युवा कवयित्री। कविता संग्रह : ‘जब मैं जिंदा होती हूँ

हम हो सकते थे पेड़ और पहाड़
और एक दूसरे में समाई
हमारी जड़ें
हमसे भी अधिक
आलिंगनबद्ध रहतीं

हम हो सकते थे नदी और झरना
जहां एक का अंत
दूसरे के आदि को उत्पन्न करता
या
रात और तारे
जिसमें एक का अंधकार
दूसरे के प्रकाश हेतु द्वार खोलता

हम हो सकते थे बादल और बारिश
जहां एक के पिघलने से
दूसरा बह निकलता

हम सूर्य और दिन भी हो सकते थे
जहां एक के उगने से
दूसरा स्वयं उग जाता
या समुद्र और धरती
जिसमें एक के ऊपर
दूसरे के लहराने की
अपार संभावनाएं होतीं

हम हो सकते थे बसंत और फूल
जहां एक के खिलने से
दूसरे के आ जाने का अहसास होता

हम हो सकते थे
हवा और सुगंध
जहां एक के चलने से
दूसरे को गति मिलती

सोचो क्या नहीं हो सकते थे हम
सिवाय दो देह भर होने के
जिसमें एक स्त्री
और दूसरी पुरुष की थी …।

संपर्क: असिस्टेंट प्रोफेसर शिक्षाशास्त्र विभाग, स्वामी विवेकानंद राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, लोहाघाट, जिला-चंपावत , उत्तराखंड / मो.  9411538852