वरिष्ठ कवि। नवगीत संग्रह : सुनो मुझे भी,निषिद्धों की गली का नागरिक, समय है संभावना का

आग को गाने लगी हैं आंधियां अब
बादलो कुछ देर
बरसो अब नगर में

आ रहे हैं
रोज अंगारे उछलकर
फेंकता है कौन
कितना जानते हैं
रेत पर
पदचिह्न हैं संदिग्ध किसके
दूर से भी लोग
अब पहचानते हैं

प्यार के क्षति-ग्रस्त परिसर में उठी जो
आग लपटें ले
न अब घुस जाए घर में

आग के अवशेष
अतिरंजित रहे जो
विष-बुझे संबंध लेकर युद्धरत हैं
जो पढ़े जाते नहीं
न्यायालयों में
साक्ष्य में प्रस्तुत हुए अनमोल खत हैं

जब अराजकता मिले गतिशील होकर
तब विकल्पों को
पुकारो क्रुद्ध स्वर में

खोजता आक्रोश जो
अपनी दिशाएं
जंगली सिद्धांत रटने लग गया है
नागरिक शब्दावली को
फेंक नीचे
सड़क पर अज्ञात घटने लग गया है

आग का अब ताप पहुँचेगा कहां तक
यह झुलसता धैर्य
चीखेगा समर में!

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