कवि, कथाकार और संस्कृतिकर्मी।प्रकाशित कविता संग्रह कहीं बिल्कुल पास तुम्हारे, जंगल जहां खत्म होता है, मौसम जो कभी नहीं आता।

वे औरतें

आजकल मुझे कुछ अपरिचित औरतें
बहुत याद आ रही हैं
जैसे कि वह जिसने ट्रेन में मेरे साथ
अपना खाना बांटकर खाया था
वह जिसने जलती रेत में
मेरी प्यास महसूस कर
अपने पानी की बोतल मुझे थमा दी थी
वह जिसने बेटे को गोद में लेकर
बस की अपनी एक सीट मुझे दे दी थी
वह जिसने पहाड़ से फिसलते वक्त
सहारा देकर मुझे गिरने से बचा लिया था
वह जिसने देर शाम बर्फीली वादियों में
अपना छोटा-सा होटल खोलकर
मिर्च की चटनी के साथ
मुझे गर्म-गर्म मोमो खिलाया था
यहां तक कि वह औरत भी
जो मेट्रो की भीड़-भाड़ में एक बार
मुझे एकटक घूरते देखकर मुस्कराई थी
और मैं बुरी तरह झेंप गया था
ऐसी और भी औरतें हैं
मेरे जीवन में जिनकी कोई बड़ी भूमिका नहीं
मगर वे इन दिनों बहुत याद आने लगी हैं
कहीं यह ढलती उम्र में
जीवन के प्रति लगातार कम हो रहे
भरोसे का असर तो नहीं है?
जो बात तब कहना
जरूरी नहीं लगा था मुझे
मुझे लगता है मुझे अब कह देना चाहिए
सुन रही हो न तुम सब
मुझे तुम सबसे बहुत प्यार है|

वह भी था प्रेम

घर से लड्डू और ठेकुए चुराकर
पास के खेत में छुपकर
एक साथ खाना भी प्रेम था
प्रेम था पति-पत्नी बनकर
गुड़ियों का कन्यादान करना भी
जब मैं स्कूल की छुट्टी के बाद
कांटों के बीच से पके बेर तोड़कर
अपने लहूलुहान हाथों से
तुम्हारे फ्रॉक में रख देता था
वह भी प्रेम था
प्रेम वह भी था जब टीचर की छड़ी
पिटाई के डर से मैंने चुराई थी
और इल्जाम अपने सर पर लेकर
तुम क्लास से निकाल दी गई थी
या जब मेरे गांव छोड़ते वक्त
तुम दूर तक छोड़ने आई थी मुझे
यह और बात है कि हमने
एक दूसरे से कभी कहा नहीं
कि हम प्रेम में हैं
आज जमाने बाद तब तुम्हारी याद आई
जब मुझे यह भी पता नहीं
कि तुम कहां हो
हो भी या नहीं
अपनी जमीन छूटने के बाद
मिट्टी और हवा की गंध के साथ
ऐसा भी कुछ छूट जाता है
जिसके छूटने का आभास नहीं होता
अलविदा कहते वक्त
एक जमाने के बाद आज जाना
कि प्रेम तो कहीं से भी आ जाता है
बिना बताए हुए, चुपचाप
उसे पहचानने वाली नजर
एक उम्र गंवा देने के बाद ही आती है।

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