वरिष्ठ कवि।कविता संग्रह, ‘उँगलियों में परछाइयाँ’।दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन।

तुम आओ तो

घर
ज्यों का त्यों है
हर चीज वहीं है
जहां तुमने रखी थी
पता नहीं सब उजाड़ लग रहा है
जैसे यहां कभी कोई रहा ही नहीं
अभी चंद घंटे हुए हैं
तुम्हें घर से गए
और देखो
सारे रंग उतर गए
ये रंग तुमसे बंधे हैं
तुम आओ तो रंग आए।

बीच में – 1

आदमी इस करवट है
औरत उस करवट
बीच में मरुस्थल है
हजार साल से
जहां बारिश नहीं हुई।

बीच में – 2

आदमी इस करवट है
औरत उस करवट
बीच में राख है
जहां
कोयले बुझने का नाम नहीं लेते।

दूरी

निश्चित दूरी पर है हर चीज
निश्चित दूरी पर घूमता है चंद्रमा
सूरज बना रहता है निश्चित दूरी पर
दूर ही दूर टिमटिमाते हैं तारे
कभी पास नहीं आते
शायद मालूम है तुम्हें भी
कोई दूरी
तारों की तरह दूर ही
टंगी रहती हैं तुम्हारी आंखें
कभी पास नहीं आतीं।

चला गया

आंधी में एक पेड़ गिर गया
खिड़की के आगे
जहां धरती थी
वहां आकाश खुल गया
धूप तेज है अब
और बेरंग भी
धूप को जो रंगता था
वह रंगरेज चला गया।

संपर्क :इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ फिजिकल एजुकेशन एंड स्पोर्ट्स साइंस, दिल्ली विश्वविद्यालय, बी ब्लॉक, विकासपुरी, नई दिल्ली-110018  मो. 9958596170