युवा कवयित्री। कई पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित।
(मिथिला का एक प्रसिद्ध उत्सव है ‘सामा चकेवा’।इस अंचल में धारणा है कि सामा कृष्ण की बेटी थी।वह हर दिन भ्रमण के लिए वृंदावन के जंगल में जाती थी।एक चुगलखोर (चूड़क) ने कृष्ण से उसके एक तपस्वी से प्रेम-संबध की शिकायत कर दी।इस पर कृष्ण ने गुस्से से अपनी बेटी को पक्षी बन जाने का शाप दे दिया।)
पुरातन और नूतन संघर्षों के बीच
आती है याद मुझे सामा
मन में पीड़ा का आगार लिए
एक डाल से दूसरी डाल तक कई बार
की होगी उसने मरुदेश की यात्रा
विभ्रांत हो कर थक जाती होगी
पतझड़ में जब झर जाते होंगे पत्ते
टहनियों से आहत पंखों को
स्वयं टटोल लेती होगी
अपनी बेबस आंखों से
रुदन में कूजन या कूजन में रुदन
समझ पाता होगा कौन
नहीं समझ पाता कोई भी
उस स्त्री का रुदन
जिसके आगे खींच दी गई हो
लांछन की लकीर
समुद्र-से गूंजते लांछन में
मर्माहत अस्तित्व की लहरें
जब हो जाती हैं विलीन
किस तरह लगने लगता है
नदियों का जल भी खारा
यह एक स्त्री ही समझ सकती है
तुम तो थी शापित स्त्री
जिसे अपने ही पिता ने दिया था शाप
आह! चुगलखोर चूड़क की सुन बात
उस क्षण न जाने
कितने दृश्य बने होंगे तुम्हारे भीतर
सच कहो सामा
आस्था तुम्हारी हुई होगी न स्खलित?
पिता तुम्हारे कृष्ण थे
हां, वही कृष्ण
जिनका नाम लेकर द्रौपदी
राजसभा में बुनती रही आस्था के पट
आर्त स्वर में पुकार लेती तुम भी
उसी अच्युत कृष्ण को
तुम्हारे पिता के साथ थे वे प्रभु!
तुम शायद अनभिज्ञ थी सामा
बहुत सी बातों से अनभिज्ञ
समाज का ककहरा पढ़ा होता
तब जान पाती
कि पाबंदियों से ढकी होती हैं स्त्रियां
उन्हें प्रेम करने का नहीं होता अधिकार
हँस नही सकतीं वे
बांट नहीं सकतीं किसी के साथ
जीवन के हर्ष-विषाद
पर तुम सामा!
यह सब तुमने किया
भावालय पर नहीं लगाई कुंडी
तभी मनुष्य से बना दी गई पक्षी
इतिहास-भूगोल सा विस्तृत है
लोगों की संशयी दृष्टि में फंसा
स्त्री के जीवन का अध्याय
शापमोचित हो गई तुम सामा
पर एक परछाई शाप बन कर
घूमती रहती है हर स्त्री के इर्द-गिर्द
न जाने वह कब होगी
उस शाम से मुक्त!
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