कांस्टैंटिन सिमोनोव
(1915-1979) रूसी कवि, उपन्यासकार।युद्धकालीन कवि के रूप में प्रसिद्ध।अपनी कविता ‘वेट फॉर मी’ के लिए विख्यात हुए।
मेरा इंतजार करो
मैं लौटूंगा, मेरा इंतजार करो
पूरी हिम्मत से इंतजार करो
घनघोर थपेड़े बारिश के रोकें
तब भी इंतजार करो
जोरों की बर्फबारी हो तो भी इंतजार करो
झुलसा रही हो गर्मी तो भी इंतजार करो
बीता कल जब बीत चुका हो
बाकी सब भी भूल चुका हो
दूर गांव से मिले न चिट्ठी तब भी इंतजार करो
जब तुम्हारे साथ इंतजार कर रहे
साथियों को ही संदेह हो
कि मैं जिंदा भी हूँ या नहीं, तब भी
इंतजार करो
मैं लौटूंगा, तुम मेरा इंतजार करो
तब भी धीरज से इंतजार करो
जब वे कहें कि पोंछ दो यादें
और भुला दो सारी बातें
मेरे अजीज ही जब कहें लापता हूँ मैं
यहां तक कि मेरे दोस्त उम्मीद छोड़ दें
बैठकर करने लगें हिसाब तमाम
बिछड़े दोस्त के नाम पीते हुए कड़वे जाम
तुम इंतजार करना
उनकी बातों पर यकीन न करना
करना इंतजार आखिरी सांस तक!
मेरा इंतजार करना, मैं लौटूंगा
मौत को भी धता बताकर
जो इंतजार नहीं करेंगे
करिश्मा किस्मत का कहेंगे इसे
वे नहीं समझ पाएंगे कि कैसे
इस कठिन समय में तुम्हारी प्रतीक्षा ने
मुझे जिलाए रखा था
यह समझेंगे सिर्फ हम और तुम
कि किन मुश्किलों से तुमने मुझे बचाया था प्रिये
यह तुम ही तो थी जो जानती थी
कि प्रतीक्षा कैसे की जाती है
तुम, सिर्फ तुम और कोई नहीं।
डेविड समोइलोव
(1920-1990) रूसी कवि।रेड आर्मी के सैनिक थे।इनकी अधिकतर रचनाएं द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान लिखी गईं।
वह चौथा दशक
कौन भुला सकता है वह भयानक चौथा दशक
तोपों की वह धुआंधार गोलाबारी
वे चिट्ठियां
जिनको देखते ही चेहरे पड़ जाते थे पीले
जिनमें लिखी होती थी
बस एक ही इबारत ‘युद्ध में शहीद’
ठंड पड़ रही हैं
खड़खड़ाती रेल की पटरियां
ऊपर फैला आकाश
बमों और गोलीबारी से
जिनके घर हो चुके हैं ध्वस्त
ऐसी अंतहीन भीड़ के साथ
पूरब की ओर लगातार
चलते चलते थक गया हूँ
एक स्टेशन पर रुकने के बाद मैं यहां हूँ
फड़फड़ाते हुए कान वाली
मेरी मैली कुचैली टोपी का
स्टार टिन के डब्बे का है
जिसे काटकर मैंने बनाया और रंगा
सैनिक के सामान के साथ जो स्टार मिला था
वह खो गया
हां, मैं वही सैनिक हूँ युवा और छरहरा
जानता हूँ सब, जयकारे गूंजते हैं कानों में
मेरी तंबाकू की डिब्बी महंगी और नक्काशीदार है
यहां समीप ही खड़ी है एक युवती
स्टेशन पर बातों के दौरान
उसे दिखाने के लिए
मैं कुछ ज्यादा ही लंगड़ा रहा हूँ
मेरे रोज के राशन में मिली ब्रेड को
मैं बेझिझक आधी-आधी तोड़ता हूँ
युवा और युद्ध, सपने और आंसू
सब गुत्थमगुत्था हैं, उलझे हुए एकसाथ
सालों से मेरी आत्मा में समाए हुए अव्यक्त
और फिर बहुत बाद में अनकहे ही हो उठे स्पष्ट
कौन भुला सकता है
मोर्चे की पहली कतार में खड़े उस चौथे दशक को
लड़ती और
भाग्य को झुठलाती हुई सेनाओं को?
सारे रूस में भड़की युद्ध की आग को
और हम युवाओं को
जो इस सबके बावजूद जीना चाहते थे!
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अंग्रेजी से अनुवाद :मंजु श्रीवास्तव आकाशवाणी में उद्घोषणा, कार्यक्रम-संचालन, रेडियो नाटकों तथा टेली फिल्मों में अभिनय। एक कविता संग्रह : हजार हाथ ।बांग्ला और अंग्रेजी से कई रचनाओं का अनुवाद। |
संपर्क : मंजु श्रीवास्तव, सी-11.3, एनबीसीसी विबज्योर टावर्स, न्यू टाउन, कोलकाता-700156 मो.9674985495
आपने बहुत सुंदर अनुवाद किया है। एक क्षण तो ऐसा लगा कि मैं रूसी कविता ही पढ़ रही हूँ। मैंने रूसी साहित्य कॉफी पढ़ा है। मुरीद हूं। वागार्थ एक अच्छी साहित्यिक पत्रिका है।