन जाएं
मैं डर गया, डर जाना गलत है –
ऐसा ही मैं समझता था
डरपोक लंगूर कायर जैसे शब्द
कौन सहेगा? अपमान ही होता है
भले ही किसी ने कभी-कभार
भयभीत होने का भयंकर अनुभव पहले पाया हो
पीढ़ियां-दर-पीढ़ियां गुजरी हैं
कभी न कभी डरी हुईं
भय से थरथर कांपतीं
आसमानी हो या सुल्तानी
संकट आने पर लोग डर ही जाते हैं
भयाक्रांत होते हैं
फिर भी हर कोई यह दिखाता है कि
मैं किसी से नहीं डरता
मैं समझ गया डर क्या होता है
भयंकर भय का बनना
डर जाना हाथ-पांव थरथर कांपना
मैं समझ गया
मैं मनुष्यता के यथार्थ तक पहुँच गया था
डरे हुए इनसानों ने देवता धर्म निर्माण किए
देवताओं का
लोगों को डराने के लिए उपयोग किया
सभी भीतर से डरे हुए होते हैं
पर समूह में वे हिंस्त्र बन जाते हैं
फिर मैंने डर की कविताएं लिखीं
अन्यथा
इस डराने के समय में
दूसरी कौन सी कविताएं लिखता?
गुलाब खिल गए
गुलाब खिल गए, काले गुलाब खिल गए
घोड़ा दौड़ा, काला घोड़ा दौड़ा
चार घोड़े रथ से जोड़े गए
चार काले घोड़े रथ से जोड़ दिए गए
मैंने हजार गुलाब ईश्वर को अर्पित किए
मैंने हजार काले गुलाब
काले ईश्वर को अर्पित किए
दिन बीत गया
क्या काला दिन बीत गया।
दुर्गति
सपनों पर लाठियां बरसती हैं
और मैं जाग जाता हूँ नींद से
घिनौने शब्दों को चेहरे से पोंछते हुए
अब ऐसी चीर-फाड़ करती सुबह
और उससे पहले कि छलावे की रात
और उससे भी पहले का एक गद्दार दिन
देखते हैं स्तब्ध आंखों से
मेरी सारी दुर्गति को!
समृद्धि
हृदय को चीर देनेवाली समृद्धि का समय
आ गया है
अपरिमित अनाज उग आया है
भ्रष्ट इच्छाओं का!
मैं पैरों को खींचकर चला जाता हूँ
वर्तमान की अंधेरी गलियों से
मैंने कमाई नहीं है अपनी चमड़ी
आसपास के व्याकरण के अनुसार
व्यवहार करनेवाली
मेरी जेब में नहीं है मीठी भाषा
मेरे अनुराग द्वेष मंद झोंके से
बुझ जानेवाली बाती की तरह हैं
रास्ते पर फेंक दिए गए बच्चे-सा
मानो देश ही फेंक दिया गया है
उसके आसपास यत्र-तत्र
सड़ी हुई सहानुभूति की फसल!
मेरे मगज तक पहुंचता नहीं है
अपनी उंगलियों का सुन्न पड़ जाने का अहसास
जल्द ही दस्तक देता समय
बीज बोएगा मेरे मस्तिष्क में
क्षुद्र आकांक्षाओं के
जड़ को ही खा डालनेवाली
बहार आ जाएगी मेरे भी होने में !
संपर्क : शकुंत विहार, फ्लैट नं. 09, लक्ष्मीनगर, पिंपरी-चिंचवड लिंक रोड, चिंचवड, पुणे –411033 (महाराष्ट्र)भ्रमणध्वनि : 7028525378 ईमेल :preranaubale2016@gmail.com
जीवन के सत्य और वास्तविकता से रुबरु कराती कविताएं सबके ऊपर लागू होती हैं।
डॉ. प्रेरणा जी ने अनुवाद में भी कविता की लयता, अर्थ छटा और मूल कवि की संंवेदना और सूक्ष्मता को अद्भूत कौशल के साथ साकार किया है। बहुत बढियाँ 👌👌👌💐💐💐