बीएचयू में शोधरत
नदी जब किसी बात से
बहुत दुखी होती है
तब वह अपने उद्गम स्थल या
गंदे घाटों से शिकायत नहीं करती
न उसमें घुले अपशिष्ट पदार्थ या जीव जंतुओं से
चुपचाप सो जाती है समंदर की गोद में
स्त्री एक नदी है
किन्हीं अपनों से आहत होने पर
मौन समंदर किनारे जाकर रो लेती है
जहाँ उसके क्रंदन को सुनने वाला कोई न हो
वह रेत पर बार-बार अपना दुख लिखती है
आँखों में उमड़ते हुए आँसुओं की शांत लहरों से
धो लेती है दुख की तमाम लकीरों को |
संपर्क :शोधार्थी, हिंदी विभाग, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी-221005 / मो. – 9893409311 ईमेल :- dineshsagarbhu19@gmail.com
बहुत खूब
बहुत शुक्रिया सर