युवा कवि।धनबाद से भूभौतिकी में परास्नातक।ओएनजीसी, अंकलेश्वर, गुजरात में कार्यरत।

जो गूंगे थे उन्हें सराहा गया
उनके शानदार उद्बोधन के लिए
और बोलने वालों के मुंह
हमेशा बंद किए गए
इतिहास के कारखाने में
हमेशा ढाले गए सीखचे
कि कोई कैदी बगावत न कर सके
फिर भी जिंदा हैं हम
बजा रहे हैं अपनी जंजीरें
और गा रहे हैं उड़ान का गीत
अब भी दोस्त है गौरैया
अब भी जिंदा हैं हम।

अपनी भाषा

अपनी भाषा का आभारी हूँ
औपचारिक रूप से
जब भी दुनिया के बेहतरीन लोगों से मिला
उन्हें सबसे पहले मेरी भाषा मिली
मैंने अपनी भाषा की आड़ ली
अपनी भाषा की गोद में
सर रखकर सोता हूँ मैं अपनी रोज की नींद
मेरा तोता बोलता है मेरी भाषा
मेरी गाय मेरी भाषा समझती है
जानती है मेरे भाव
जब ये आवाज बनते हैं
मेरी भाषा के सांचे में
मेरे पास अपनी भाषा के सिवा
कोई और तोतली जबान नहीं है
जब बाहर चली जाती है बात
मैं अपनी भाषा का मौन चुनता हूँ
जहां नहीं पहचानता हूँ उसे
वहां भी उसे महसूस कर सकता हूँ
मेरा मौन मेरी भाषा का मौन है
मेरा स्वर मेरी भाषा का स्वर है
मेरा आक्रोश मेरी भाषा का आक्रोश है।

हमारी सदी में

हमारी सदी में जब प्रेम ने अपनी आंखें खोलीं
तो सबसे ज्यादा मिठास से दिए गए गुलाब
सूख रहे थे किन्हीं किताबों के बीच
और सारे बुद्धिमान दुनिया को
खूबसूरत बनाने के लिए
लड़ रहे थे एक दूसरे से
कोई पागल गाता हुआ निकलता था
तो राजद्रोह का अभियोग लगता था उसके ऊपर
बादशाह प्यार में यकीन नहीं रखते
हमारी सदी में अकसर मिलने लगे थे
एक दूसरे के शरीर में प्रेम ढूंढ़ते लोग
और अगर मन में ढूंढ़ो तो
बचाने लगते थे खुद को किसी पूंजी की तरह
बस अजीब सा था हमारी सदी में प्रेम
सबसे ज्यादा प्यार हमीं ने किया
और सबसे ज्यादा अभियोग भी हमीं ने सहे।

संपर्क : -44-सी, ओएनजीसी, टाउनशिप, अंकलेश्वर, गुजरात-393010 मो. 9504263723