काशी हिंदू विश्वविद्यालय में छात्र।
एक किसान
बारिश में
बाएं हाथ में छाता थामे
दाएं में लाठी लिए
मौन जा रहा था मेड़ पर
मेड़ बिछलहर थी
लड़खड़ाते-संभलते
अंततः गिरते ही देखा एक शब्द
घास पर पड़ा है
उसने उठाया
और पीछे खड़े कवि को दे दिया
कवि ने शब्द लेकर कविता दी
और उस कविता को
एक आलोचक को थमा दिया
आलोचक ने उसे कहानी कहकर
पुनः किसान के पास पहुँचा दिया
उसने कहानी एक आचार्य को दी
आचार्य ने निबंध कहकर वापस लौटा दिया
अंत में उसने वह निबंध एक नेता को दिया
नेता ने भाषण समझ कर जनता के बीच दिया
जनता रो रही है
किसान समझ गया
यह आकाश से गिरा
पूर्वजों का आंसू है
जो कभी इसी मेड़ पर
भूख से तड़प कर मरे हैं
इस मौसम में ओस नहीं
आंसू गिरता है!