युवा कवि और टिप्पणीकार। प्रकाशित कविता संग्रहतुम्हारे लिए 

उस रोज़

उस रोज
ढूंढी था कोई तरकीब कि
जाते जाते फँस जाए तुम्हारे आंचल का कोर
किसी कील में
और तुम रुक जाओ थोड़ी और देर मेरे पास
सोचा था
क्या लिखूं कि
और छूट जाए तुम्हारी आखिरी ट्रेन
क्या कहूँ तुमसे
कि तुम लिपट जाओ मुझसे
और न रहे हमारे बीच हवा के गुजरने भर की रिक्तता
क्या गुनगुनाऊं कि तुम ऊंघने लगो मेरे प्रेम में
और लो नींद मेरी बाहों में
पर तुम्हें जाना था
कहां? मुझे नहीं मालूम
तुम्हें भी कहां मालूम था
तुमने बस इतना कहा कि अब नहीं रुक सकती!
‘बहुत शिकायतें हैं तुमसे’
लिखता हूँ ख़त में
और रख देता हूँ हर दिन सड़क किनारे टंगे
पुराने वीरान लेटरबॉक्स में
यह जानते हुए कि
कोई डाकिया नहीं आता अब वहां
तुम्हारा नया पता भी कहां मालूम!
कभी-कभी राह गुज़रते लोग
पढ़ लेते हैं उन खतों को।

मुझे कविताओं ने बचाया है

जब पीड़ा पहाड़ बन छाती पर जमने लगी
मैं लौटा कविताओं के पास
जब अकेलेपन का अंधेरा छाती में भरने लगा
मैं लौटा कविताओं के पास
जब इंतजार चुभने लगा आंखों में
मैं लौटा कविताओं के पास
जब नींद रूठ गई, करवटों में रात बीती
मैं लौटा कविताओं के पास
जब अपने होने का एहसास भूलने लगा
मैं लौटा कविताओं के पास
जब चिढ़ चेहरे पर दिखने लगी
क्रूरता सांसों में चढ़ने-उतरने लगी
मैं लौटा कविताओं के पास
जब खींचने लगा मृत्यु मुझे अपनी ओर
मैं लौटा कविताओं के पास।
हर बार
बार-बार कविताओं ने ही मुझे बचाया है।

संपर्क: रानीगंज मुहल्ला, बारा चकिया,पूर्वी चंपारण,बिहार845412 मो.8826763532