पिछले कई वर्षों से स्वतंत्र लेखन।एक कविता संग्रह ‘मां’।
पिता
जितनी बार पीहर आई
पिता! तुम और बूढ़े हो गए
तुम्हारे बलशाली कंधे कुछ झुक गए हैं
याद है! इन पर बैठ कर कभी मेला देखने जाते थे हम
तुम्हारे मजबूत कदम कुछ दरकने लगे हैं
इन्हीं कदमों से तुम नाप आते थे सारा गांव
तुम्हारे हाथ कुछ कांपने लगे हैं
इन्हीं हाथों से तो पकड़ते थे कभी हमारी उंगलियां
पिता! तुम्हारा कठोर चेहरा अब नर्म पड़ चुका है
पर ऐसी नरमाई तो न चाही थी मैंने कभी
पिता! तुम
बलशाली रहो, कठोर रहो
पहले की तरह बेटियों पर
आसमान सरीखे गरजते रहो
पर मुझे वचन दो पिता!
तुम और बूढ़े न होगे
और न लड़खड़ाओगे|
पिछली सदी में
जन्मी बेटियां
हमें अपने पिताओं के गले से लटककर
झूलने का सुख नहीं मिला
हम पिछली सदी में जन्मीं बेटियां हैं|
हमारे लिए पिता दुरूह थे, हैं
जैसे दुरूह होती है सूरज की परछाई
पिता से बात करने का मतलब
हथेली में जलता कोयला पकड़ना
पिता के स्नेह की लालसाओं में
हमने कई बार हाथ जलाएं
पिताओं के सामने रोना, हँसना वर्जित था
और वर्जित था अपनी मनोकामनाओं को उजागर करना
मां ने हमें छिप छिप कर रोना, हँसना सिखाया
और अधूरी मनोकामनाओं के साथ जीना भी
पिता की परछाई
हमारी आजादी की सीमा रेखा थी
हमने इस सीमा रेखा के आगे
अपनी मुक्ति के सारे हथियार डाल दिए
एक दिन हम अपनी
अधूरी मनोकामनाओं की गठरी
सिर पर लादे
पिता की देहरी डका दिए गए
उस दिन भी गले से लिपट
बिछोह का दुख रोना चाहते थे हम
लेकिन हमें बस चरण स्पर्श करा
आगे बढ़ा दिया गया
पिता हमारे लिए जलते दीपक समान रहे
मगर बेटियां जब भी प्रकाश का मोह कर करीब गईं
अपने पंख जला बैठीं
पिता अब भी दीये में लरज रहे हैं
बेटियां अब भी अंधेरे में खड़ी
सजल आंखों से
उनके स्नेह की बाट जोह रही हैं।
छाता, छड़ी और कुरता
रिटायरमेंट के दिन
पापा को मिला था
कार्यालय से
छाता, छड़ी और कुरता
छाता आने वाले दिनों में
नई पीढ़ी के शब्द बाणों से बचाने के लिए
छड़ी स्थानांतरित होती जिम्मेदारियों के बीच
बेटे के सामने तनकर खड़े रहने में
मदद करने के लिए
और कुरता तन में पनपती जरूरतों
और मन में पनपती इच्छाओं को
ढककर रखने के लिए
और एक तौलिया भी
शायद चेहरे पर उभर आए
थकान और अवसाद की बूंदों को
पोछने के लिए
पापा के रिटायरमेंट तक
आमतौर पर
एक-एक करके
ब्याह दी जाती हैं
सारी बेटियां
और बेटियों के विदा होने के बाद
अकसर काम आती हैं
तीन वस्तुएं
छाता, छड़ी और कुरता।
संपर्क : 1सी/2272, गली नंबर 6, रामनगर, शाहदरा, दिल्ली– 110032 मो.8744968601
पिछली सदी में जन्मी बेटियों के दर्द और मानो भावों को उजागर करने का सार्थक प्रयास,बेहद खूबसूरत कविता त्रय।